प्रेम का इगो इफेक्ट


कुछ दिनों पहले की बात है। मैं सरिता विहार से लक्ष्मी नगर मेट्रों से जा रहा था। रास्तें में मुझे एम हमारे पुराने मित्र राहुल जी मिल गए। उन्होंने देखते ही मुझे गले लगा लिया। मैंाी बहुत खुश हुआ उनसे इतने दिनों बाद मिलकर। बहुत दिनों के बाद मिले थे, सो उनकी जुबान पर ढेरों प्रश्न थे। मेरा हाल-चाल लेने के बाद उन्होंने मेरी पुरानी जिंदगी से जुड़ा एक प्रश्न कर दिया। और आदित्य यह बताओं भोपाल वाली का क्या हाल है? दरअसल मैंनेोपाल से परास्रातक की पढ़ाई की है। उस दौरान एक महिला मित्र से मेरे अच्छे संबंध रहे। जो मेरी जुनियर थी। और सत्य कहें तो हम एक दुसरे से प्रेम करते थे। मैं नहीं जानता वो कैसी हैं और क्या कर रही हैं? ऐसे में मैंने सिर्फ ठीक हैं कह दिया। यहां तक तो सब ठीक ठाक रहा। अचानक उन्होंने अगला प्रश्न दाग दिया। सुना है आपका उसने आपको छोड़ दिया। और जैसे ही यह प्रश्न मेरे कर्ण पटल से टकराए मेरे दिलों दिमाग में एक हलचल सी पैदा हो गई। ऐसा लग रहा था। जैसे किसी ने मेरे व्यक्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया हो। मेरे आत्म सम्मान को झकझोर दिया हो। मैं मौन हो मुस्कराकर चुप हो गया। शायद मैं उस वक्त उन्हें वास्तविक उत्तर नहीं दे पाता, या उन्हें देना इतना लाजमी भी नहीं था।  लेकिन उसके बाद मैं जिस प्रेम और अपनत्व के साथ उससे मिला था, वह सब भाव  सहसा ही खत्म हो गए। मैं नहीं जानता कि उस वक्त मेरे अंदर जो इर्ष्या के भाव जन्म लिए वह मेरे मित्र के प्रति थे या मैं खुद परारोसा खो रहा था। मैं नहीं जानता। पर एक बात जरूर मेरे जेहन में रहा था कि प्रेम में छोड़ने की स्थिति कब आती है। क्योंकि हम आजाले हीाौगोलिक तौर पर बहुत दूर हैं या परिस्थियों के कारण हम एक दूसरे से नहीं मिल पा रहे। किंतु हम आत्मीय तौर पर आजाी एक दूसरे में समाहित हैं। उसने मुझे छोड़ा और हीं मैं आज तक उसे छोड़ पाया हूं। हां! यह सत्य है कि हम कुछ व्यक्तिगत कारणों से अपने पूर्व देखे सपनों को आयाम नहीं दे पा रहे हैं। किंतु किसी का यह अधिकार तो नहीं बनता कि वह हमारे आत्मीयाावना पर हावी हो जाए अथवा उसपर अपनी कठोर वाणी का प्रयोग करे। मैं नहीं जानता प्रेम का अंतिम स्वरूप कैसा होता है? लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि जब हम एक दूसरे के करीब थे, तो हर वक्त सचेत रहते कि एक दूजे को हमाूले सेाी चोट पहुंचाएं। किसी को तनिकाी किसी प्रकार का दुख हो। फिर एक विवाह करने के परिवारिक फैसले को इस अंदाज में कैसे ले सकते हैं कि उसने मुझे छोड़ दिया अथवा मैंने उसे छोड़ दिया। इससे प्रेम जैसी इश्वरीयाावना को पतित करना कहां की अक्लमंदी है। जिस्मों का मिलना प्रेम एक ाासी अवयव हो सकता है। किंतु प्रेम नहीं! प्रेम तो तत्व है। जो स्वत: जन्म लेता है और हमारे सम्पूर्ण इंद्रियों पर केंद्रीयााव से अधिपत्य जमाकर सम्पूर्ण माया प्रपंच और मानवीय अंतरद्वद्व से ऊपर ले जाता है। वास्तव में मैंने प्रेम में ही यह जाना की इस संसार में इश्वर है, जोाावों के रूप में हर वक्त हमें अपने स्वरूप से परिचित कराता रहता है। और ऐसे में किसी का उसपर विकृत विचार आना काफी कष्टदायक था मेरे लिए। या तो वह वास्तव में प्रेम को समझा नहीं है या उसे प्रेम ाी प्राप्त हुआ नहीं है। सच कहें तो प्रेम हमेंशा सब कुछ छोड़ने के बाद ही होता है। यह त्याग और समर्पण का अनुपम व्यवहार है। इस पावन तत्व को पाने के लिए पहले ही हम सर्वस्वाुला चुके होते हैं या यूं कहें कि किसी सुखमय दुनियां में खो चुके रहते हैं कि अब कुछाी खोने के लिए हमारे पास नहीं होता और छोड़ना तो इसमें नामुमकिन सा हो जाता है। फिर किसी का यह कहना कि किसने किसको छोड़ा, शायद कोई महत्व नहीं रखता। किंतु यह बात ऐसी है, जैसे हम किसी कार्य में तन्मयता के साथ लगे हों और अचानक एक झपकी जाए। शायद मैंाी इसी झपकी से कुछ पल के लिए परेशान सा हो गया था।

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