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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बलूची विचार एक फतवा

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जिंदगी की राहों में सिर्फ कंकड़ बिछे होते तो शायद हम उसका कोई समाधान निकाल लेते। लेकिन इन कंकड़ों के बीच जो कांटे और शीशे के टुकड़े छिपे पड़े हैं वे सिर्फ लहूलुहान करते हैं। मैं नहीं जानता का जीवन क्या है और इसकी व्यवहारिकता क्या है? मेरे अपनों ने जो भी कुछ नीयम बताया वही जीवन का हिस्सा मान मैं चलता रहा। कभी स्वविवेक का प्रयोग नहीं किया, हां कभी प्रयोग करने की इच्छा भी  व्यक्त की तो उसे धृष्ठता में गुणित कर दिया गया। जीवन जीने के दौरान ऐसा लगा मानों मेरे लिए सारे रास्ते पहले से ही तय था। मेरा अपना न कोई वजूद और न ही कोई चरीत्रव्यवहार ही है।   फिर भी मैंने एक बार न चाहते हुए एक गलती कर दी। समाज द्वारा दिखावटी सोच और व्यवहार को दरकिनार कर किताबों, ग्रंथों और दिवारों तथा जुबान निश्चित हुई नैतिक व्यवहार को अपने चरित्र पर चादर की तरह ओढ़ लिया। और देर न लगी चारों तरफ हाहाकार मच गई। मैंने वह कार्य कर दिया, जिसमें कइयों की स्वीकृति आवश्यक थी, ऐसा मुझे जताया गया। तब मालूम चला की भावनाएं अपनों की गुलाम हैं। ऐसे में जिन्हें मैंने अपने रक्त और जीवन से भी...

पश्चिमी सभ्यता को दोष मत दो

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आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बलात्कार एवं महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव पर बयान दिया कि यह सबकुछ पश्चिमी सभ्यता के कारण हो रहा है। विहिप के नेता अशोक सिंघल सहित आशाराम बापू आदि ने ऐसा ही बयान दिया। बयान देने से पहले इन्हें सोचना तो चाहिए कि हमारी सभ्यता में कुछ न कुछ खामी जरूर है, तभी तो हमारे लोग दूसरी सभ्यता से प्रभावित हो जाते हैं। यूरोप एवं अमेरिका का समाज तो नहीं कोसता कि उनके लोग हिन्दू सभ्यता से बिगड़ रहे हैं, जबकि ऐसी संभावना पूरी-पूरी है, क्योंकि हमारे लोग बड़ी संख्या में इन देशों में रहते हैं। अमेरिका एवं यूरोप के लोग बहुत कम संख्या में भारत में हैं और वे व्यापार या सरकारी जिम्मेदारी पूरा होते ही अपने देश वापिस लौट जाते हैं न कि यहां पर रच और बस जाएं। बेहतर होता कि ये लोग अपनी सभ्यता की खामियों को स्वीकार करते हुए दूर करते। हमारी सभ्यता का आधार जातीय व्यवस्था है और इस व्यवस्था के शिकार जितना दलित, आदिवासी एवं पिछड़े हैं, उतना ही महिलाएं। हजारों वर्षों से सवर्ण समाज इस व्यवस्था को सर्वोत्तम कहते थकता नहीं और दूसरों को कमतर। यूरोप एवं अमेरिका के लोग शाय...

जले पर नमक न छिड़कें

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यौन उत्पीड़न के बढ़ते अपराधों का शिकार हो रही भारत की मां-बहनों और बह्ू-बेटियों के आंसू पोंछने की बजाय धर्म और मव्वाली संस्कृति के तथाकथित ठेकेदार इन दिनों ऊल-जलूल बातें करके उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहें हैं।  छतीसगढ़ में भाजपा सरकार के गृह मंत्री नानकी राम कंवर ने गैर-जिम्मेदाराना सार्वजनिक बयानबाजी की सारी हदें लांघ ली हैं। उन्होंने कहा कि बुरे ग्रहों के चलते महिलाओं से बलात्कार किए जा रहे हैं। इंटरनेट और उन्नत टक्नोलॉजी के इस जमाने में राज्य का गृह मंत्री अगर इस तरह की छिछोरी बात करे तो उसकी मतिभ्रष्टता पर तरस आता है। और उस पार्टी पर भी गुस्सा हुए बिना नहीं रहा जा सकता, जो ऐसे गैर-जिम्म्दाराना नेता को गृह मंत्री जैसे पद पर विराजमान किए हुए हैं। सोमवार को छत्तीसगढ़ में एक अध्यापक द्वारा वाचमैन के साथ मिलकर प्री-मैट्रिक की 11 कबायली छात्रों के साथ लंबे समय से दुष्कर्म किए जाने का मामला उजागर हुआ था। एक ओर जहां पूरा देश इस घिनौने अपराध से शर्मसार हुआ जा रहा था, वहीं राज्य के गृह मंत्री नानकी राम कंवर पत्रकारों से बातचीत में छात्रों से बलात्कार के इन मामलों के लिए ...

दोस्ती

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                                                  esme ek dost ne apne jajbaat udele hain. . जब याद का किस्सा खोलूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं. मैं गुजरे पल को सोचूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं..अब जाने कौन सी नगरी में आबाद हैं जाकर मुद्दत से....मैं देर रात तक जागूं तो कुछ दोस्त बहूत याद आते हैं ... कुछ बातें थी फूलों जैसी, कुछ लहजे खुसबू जैसे थे...मैं शहरे चमन में टहलू तो कुछ दोस्त बहूत याद आते हैं....वो पल भर की नाराजगियां और मान भी जाना पल भर में ...अब खुद से भी जो रूठूं तो कुछ दोस्त बहूत याद आते हैं .....

मैं दुआ करूंगी

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विभा  बघेल आज मै आपको यह बताना चाहती हूं कि जितने बड़े अपराधी और हैवान लड़की का बलात्कार करने वाले थे, उससे कम बड़े अपराधी वो लोग नहीं जो उस सड़क से गुजरे होंगे, लेकिन सड़क पर जखमी पड़े दो लोगों को देखकर रुकने की जरूरत नहीं समझी होगी। वास्तव में मेरा मानना है कि हिम्मत सलमान खान और अक्षय कुमार की तरह एक्शन और स्टंट सीन्स करने में नहीं होती। हिम्मत अपने आस-पास हर रोज, हर लम्हे लिए जाने वाले एक्शन में होती है, जिसमें दूसरों की मदद करना, दूसरों का सम्मान करना और सही-गलत की पहचान करना होता है।      वास्तव में देखा जाए तो लड़की होकर पैदा होना किसी दुनिया में, किसी देशकाल में, किसी तरह के वातावरण में आसान नहीं रहा। लेकिन अगर देश और समाज बदलाव की किसी गहरी और तेज प्रक्रिया से होकर गुजर रहा होता है तो उसका सबसे बड़ा खामियाजा लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है। तुम जितनी तेज रफ्तार से अपनी आजादी की ओर बढ़ोगी, अपने हक में आवाज उठाओगी उतनी ही तेजी से तुम्हें अपमानित किए जाने के रास्ते ईजाद किए जाएंगे। इनमें से सबसे आसान तरीका तुम्हारे जिस्म पर, तुम्हारी अस्मित...