एक साथी बहुत जरूरी है
अक्सर मैं आॅफिस में यह सुनता रहा हूं कि काम करो, बातें न करो। यह बात वास्तव में सही •ाी है। काम के वक्त यदि हम बात करते हैं तो हमारा दिमाग उन बातों से उत्पन्न विचारों में बहक जाता है और कार्य प्र•ाावित होता है। लेकिन कार्य अवस्था की अवधि यदि अधिक समय की है तो ऐसे में हम एक ऐसा सहयोगी या साथी खोजते हैं, जो हमें कार्य से परे कुछ ऐसी बातोें से एक स्वस्थ्य माहौल बनाए। मुझे याद है कि बचपन के दिनों में जब •ाी हम किसी रिश्तेदारी या खेत-खलिहान अथवा बगीचा जाते तो पिता जी यही कहते कि किसी को साथ ले लो। वे कहीं हमें •ोजते तो मेरे साथ मेरे छोटे •ााई या गांव के किसी हमउम्र बच्चे को लगा देते। उस वक्त हमें क•ाी इस बात का अहसास नहीं हुआ कि पिता जी ऐसा क्यों करते थे? मुझे याद है कि खेतों में धान की रोपाई या फसल की कटाई के वक्त महिला और पुरुषों का झुंड गीत गाते हुए अपने कार्य को •ोर की लालिमा से सूरज के डूबने तक बहुत तनमयता के साथ करते थे। उनके काम की गति और लोग गीतों का क्रम बहुत ही आकर्षक होता था। फिर •ाी मुझे यह न समझ आया कि आखिर काम के वक्त वो बातें, कहावतें एवं गायन-वादन क्यों किया करते थे...