महिला शरिया अदालत में 66% मुंहजुबानी हो जाते हैं तलाक
http://goo.gl/B75lq9
2014 में महिला शरिया अदालत में तलाक के 235 केस आए थे
92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तलाक के वर्तमान नियम से नाखुश हैं
55 फीसदी औरतों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है
44 फीसदी महिलाओं के पास अपना निकाहनामा तक नहीं है
91.7 फीसदी महिलाएं अपने पतियों की दूसरी शादी के खिलाफ
53.2 फीसदी मुस्लिम महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं
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92.1% महिलाएं मौखिक तलाक से नाखुश
एक नए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारत की 92.1 फीसदी मुस्लिम महिलाएं फटाफट होने वाले मौखिक तलाक पर प्रतिबंध चाहती हैं। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) नाम का एक संगठन इस पर अध्ययन कर रहा है। इस अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि गुस्से में कई बार लोग ऐसे फैसले ले लेते हैं लेकिन अगर इसका प्रावधान थोड़ा लंबा हो तो मुमकिन है गुस्सा शांत होने पर बात इतनी आगे न बढ़े। वक्त बदल रहा है इसके साथ ही मौखिक तलाक पर भी प्रतिबंध लगाए जाने की जरूरत है।
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छोटी बातों पर हो रहे तलाक
देश में कई महिलाओं का तलाक टेलीफोन, एसएमएस या फिर फेसबुक जैसी सोशल साइट
पर हुआ। यहां सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि तलाक की मुख्य वजह अच्छा खाना न पकाना और कपड़ों व गहनों की बेहतरीन पसंद न होना सामने आई है। बता दें कि इस्लामी कानून में महिलाओं को पुरुषों की तरह कई अधिकार नहीं मिले हैं। ऐसे में मुस्लिम महिलाएं अपने आप को काफी असुरक्षित महसूस करती हैं।
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कहां से आया तलाक शब्द
इस्लाम में किसी पुरुष को अपनी पत्नी से अरबी भाषा का शब्द ‘तलाक’ तीन बार दोहराकर शादी का बंधन तोड़ने का हक बताया गया है। कई धार्मिक विद्वानों ने इसकी व्याख्या में बताया है कि महीने में एक बार ही तलाक बोलना चाहिए ताकि अंतिम बार तलाक बोलने तक लगभग तीन महीने फैसले पर सोचने का भरपूर समय मिले।
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सुप्रीम कोर्ट ने दिया था यह सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने शादी का पंजीकरण कराने और साथ ही स्त्री-धन व विवाह में दिए जाने वाले सामान की पूरी सूची जमा कराने का सुझाव दिया था। लेकिन अभी भी इस पर अमल नहीं किया जाता है। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शादियां टूटने से बचानी हैं तो उस सुझाव पर अमल किया जाना चाहिए। साथ ही स्कूलों में नैतिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को सिखाया जाना चहिए कि वैवाहिक जीवन को कैसे सफल बनाया जा सकता है।
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तीन गुना बढ़े तलाक के मामले
भारत में शादियां टूटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पति-पत्नी में झगड़े के कारण पिछले एक दशक में देश भर में तलाक की दर तीन गुना बढ़ गई है। मुंबई को तो तलाक की राजधानी कहा जाने लगा है। यहां पिछले वर्ष तलाक के 11 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए, वहीं लखनऊ में करीब दो हजार, जबकि दिल्ली में 10 हजार मामले सामने आए हैं।
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किस देश में क्या
पाकिस्तान: पाकिस्तान जैसे कई मुस्लिम देशों में तत्काल तलाक को गैरकानूनी घोषित किया गया है। इस्लाम में भी नशे, गुस्से या किसी आवेश में आकर तलाक देने की मनाही है। लेकिन इस पर दुनिया के कई देशों में अपने अलग नियम हैं। कई देश फटाफट तलाक के नियम की कड़ी निंदा भी करते
फिलीपींस: फिलीपींस और वेटिकन सिटी को छोड़कर दुनिया के सभी देशों में दंपति को तलाक लेने का कानूनी अधिकार है। हालांकि फिलीपींस में मुस्लिम जोड़े तलाक ले सकते हैं।
कनाडा: कनाडा में पहली बार 1968 में तलाक को लेकर कानून बना। यहां दंपती में से किसी एक के अत्याचार करने, विवाहेत्तर संबंध रखने और एक साल तक अलग रहने पर तलाक लिया जा सकता है।
फ्रांस
यहां तीन आधार पर तलाक लिया या दिया जा सकता है। पहला, परपस्पर सहमति। दूसरा दो साल से अलग रहना और तीसरा किसी एक पार्टनर की गलती होना।
यूरोपीय संघ में नया कानून
यूरोपीय संघ के लोगों को तलाक लेने के लिए एक देश चुनना होता है, जिसके नियम के मुताबिक वे जीवन साथी से अलग हो सकते हैं। ईयू के 27 में से 14 देशों में यह कानून 2012 से लागू है। 2007 में यूरोप में 10 लाख तलाक हुए। इनमें लगभग 13,000 जोड़े अलग-अलग नागरिकता के थे। नए नियम में जोड़ों को सुविधा होगी कि वे अलग-अलग देशों में रह रहे हों या किसी तीसरे मुल्क में, अपनी मर्जी से तलाक लेने का देश चुन सकते हैं।
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17 फीसदी लोगों की जिंदगी में परेशानी का सबब फेसबुक
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14 फीसदी के रिश्तों में माईस्पेस बनता है दरार की वजह
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05 प्रतिशत तलाक के लिए ट्विटर से दिए जाते हैं सुबूत
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हर पांचवें तलाक की वजह फेसबुक
फेसबुक और ट्विटर के बारे में कहा जाता है कि इसके जरिए दुनिया भर के लोग एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। हजारों मील की दूरियां मिट रही हैं लेकिन घर के हालात दूसरे हैं। हर पांचवें तलाक की वजह भी फेसबुक ही बन रहा है। अमेरिकन अकादमी ऑफ मैट्रिमोनियल लॉयर्स के एक सर्वे के मुताबिक अमेरिका में तलाक के 20 फीसदी मामलों के पीछे सोशल नेटवर्किंग साइट जैसे फेसबुक-ट्विटर का हाथ है। सर्वे बताता है कि तलाक के मुकदमे लड़ने वाले वकील भी पुष्टि करते हैं कि लोग अपने साथी की बेवफाई साबित करने के लिए फेसबुक सबूतों का सहारा ले रहे हैं।
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सोशल साइट बनीं सौतन
66 फीसदी तलाक के लिए फेसबुक सबूत के तौर पर इस्तेमाल हो रहा
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50 फीसदी लोग अपने पार्टनर के फेसबुक एकाउंट पर नजर रखते हैं
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58 फीसदी लोग अपने पार्टनर के लॉग-इन से जुड़ी जानकारियां रखते हैं
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25 फीसदी दंपती में फेसबुक की वजह से हफ्ते में एक बार लड़ाई होती है
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http://goo.gl/B75lq9
2014 में महिला शरिया अदालत में तलाक के 235 केस आए थे
92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तलाक के वर्तमान नियम से नाखुश हैं
55 फीसदी औरतों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है
44 फीसदी महिलाओं के पास अपना निकाहनामा तक नहीं है
91.7 फीसदी महिलाएं अपने पतियों की दूसरी शादी के खिलाफ
53.2 फीसदी मुस्लिम महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं
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92.1% महिलाएं मौखिक तलाक से नाखुश
एक नए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारत की 92.1 फीसदी मुस्लिम महिलाएं फटाफट होने वाले मौखिक तलाक पर प्रतिबंध चाहती हैं। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) नाम का एक संगठन इस पर अध्ययन कर रहा है। इस अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि गुस्से में कई बार लोग ऐसे फैसले ले लेते हैं लेकिन अगर इसका प्रावधान थोड़ा लंबा हो तो मुमकिन है गुस्सा शांत होने पर बात इतनी आगे न बढ़े। वक्त बदल रहा है इसके साथ ही मौखिक तलाक पर भी प्रतिबंध लगाए जाने की जरूरत है।
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छोटी बातों पर हो रहे तलाक
देश में कई महिलाओं का तलाक टेलीफोन, एसएमएस या फिर फेसबुक जैसी सोशल साइट
पर हुआ। यहां सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि तलाक की मुख्य वजह अच्छा खाना न पकाना और कपड़ों व गहनों की बेहतरीन पसंद न होना सामने आई है। बता दें कि इस्लामी कानून में महिलाओं को पुरुषों की तरह कई अधिकार नहीं मिले हैं। ऐसे में मुस्लिम महिलाएं अपने आप को काफी असुरक्षित महसूस करती हैं।
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कहां से आया तलाक शब्द
इस्लाम में किसी पुरुष को अपनी पत्नी से अरबी भाषा का शब्द ‘तलाक’ तीन बार दोहराकर शादी का बंधन तोड़ने का हक बताया गया है। कई धार्मिक विद्वानों ने इसकी व्याख्या में बताया है कि महीने में एक बार ही तलाक बोलना चाहिए ताकि अंतिम बार तलाक बोलने तक लगभग तीन महीने फैसले पर सोचने का भरपूर समय मिले।
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सुप्रीम कोर्ट ने दिया था यह सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने शादी का पंजीकरण कराने और साथ ही स्त्री-धन व विवाह में दिए जाने वाले सामान की पूरी सूची जमा कराने का सुझाव दिया था। लेकिन अभी भी इस पर अमल नहीं किया जाता है। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शादियां टूटने से बचानी हैं तो उस सुझाव पर अमल किया जाना चाहिए। साथ ही स्कूलों में नैतिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को सिखाया जाना चहिए कि वैवाहिक जीवन को कैसे सफल बनाया जा सकता है।
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तीन गुना बढ़े तलाक के मामले
भारत में शादियां टूटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पति-पत्नी में झगड़े के कारण पिछले एक दशक में देश भर में तलाक की दर तीन गुना बढ़ गई है। मुंबई को तो तलाक की राजधानी कहा जाने लगा है। यहां पिछले वर्ष तलाक के 11 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए, वहीं लखनऊ में करीब दो हजार, जबकि दिल्ली में 10 हजार मामले सामने आए हैं।
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- दिल्ली की पारिवारिक अदालतों में हर वर्ष दस हजार से अधिक तलाक की अर्जियां डाली जाती हैं
- बता दें कि 1960 के दशक में यहां एक वर्ष में तलाक के एक या दो मामले ही सामने आया करते थे
- मुंबई में 2002 के बाद से रोज यदि पांच शादियां पंजीकृत होती हैं तो तलाक के दो मामले भी दर्ज होते हैं
- केरल, पंजाब और हरियाणा में भी तलाक के मामले बढ़े हैं, तीनों राज्यों की पारिवारिक अदालतों में 2009-10 में तलाक के 11,600 मामले दर्ज किए गए
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किस देश में क्या
पाकिस्तान: पाकिस्तान जैसे कई मुस्लिम देशों में तत्काल तलाक को गैरकानूनी घोषित किया गया है। इस्लाम में भी नशे, गुस्से या किसी आवेश में आकर तलाक देने की मनाही है। लेकिन इस पर दुनिया के कई देशों में अपने अलग नियम हैं। कई देश फटाफट तलाक के नियम की कड़ी निंदा भी करते
फिलीपींस: फिलीपींस और वेटिकन सिटी को छोड़कर दुनिया के सभी देशों में दंपति को तलाक लेने का कानूनी अधिकार है। हालांकि फिलीपींस में मुस्लिम जोड़े तलाक ले सकते हैं।
कनाडा: कनाडा में पहली बार 1968 में तलाक को लेकर कानून बना। यहां दंपती में से किसी एक के अत्याचार करने, विवाहेत्तर संबंध रखने और एक साल तक अलग रहने पर तलाक लिया जा सकता है।
फ्रांस
यहां तीन आधार पर तलाक लिया या दिया जा सकता है। पहला, परपस्पर सहमति। दूसरा दो साल से अलग रहना और तीसरा किसी एक पार्टनर की गलती होना।
यूरोपीय संघ में नया कानून
यूरोपीय संघ के लोगों को तलाक लेने के लिए एक देश चुनना होता है, जिसके नियम के मुताबिक वे जीवन साथी से अलग हो सकते हैं। ईयू के 27 में से 14 देशों में यह कानून 2012 से लागू है। 2007 में यूरोप में 10 लाख तलाक हुए। इनमें लगभग 13,000 जोड़े अलग-अलग नागरिकता के थे। नए नियम में जोड़ों को सुविधा होगी कि वे अलग-अलग देशों में रह रहे हों या किसी तीसरे मुल्क में, अपनी मर्जी से तलाक लेने का देश चुन सकते हैं।
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17 फीसदी लोगों की जिंदगी में परेशानी का सबब फेसबुक
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14 फीसदी के रिश्तों में माईस्पेस बनता है दरार की वजह
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05 प्रतिशत तलाक के लिए ट्विटर से दिए जाते हैं सुबूत
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हर पांचवें तलाक की वजह फेसबुक
फेसबुक और ट्विटर के बारे में कहा जाता है कि इसके जरिए दुनिया भर के लोग एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। हजारों मील की दूरियां मिट रही हैं लेकिन घर के हालात दूसरे हैं। हर पांचवें तलाक की वजह भी फेसबुक ही बन रहा है। अमेरिकन अकादमी ऑफ मैट्रिमोनियल लॉयर्स के एक सर्वे के मुताबिक अमेरिका में तलाक के 20 फीसदी मामलों के पीछे सोशल नेटवर्किंग साइट जैसे फेसबुक-ट्विटर का हाथ है। सर्वे बताता है कि तलाक के मुकदमे लड़ने वाले वकील भी पुष्टि करते हैं कि लोग अपने साथी की बेवफाई साबित करने के लिए फेसबुक सबूतों का सहारा ले रहे हैं।
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सोशल साइट बनीं सौतन
66 फीसदी तलाक के लिए फेसबुक सबूत के तौर पर इस्तेमाल हो रहा
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50 फीसदी लोग अपने पार्टनर के फेसबुक एकाउंट पर नजर रखते हैं
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58 फीसदी लोग अपने पार्टनर के लॉग-इन से जुड़ी जानकारियां रखते हैं
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25 फीसदी दंपती में फेसबुक की वजह से हफ्ते में एक बार लड़ाई होती है
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