उदास नहीं हूँ बस चुप हूं

























उदास नहीं हूँ बस चुप हूं 
सुकून की खोज में गुम हूं।
ताउम्र जिनकी खिदमत की
उन्हीं की नजरों से उतरा हूं।
।।उदास नहीं हूँ बस चुप हूं।।    
उम्र के तीसरे पड़ाव तक चाहा
चौथे में जाकर लड़खड़ाया हूं।। उदास...।।   
दिल, दुआ और पसीने से सजाया है 
उन्हीं की आंखों में आज खटकता हूं।। उदास...।।    
जिन्हें देखकर दिल मचल उठता था
उनकी बातों में अब उलझ आया हूं।। उदास...।। 
उम्मीदों की बरसात आज भी गरजती है
संदेह की सबा से बस जरा सहमा हूं ।। उदास...।।
मसला ये नहीं की मुंह फेर लिया सबने  
दुख है कि प्यार का कुनबा उड़ता देख रहा हूं।। उदास...।। 
लब खुलकर शोर से सिमट रहे हैं 
अभ्र से उतरा गुमशुदा अश्क का कतरा हूं ।। उदास...।। 
तफ्तीश में कुछ खुशियों के गहने तो मिले 
यादों की भूली कोठरी में उन्हें छुपाया हूं।। उदास...।।
बेबस कोई नहीं दिखता आसपास
दूरियों के रत्न से सजते सबको पाया हूं ।। उदास...।।     
चलो मैं भी क्या करता 
गलतियों की गांठ में खोया एक धागा हूं। 
।।उदास नहीं हूँ बस चुप हूं।।         

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पतझड़ सा मैं बिखर जाऊंगा

यहां पर काल सर्पदोष की शांति का अनुष्‍ठान तुरंत होता है फलित

अकेला हूँ, खामोश हूँ