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फिर इश्‍क से मुलाकात हुई

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एक अरसे बाद इश्क से मुलाकात हुई शिमला में सर्द हवाओं में चंद बात हुई। उनके कांपते बदन पर शॉल ओढ़ाते हुए प्यारे जज्‍बातों से दोबारा मुलाकात हुई। सांसों से निकलते उन गर्म हवाओं में सादे प्यार के बादलों की अंगड़ाई दिखी। मॉल रोड के शोर में खड़े थे मगर उनकी धड़कनों में मिलन की मधुर धुन सुनी। चलते-चलते जो छू गईं उनकी छोटी उंगलियां बड़े कदमों ने फिर धीमे होने की एक धुन चुनी। छोटी राहों पर लंबे जज्बातों को संवारते हुए उनकी बातों में प्यार की बड़ी अंगड़ाई दिखी।   पर्वत से झांकती नजरों में नजारे बहुत थे चाहतों की चादर से ढकी फिर एक प्रेम कहानी दिखी। बातों का सिलसिला गर्म हो रहा था हाथों में हाथ लिए वो अब सामने खड़ी दिखी। पुरानी भूल को सही करने की जिद थी मानों अधरों पर अधर के मेल से संवरती आज वो शाम थी। पछतावा ,  पाप ,  अपराध का बोध छलावा बन गया तब मानों हीर की बाहों में समाहित रांझे की मीत दिखी। ---------------------***

कुछ सवाल पूछना है उनसे

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हर रोज एक ऐसा पल आता है बीते वक्त की छांव को जो जीता है! चंद मुस्कान और ढेरों गमों को लाता है हंसते आंखों में उदास रेत भर जाता है! कफन में दबी यादों को संजोकर कफस में कैद कलेजे को जलाता है! वो पूछता है इन हवाओं से चंद बूझे सवाल गुजरे वक्त का लेखा-जोखा कहां रखा जाता है!   उस वक्त से सवाल था कि कमी कहां रह गई सांसें थमी उनके जाने के बाद तो जान क्यों रह गई! कॉलेज की खूबसूरत राहें ,  वो उसकी हंसी से सजे कमरे चमकते ब्रेंच पर उसके नाम की मुहर आखिर कहां गई!    बाइक पर घूमते शहर की सड़कों का इतराना पिकनिक की रौनक में पास बैठी वो हंसी कहां गई! उसकी आवाज से वजू कर संवरने वाले दिन रात की संगीत में खोकर भी रेख़्ता कैसे हो गए! सवाल बहुत देकर चैन लूटने वाले दिन गुमनाम करके हमें ,  किस महफिल में खुद खो गए! पूछना था कि उनकी चाहतों में हम कहां थे उनके वक्त में उस कहानी की कब्र तो बनी होगी! उन बीते वक्त की कोई मजार हो तो बताना उनकी मुस्कान को याद कर दुआ जो करनी है! माना अब न संवरेंगे आज के ये हंसते दिन पर उस वक्त के इत्र से महक तो सकते हैं! ...

कुछ सवाल पूछना है उनसे

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हर रोज एक ऐसा पल आता है बीते वक्त की छांव को जो जीता है! चंद मुस्कान और ढेरों गमों को लाता है हंसते आंखों में उदास रेत भर जाता है! कफन में दबी यादों को संजोकर कफस में कैद कलेजे को जलाता है! वो पूछता है इन हवाओं से चंद बूझे सवाल गुजरे वक्त का लेखा-जोखा कहां रखा जाता है!   उस वक्त से सवाल था कि कमी कहां रह गई सांसें थमी उनके जाने के बाद तो जान क्यों रह गई! कॉलेज की खूबसूरत राहें ,  वो उसकी हंसी से सजे कमरे चमकते ब्रेंच पर उसके नाम की मुहर आखिर कहां गई!    बाइक पर घूमते शहर की सड़कों का इतराना पिकनिक की रौनक में पास बैठी वो हंसी कहां गई! उसकी आवाज से वजू कर संवरने वाले दिन रात की संगीत में खोकर भी रेख़्ता कैसे हो गए! सवाल बहुत देकर चैन लूटने वाले दिन गुमनाम करके हमें ,  किस महफिल में खुद खो गए! पूछना था कि उनकी चाहतों में हम कहां थे उनके वक्त में उस कहानी की कब्र तो बनी होगी! उन बीते वक्त की कोई मजार हो तो बताना उनकी मुस्कान को याद कर दुआ जो करनी है! माना अब न संवरेंगे आज के ये हंसते दिन पर उस वक्त के इत्र से महक तो सकते हैं! ...

भटक रहे हैं रिश्ते

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भटक रहे हैं रिश्ते दिखावे के महोत्सव में। नाराज नजरों से संदेह के गलियारों में।। सूना पड़ रहा आंगन त्योहारों के शोर में। कभी आते जो बहू-बच्चेे जो खामोशियां सज रहीं हंसते घर में।। चैन से दूर रहने वाले भाई बेचैन हैं किसी हंसी को सुन कमरों में। मेल-मिलाप, प्यार-त्याग पुरानी बातें नए में तो दूरियां चल रहीं प्रचलन में।। नन्हें कदम, नन्हीं सी बातें मिलकर नहाते सभी भाई एक ही सरोवर में। वक्त ने मजबूत को मजबूर कर दिया अब ओझल होती नजरें शिकायतों के धूल में ।। बेझिझक जिंदगी जाने कहां खो गई लबों पर बेबसी दिखती है हर बात में। नाराजगी से सज रहा हर दिल खुशियां भटक गईं हैं मानों अंधेरे कोने में। ।।