कुछ सवाल पूछना है उनसे












हर रोज एक ऐसा पल आता है

बीते वक्त की छांव को जो जीता है!

चंद मुस्कान और ढेरों गमों को लाता है
हंसते आंखों में उदास रेत भर जाता है!

कफन में दबी यादों को संजोकर
कफस में कैद कलेजे को जलाता है!

वो पूछता है इन हवाओं से चंद बूझे सवाल
गुजरे वक्त का लेखा-जोखा कहां रखा जाता है! 

उस वक्त से सवाल था कि कमी कहां रह गई
सांसें थमी उनके जाने के बाद तो जान क्यों रह गई!

कॉलेज की खूबसूरत राहेंवो उसकी हंसी से सजे कमरे
चमकते ब्रेंच पर उसके नाम की मुहर आखिर कहां गई!  

बाइक पर घूमते शहर की सड़कों का इतराना
पिकनिक की रौनक में पास बैठी वो हंसी कहां गई!

उसकी आवाज से वजू कर संवरने वाले दिन
रात की संगीत में खोकर भी रेख़्ता कैसे हो गए!

सवाल बहुत देकर चैन लूटने वाले दिन
गुमनाम करके हमेंकिस महफिल में खुद खो गए!

पूछना था कि उनकी चाहतों में हम कहां थे
उनके वक्त में उस कहानी की कब्र तो बनी होगी!

उन बीते वक्त की कोई मजार हो तो बताना
उनकी मुस्कान को याद कर दुआ जो करनी है!

माना अब न संवरेंगे आज के ये हंसते दिन
पर उस वक्त के इत्र से महक तो सकते हैं!

 

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