तूं दुर्गा , लक्ष्मी , सती , चंडी , कोई देवी न बन बनना है तो सिर्फ इंसान बन।। भूल और गलती के अधिकगर से खुद को वंचित न कर घर को मत बना मंदिर और गर्भगृह की मूरत न बन।। इंसान है और गलतियां तुझसे भी होंगी माफी के लिए सिर्फ और सिर्फ इंसान बन।। दया , धर्म , संस्कृति और सभ्यता की पोषक न बन मानवता की परिधि में गतिमान विज्ञान बन।। घर की दहलीज की लाज और लज्जा न बन राजनीति की पुरोधा और हर चौपाल की प्रधान बन।। बड़ा या विशाल कद वाली अनोखी नारी न बन इंसानों जैसी , इंसानों में बराबर के अधिकार वाली इंसान बन।। तोहफा , छूट , फ्री और खास दिवस में न सिमट हक-अधिकार को शिक्षा और बराबरी से ले सशक्त बन।। न डर , आगे बढ़ , तेरा भी ये पूरा जहां है अधिकारों को अब न मांग , हक से अपने अधीन कर।। देवी न बन , बनना है तो सिर्फ इंसान बन।। ---------------------------------------***------------------------------------------- मुझे चांद की तरह तुम पसंद नहीं हो न फूलों की तरह मुलायम , न कठोर मूरत।। मूझे मक्खन , मलाइ और दूध सी तुम पसंद नहीं हो न कोमल , मासूम , लाचार या दया की भिक्षु।। मुझे ...