सही-गलत part 1

आदित्य देव पाण्डेय with arun sharma and kamlesh pandey


traymbak mishra. vijya pandey and आदित्य देव पाण्डेय

raju mishra, trayambak mishra, ramesh dev, and vijya pandey

TRAYAMBAK MISHRA

आदित्य देव पाण्डेय

इन सांसों को ये पता नहीं है कि वो जिसकी जिंदगी हंै वह अच्छा है या बुरा। लेकिन वह अपने कार्य को बहुत ही सहजता से करती जाती हैं। वह •ाी नि:स्वार्थ। पर हम इसके उलट कार्य करते हैं। जब तक हमें किसी से खुशी या सकारात्मक सोच या व्यवहार मिलता है तब तक वह हमें अच्छा लगता है, लेकिन जैसे ही हमें उससे नाकारात्मक ऊर्जा का अहसास मात्र होता है हम उसे छोड़ उससे बेहतर साथी की तलाश में जुट जाते हैं। या फिर, इंसान और इंसानियत को कोसते हुए कुंठा के महासागर में गोते लगाने लगते हैं। आज की कहानी •ाी कुछ ऐसी ही है। कहानी शुरू होती है एक इलेक्ट्रॉनिक खिलौने बनाने वाली कंपनी के मीटिंग हॉल से। जहां राजन को उसके बॉस एक ऐसा ब्रेसलेट बनाने पर चर्चा कर रहे हैं, जिसे पहनते ही उसमें लगी लाल और हरे रंग की बत्ती सच और झूठ का फैसला करेगी। मीटिंग खत्म होते ही राजन अपने केबिन में दाखिल होता है, जहां पहले से ही एक युवती उसका इंतजार कर रही होती है। राजन अपनी •ाौंहे सिकोड़ते हुए उसकी ओर देखता है और पूछता है। जी कहिए! और जैसे ही वह युवती उसकी ओर घूमती है, राजन उसके चेहरे पर ही केंद्रीत हो जाता है। वास्तव में वो चेहरा •ाी था बड़ा मनमोहक। मानों उस युवती का श्रृंगार स्वंय प्रकृति ने किया हो। उसके चेहरे में एक अद्•ाुत कांति झलक रही थी। कोई •ाी इंसान उसे देख अपने चित्त को खो देता। वह लड़की मुस्कुराते हुए राजन को जवाब देती है। सर! मैं अनन्या। मुझे आपके साथ वो टूÑ एंड लाई वाले ब्रेसलेट पर कार्य में सहयोग के लिए बॉस ने •ोजा है। राजन तो मानों किसी और ही दुनिया में खो चुका था। कई बार अनन्या के आवाज देने पर वह अपनी •ा्रमित दुनिया से बाहर निकल पाया। अनन्या ने राजन की ओर देखते हुए प्रोजेक्ट के बारे में पूछा। राजन अपनी कुर्सी पर बैठकर अनन्या को निहारते हुए एक फाइल उसकी ओर बढ़ा देता है। अनन्या ने फाइल खोल कर कुछ देर ध्यान से देखा और बोली। बढ़िया! राजन कुछ नहीं समझ पाया तो उसने अनन्या से पूछा क्या हुआ? अनन्या ने जवाब दिया, सर! मैंने इस प्रोजेक्ट पर कुछ काम किया है। यदि वह इस फाइल के साथ जुड़ जाए तो हम इस प्रोजेक्ट को बहुत आसानी से पूरा कर सकते हैं। राजन को बहुत खुशी हुई। पर साथ में दुख •ाी हुआ। दुख इस बात का कि फिर वो दूर हो जाएंगे। पता नहीं अनन्या में वो कौन सी बात थी कि राजन उसे देखते ही एक नजर में अपना दिल हार बैठा था। राजन ने खुद को सं•ाालते हुए अनन्या के बात का चौकते हुए जवाब दिया। क्या कह रही हो, सही। मैं तुम्हारी फाइल देख सकता हूं। और अनन्या कुर्सी से उठते हुए बोली, सर मैं अ•ाी लाती हूं। त•ाी राजन सोचने लगा। पिछले दो सालों में हम कई बार कैंटिन और आॅफिस के अन्य जगहों पर मिल चुके हैं। पर आज ऐसा क्यों लग रहा है, जैसे हम पहली बार मिल रहे हों। अनन्या तो वही है, पर आज न जाने क्यों राजन उसे जानने और समझने की कोशिश में लग गया। त•ाी अनन्या की मोहिनी आवाज ने उसकी सोच पर विराम लगा दिया। सर! ये मेरी फाइल। और यह कहते हुए अनन्या ने फाइल राजन को पकड़ाया। इस दौरान दोनों की अंगुलियां टकरा गई। इसके बाद तो मानों राजन के हृदय में अहसासों की सुनामी कहर ढाने लगी। राजन ने खुद को सं•ाालते हुए उस फाइल पर एक नाटकीय ढंग से नजर डाली। अब तक आॅफिस का टाइम खत्म हो गया था। अनन्या की साथी जो उसी के हॉस्टल में रहती है, रागिनी ने पीछे से आवाज दी। अरे घर नहीं चलना है क्या? अनन्या कुर्सी के पास खड़ी हो राजन से बोली। सर मैं जाऊं। राजन नहीं चाहता था कि हां बोले पर बोलना ही पड़ा। हां-हां जाओं मैं तुम्हारी फाइल देख रहा हूं। हम कल इस पर बात करेंगे। और अनन्या वहां से चली गई। राजन उस रात अनन्या के बारे में ही सोचता रहा। और सोचा •ाी तो क्या। क्या मुस्कान है उसकी। कितना प्यारा बोलती है। अजब है उसकी आ•ाा। और इन्हीं बातों में वह अपनी पूरी रात बिता देता है। सुबह होते ही आॅफिस के टाइम से आधे घंटे पहले ही दफ्तर पहुंच गया। पर आॅफिस पहुंचने के बाद का हर सेकेंड इक-इक साल लग रहा था। इस लंबे काल में उसकी साथी थी तो सिर्फ अनन्या की वो मुस्कान, जिसपर वह फिदा था।
 अनन्या आॅफिस के टाइम पर पहुंच सीधे राजन के केबिन में गई, जहां राजन उसी की फाइल को निहार रहा था। अनन्या को देख राजन उसके काम की तारिफ करते हुए बोला। काफी अच्छा काम किया है। ऐसे में हम जल्द ही इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लेंगे। और फिर दोनों काम में लग गए। राजन और अनन्या दोनों ही काम को सर्वोपरि मानते थे। दोनों ने बड़ी ही तनमयता के साथ काम को पूरा करने में अपना वक्त झोक दिया। लेकिन इस दौरान जो विशेष घटा वह यह था कि दोनों को एक दूसरे को समझने और जानने का काफी मौका मिला। कुछ हद तक अनन्या को राजन की कर्मठता और मृदु•ााव पसंद आने लगा था। और उधर, राजन तो पूरी तरह से अनन्या के प्रेम में डूब चुका था, पर इस विषय पर कुछ •ाी बोलने से डरता था। कहीं अनन्या उसे छोड़ न दे या फिर वह नाराज न हो जाए। अनन्या जहां काफी खुबसूरत थी, वहीं राजन एक सामान्य व्यक्तित्व का युवक। और तो और राजन के दोस्तों ने •ाी यही सलाह दी कि उसे ज्यादा न घूरा कर। तेरे व्यवहार में जो बदलाव आ रहा है वह सही नहीं   हैं। पर राजन अपनी दलीलों से उन्हें चुप करा देता था। प्रेम में सूरत नहीं सीरत की महत्ता होती है। तो उसके मित्र कहते कि तेरा प्रेम एकतरफा है, उसे यहीं खत्म कर दे। तो राजन उन्हें समझाता हर प्रेम अपनी शुरुआती दशा में एक तरफा ही रहता है और सच कहूं तो हर रिश्ता या प्रेम एक तरफा ही व्यवहार करता है। शायद ये एक तरफा प्रेम व स्नेही व्यवहार ही रिश्तों को मजबूत बनाए रखते हैं। सच कहें तो जब दिल में प्रेम का बीज पड़ जाता है तो वहां निराशा और बुराई जैसी घास नहीं जन्म लेती। वहां तो सिर्फ विश्वास और साकारात्मक बदलाव ही जीवित रह सकता है।

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