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गुरु बना टीचर तो संस्कार ने लिया चाटुकारिता का स्थान

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r 5 The birthdate, [5 September 1888], of the second President of India, academic philosopher  Dr. Sarvepalli Radhakrishnan . आदित्य देव पाण्डेय बचपन में हमारे माता-पिता ने हमें पढ़ाया कि ‘गुरु’ ईश्वर से भी महान होता है। यह हमें जीवन और जीविकोपार्जन से लेकर मोक्ष तक रास्ता प्रसस्त करता है। हमने भी कभी इस ज्ञानी व्यक्तित्व को जाति और धर्म पर तौल सिर्फ उसके ज्ञान को प्रणाम किया। उसे अराध्य का स्थान दिया और यही भाव लिए अपने जीवन चक्र को आयाम दिया। किंतु समय के साथ इस सोच में बदलाव आने लगा। गुरु या अचार्य जी ने मास्टर साहब और टीचर का रूप अख्तियार कर लिया। साहब बनते ही वह बहस के आदि हो गए औ टीचर का आचरण किचर के समान हो गया। हर साल पांच सितंबर को इन्हें सम्मान देने के लिए गुरु शब्द का अपमान करना पड़ता है। सुख इतना ही रहता है कि जिन गुरुओं को हम अपनी किताबों में पढ़े थे और जिन्हें हम एकलव्य बन द्राणचार्य के रूप में स्थापित कर अपना पूज्य बना रखें हैं उनका सम्मान जिंदा है। किंतु वर्तमान मास्टरों को गुरु की संज्ञा देने में अब काफी संकोच होता है। यह उनके अहम और भौतिक व्यवहार का प्रतिबिंब है...
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विशालता. विकास  और शक्ति का बचपन हर शक्ति शुरुआत में बौनी दिखती है. पर हमारी इचछा कि प्रतिबध्धहता हमे महान व्यक्तित्व प्रदान करतेंहैं। 
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प्रेम त्याग करुणा या मोह खुशी स्नेह हर्ष या विनोद जीवन विविधताओं का श्रृंगार है।  यह स्वयं में एक वरदान है।