खता...
जिंदगी की परीधी भी नजाने कीतने रंगों से रंगी है, शायद ये बात हम एक जन्म में जान पाये ये मुमकिन नहीं। कहते है समय के साथ भगवान सबको खुशिया देता है पर इस दुनियां में कई जिंदगी ऐसी भी है जिनकी दशा देख ये बाते मित्थया सी प्रतित होती है। कुछ ऐसी ही दशा शायद इस कठोर सुखी आंखों की भी है। अपनी पथरीली आंखों से वह जाने क्या खोज रही है, पर इस खोज बीन के बीच उसकी आंखे उस नन्हें चेहरे पर आ टिकती और नजाने ऐसा क्या महसूस करती है कि एक अदभुत चमक से चमकने लगती है। उसका ये एहसास जाने क्यों मेरे मन को एक नई चेतना और उर्जा से भर दिया। फिर तो मै अपना न रह उस महीला के चरीत्र को महसुस करने पर विवश सा होने लगा। उस भीड़ का जादू मेरे मनोस्थिती से कोसो दूर हो गया मुझे मालुम भी न चला। कुछ ही समय पहले मै अपने दोस्तों के साथ दशहरे की उस भीड़ का दिवाना बन दुनिया के साथ जी रहा था। कितनी चहल पहल थी उस भीड़ में, चारों तरफ लाउडस्पीकरों की कानफाड़ू सोर भरी आवाजे, जो मेरे जैसे युवाओं को झुमने पर मजबूर कर रही थी वहीं फेरी वाले कही चांट तो कहीं आईस्क्रीम की आवाज लगाते। कभी हम बासुरी वाले को रोकते तो कभी निसाने वाले के यहा गुब्बारों पर अपना नीसाना साधते। पर अचानक ही उस अंधेरे से जाने क्यों अजीब सा लगाव सा हो गया। मेले की चकाचौध से अलग थलग बैठी वह महिला किसी ग्राहक की नजर के लिए परेशान 6हो दिग्भ्रमीत हो चारो तरफ अपने सामानों के खरीददार की तलास कर रही थी। उसके दुकान के खिलौने भी सब दुकानों के खिलौने जैसे ही थे, पर शायद उसकी किस्मत ही फूटी होगी... लोगो की निगाहे तो बहुत सी उसकी तरफ गयी पर नहीं गये तो किसी के कदम। उन भेड़ीयों की नजर जाये भी कयों न उस गरीब गुनहगार की तरफ, उसकी गरीबी के जिर्ण सिर्ण दिवारों से उसकी लाचारी जो झांक रही थी पर उससे उन्हे क्या लेना देना , उन्हे तो मानों नेत्र सुख का कोइ स्थान दिख गया हो। उनकी नजरें तब तक उसे घुरती जब तक वे कुछ दुर ना नीकल जाए या उनकी उंगलीओं को परड़े वो नेन्हा उनकी सुख शांती न भंग कर दे। पर वो अबला इन सब से दूर अपने बच्चे की खुशियों को इकट्ठा करने में जुटी हेई थी ... नजाने उसकी किस्मत में क्या लिखा है , वो तो खुदा जाने ... पर उसको देख एसा लग रहा था मनो वो किसी ऐसे खुशी को तलास रही हो जो
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