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भटक रहे हैं रिश्ते

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भटक रहे हैं रिश्ते दिखावे के महोत्सव में। नाराज नजरों से संदेह के गलियारों में।। सूना पड़ रहा आंगन त्योहारों के शोर में। कभी आते जो बहू-बच्चेे जो खामोशियां सज रहीं हंसते घर में।। चैन से दूर रहने वाले भाई बेचैन हैं किसी हंसी को सुन कमरों में। मेल-मिलाप, प्यार-त्याग पुरानी बातें नए में तो दूरियां चल रहीं प्रचलन में।। नन्हें कदम, नन्हीं सी बातें मिलकर नहाते सभी भाई एक ही सरोवर में। वक्त ने मजबूत को मजबूर कर दिया अब ओझल होती नजरें शिकायतों के धूल में ।। बेझिझक जिंदगी जाने कहां खो गई लबों पर बेबसी दिखती है हर बात में। नाराजगी से सज रहा हर दिल खुशियां भटक गईं हैं मानों अंधेरे कोने में। ।।

उदास नहीं हूँ बस चुप हूं

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उदास नहीं हूँ बस चुप हूं  सुकून की खोज में गुम हूं। ताउम्र जिनकी खिदमत की उन्हीं की नजरों से उतरा हूं। ।।उदास नहीं हूँ बस चुप हूं।।     उम्र के तीसरे पड़ाव तक चाहा चौथे में जाकर लड़खड़ाया हूं।। उदास...।।    दिल, दुआ और पसीने से सजाया है  उन्हीं की आंखों में आज खटकता हूं।। उदास...।।     जिन्हें देखकर दिल मचल उठता था उनकी बातों में अब उलझ आया हूं।। उदास...।।  उम्मीदों की बरसात आज भी गरजती है संदेह की सबा से बस जरा सहमा हूं ।। उदास...।। मसला ये नहीं की मुंह फेर लिया सबने   दुख है कि प्यार का कुनबा उड़ता देख रहा हूं।। उदास...।।  लब खुलकर शोर से सिमट रहे हैं  अभ्र से उतरा गुमशुदा अश्क का कतरा हूं ।। उदास...।।  तफ्तीश में कुछ खुशियों के गहने तो मिले  यादों की भूली कोठरी में उन्हें छुपाया हूं।। उदास...।। बेबस कोई नहीं दिखता आसपास दूरियों के रत्न से सजते सबको पाया हूं ।। उदास...।।      चलो मैं भी क्या करता  गलतियों की गांठ में खोया एक धागा हूं।  ।।उदास नहीं हूँ बस चुप हूं।।   ...