जनसंख्या और जॉब के जंजाल में फंसा हिंदुस्तान
भारत युवाओं का देश है। यह तो हम सभी जानते हैं। विगत दशक में युवा छात्रों और बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ी इसके लिए कौन जिम्मेदार है। सरकार या समाज। आज या बिता हमारा कल। जनसंख्या और नौकरी तालमेल कैसे बैठा पाएगी कोई भी सरकार। खाद्यपदार्थों को कैसे पूरा करेगा समाज और सरकार। किसी भी समास्या के लिए प्रत्यक्ष तौर पर सरकार जरूर जिम्मेदार नजर आती है। पर, अप्रत्यक्ष तौर पर हमारे पूर्वज, समाज और बीती सरकारें भी जिम्मेदार होती हैं।
संयुक्त राष्ट्र में अर्थव्यवस्था और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन-डीईएसए) की हालिया रिपोर्ट आपको देखने और समझनै की जरूरत है। इसके अनुसार, 2027 तक भारत की आबादी चीन से अधिक हो जाएगी। अभी भारत में करीब 1.36 अरब लोग हैं और चीन में 1.42 अरब हैं। रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि 2050 तक हिन्दुस्तान 164 करोड़ जनसंख्या के साथ टॉप पर पहुंच जाएगा। अब इस जनसंख्या वृद्धि के लिए कौन जिम्मेदार। भारत की सरकारें तीन व चार दशकों से लगातार लोगों को इससे होने वाले दुष्परिणाम को लेकर चेताती रही हैं। इससे भोजन, परिवहन और नौकरी हर चीज प्रभावित होगी, पर समाज और आम लोगों ने इस पर आंख बंद कर जनसंख्या वृद्धि में अपना पूरा योगदान बनाए रखा। अब जब दिक्कत हो रही है तो सरकार को कोस कर अपनी गलती छुपा रहे हैं और युवाओं में मनोवैज्ञानिक आक्रोश पैदा कर रहे हैं। खैर सरकार का काम ही है हर समस्या पर ध्यान देना तो यह तो देगी ही। आपको जागरूक भी करेगी। वर्तमान के बाद आगामी सरकारें भी अलख जगाएंगी। पर, क्या आप इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। आपको यह जानने की जरूरत है कि 1901 में भारत की आबादी मात्र 23 करोड़ थी और यह सदी जब खत्म हुई तो वर्ष 2000 में तो हमने 1 अरब का आंकड़ा पार कर लिया। यानी आपने संसाधनों के उपयोग के लिए आज के युवाओं के सामने 100 सालों में 77 करोड़ की बढ़ोतरी का तोहफा दिया। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। क्या आप लोग इतने जाहिल और मूर्ख थे कि हम दो हमारे दो के श्लोगन को नहीं समझ पाए। और, खुद को ज्ञानी जताते हो समाज, संस्था और हर मंच पर। 1801 में जब भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल थे तो इसकी कुल आबादी 20 करोड़ से कम थी। चौकाने वाली बात है कि 2001 से 2011 के बीच 17.7% की दर से जनसंख्या बढ़ गई। यानी देश में इस 10 साल में 181.5 मिलियन लोग बढ़े। अभी अपने देश में प्रतिवर्ग किलोमीटर जनसंख्या घनत्व 416 है। अब ऐसे में इस छोटे से खंड से इतने लोगों को कहां से संसाधन आएगा।
इसे ऐसे भी समझें, यूएसए, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बांग्लादेश और जापान को मिला लें तब इनकी जनसंख्या भारत के बराबर पहुंच पाएगी। इससे यह भी समझ सकते हैं कि वहां जनसंख्या से जितनी दिक्कतें होती होंगी वो कुल मात्रा में भारत को भी प्रभावित कर रही होंगी। यहां यह भी जानना होगा कि भारत में सरकारी नौकरी में 4 से 10 प्रतिशत को ही जगह दी जा सकती है। ऐसे में अभी बड़ी संख्या में युवा सड़क पर रहेंगे। भारत में कृषि को दोयम दर्जे का बना देने के कारण यह रोजगार देने में सबसे पीछे है। पूर्व की सरकारों ने चुनाव जीतने के लिए तो जय किसान का नारा दिया पर जमीनी स्तर पर किसानों का हाल बुरा ही रहा। दूसरा विकल्प उद्योग और व्यापार। इसमें कई राज्य की सरकारें अपनी संकीर्ण राजनीतिक सोच के कारण भारत को अंधेरे कूंए में ढकेल दीं। इसका अच्छा उदाहरण पश्चिम बंगाल है, जो कभी हमारे देश का प्रतिनिधि और अमीर राज्य हुआ करता था। तीसरा विकल्प स्कील इंडिया है। इसके माध्यम से युवाओं को हुनरमंद बनाकर रोजगार करने व नौकरी पैदा करने वाला बनाया जा सकता है। पर, प्रशासनिक तौर पर यह भी फेल होता नजर आ रहा है। ऐसे में बेरोजगारी के लिए जिसे कोसना है कोस सकते हैं पर आगामी 10 वर्षों तक तो इसका हल काफी कठिन और अनिश्चितता से भरा है।
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