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खता...

जिंदगी की परीधी भी नजाने कीतने रंगों से रंगी है , शायद ये बात हम एक जन्म में जान पाये ये मुमकिन नहीं । कहते है समय के साथ भगवान सबको खुशिया देता है पर इस दुनियां में कई जिंदगी ऐसी भी है जिनकी दशा देख ये बाते मित्थया सी प्रतित होती है। कुछ ऐसी ही दशा शायद इस कठोर सुखी आंखों की भी है। अपनी पथरीली आंखों से वह जाने क्या खोज रही है , पर इस खोज बीन के बीच उसकी आंखे उस नन्हें चेहरे पर आ टिकती और नजाने ऐसा क्या महसूस करती है कि एक अदभुत चमक से चमकने लगती है। उसका ये एहसास जाने क्यों मेरे मन को एक नई चेतना और उर्जा से भर दिया। फिर तो मै अपना न रह उस महीला के चरीत्र को महसुस करने पर विवश सा होने लगा। उस भीड़ का जादू मेरे मनोस्थिती से कोसो दूर हो गया मुझे मालुम भी न चला। कुछ ही समय पहले मै अपने दोस्तों के साथ दशहरे की उस भीड़ का दिवाना बन दुनिया के साथ जी रहा था। कितनी चहल पहल थी उस भीड़ में, चारों तरफ लाउडस्पीकरों की कानफाड़ू सोर भरी आवाजे, जो मेरे जैसे युवाओं को झुमने पर मजबूर कर रही थी वहीं फेरी वाले कही चां...

आँशु

' हर जिन्दगी कितनी खुश है ' जब तक हम किसी खुशी को स्वयं से नही लेते या पाने की चेष्टा करते खुशी तब तक हमारे पास नही आती । कहते है संतोष ही सबसे बड़ा सुख है । फ़िर इतने पास की वस्तु हमें क्यो नजर नही आती । मै

तन्हाई और तू

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हर तन्हाई में तू याद आती है । हर महफ़िल में तेरी याद आती है । हर घड़ी तू याद आती है। साँसे तेज हो या धडकनों में कमी ' तूफानी रातें हो या सन्नाटे का घेरा ' हर घड़ी तू याद आती है। कोई दर्द का हो या सुकून का पल ' खुशियों की झड़ी हो या दुखो का समुन्दर ' हर घड़ी तू याद आती है। दोस्तों के बिच रहूँ या सुन - सान राहों में ' मनचाही जगह या अनचाहे ख्वाबों में' हर घड़ी तू याद आती है । चोट लगती है या जिन्दगी दर्द दे जाती है ' आँखें नम हो या खुशियों से छोटी पड़ जाती है ' हर घरी तू याद आती हो । हर सुकून हर जूनून में ' हर महफ़िल हर रूह में ' सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम याद आती हो ।

शाखी

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शाखी मत पूछ मेरे सब्र की इन्तहा कहाँ तक है , तू सितम कर ले तेरी ताकत जहाँ तक है , वफ़ा के बदले तो वफ़ा किसी को मिलती नही , मुझे तो ये देखना है कि तू बेवफा कहाँ तक है...............