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अमेरिका में गवाहों के चेहरे बदल देते हैं यहां सुरक्षा तक नहीं

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आदित्य देव पाण्डेय की रिपोर्ट  गवाह किसी भी केस की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। लेकिन, वर्तमान हालात यह है कि यह कड़ी खतरे से घिरी है। गुजरात दंगे से देकर यूपी के एनएचआरएम, एमपी का व्यापमं घोटाला या फिर आसाराम बापू का मामला। इन मामलों ने यह जता दिया कि भारत में गवाहों की जान की कीमत कौड़ियों के भाव है। गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले की मुख्य गवाह जाहिरा शेख ने अपना बयान बार-बार बदला और सुप्रीम कोर्ट ने उसे अदालत की अवमानना के लिए एक वर्ष की जेल की तथा 50 हजार रुपये का जुर्माना किया। पर हकीकत यह थी कि उसके परिवार के14 सदस्य मारे जा चुके थे। ऐसी स्थिति में जाहिरा क्या करती। यह एक मामला नहीं देश में गवाहों की हत्या से लेकर उन्हें तोड़ने-मरोड़ने का काम चलता रहता है। यही नहीं, पुलिस और जजों पर भी अपराधी अपना प्रभाव छोड़ने की कोशिश करते हैं और कई बार तो इसमें कामयाब भी रहते हैं। इन सभी समस्याओं को लेकर विधि आयोग ने अगस्त 2006 में अपनी 198वीं रिपोर्ट पेश की और गवाहों की सुरक्षा पर विशेष कदम उठाने को कहा। आज की हमारी रिपोर्ट गवाहों के हालात को बयां करती है। हालात बद से बदतर भारत में हत्या के ...