बुराइयां जरूरी हैं.. part-2
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sukhna lack par dosto sang adiya dev pandey |
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badla jab jhoome tab chandigadh avash ke upara kuchh aisa najara tha % aditya dev |
आदित्य देव पांडेय
एक बार भगवान शिव को समुंद्र मंथन में प्राप्त हुई बुराई यानी विष को पीना पड़ा और इसी बुराई ने उन्हें निलकंड के तौर पर देवताओं में स्थापित कर दिया और समाज में यह शिक्षा भी दी कि बुराई के वरण से नहीं उसके प्रभाव से दूर रहो। यही नहीं यदि कभी दुनिया बचाने के लिए बुराई को ग्रहण करना पड़े तो भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है। भगवान शिव ने उस बुराई को पूर्ण रूप में अपने में समाहित कर उसके असर को फैलने से रोक दिया। यहां एक बात और है कि यदि वह बुराई न होती तो शायद कहानी कुछ उदास और बोझिल होती। इस बुराई के करीब जाने के बाद ही वह समझ आया कि जिस आत्मा पर बुराइयों का प्रभाव हो जाता है, वह कितना कष्ट झेलती है। शायद यही वजह है कि भगवान शिव दैत्यों के भी भगवान माने जाते हैं। क्योंकि वह जान चुके हैं कि बुराइयां जिसके अंदर होती है, वही इसके दर्द को महसूस कर सकता है, उसे जान व समझ सकता है। वास्तव में बाहरी व्यक्ति तो सिर्फ उसे बुरा व दानव कह भाग ही सकते हैं। किंतु उसे सत्य की राह पर लाने वाला तथा इन बुरे लोगों को सद से परिचित कराने वाला ही महान हो सकता है। हालांकि भगवान शिव ने इस बुराई यानी विष के प्रभाव को खत्म करने या अपने को उस बुराई के कष्ट से मुक्त कराने के लिए विश्राम का सहारा लिया तथा लोगों को यह बताया कि सत्य वह ब्रह्म स्वरूप है और उसके शरण में जाने के बाद विष भी अमृत बन जाता है। ऐसे में भगवान शिव ने विश्राम का सहारा लिया। विष उनके कंठ में था और राम उनकी जिह्वा पर। इस विश्राम के बाद ही वह आराम महसूस कर सके। यहां राम का अर्थ किसी दशरथ पुत्र राजा राम से नहीं है। न ही, किसी अयोध्यापति से ही बल्कि यहां राम उस परमब्रह्म से है जिसमें संपूर्ण चराचर जगत का व्यवहार छिपा है।
खैर हम बात कर रहे थे बुराई की। अक्सर आप देखते होंगे और कभी-कभी तो आपको गुस्सा भी आता होगा कि आखिर रास्तों पर इतने व्यवधान क्यों हैं? क्यों रेड लाइट लगाई गई है? क्यों घंटों ट्रेनों को रोक दिया जाता है? क्यों लाइने लगी हैं? पर आप उस समय कभी भी यह नहीं देखना या महसूस करना चाहते हैं कि यह यह अव्यवस्था नहीं अपित व्यवस्था है। जब आप रुके होते हैं तो बहुत सारे कमजोर और आवश्यक नियमवाली के पालक आसानी से मार्ग बदलते हैं अथवा पार कर लेते हैं। यदि यह व्यवस्था न होती तो शायद वहां दुर्घटनाओं का अंबार लग जाता। यही नहीं आप क्रोधित हो जाते हैं कि ट्रेन रोकने की क्या जरूरत है। उस वक्त सिर्फ आपका दिमाग आपके व्यक्तिगत कष्ट को ध्यान में रखकर विचार प्रकट करता है। किंतु आप जब इसे संपूर्ण व्यवस्था और उस लंबी गाड़ी में बैठे पूरे यात्रियों की सुरक्षा के दृष्टिकोण के आधार पर सोचेंगे तो पाएंगे कि वह अवरोध या रुकावट नितांत आवश्यक है। स्वार्थ निश्चित नियमों को तोड़ आपके हित का पोषक होती है किंतु यह कई अहितकर कार्यों को भी जन्म देती है, जो समाज पर कुप्रभाव को प्रभावित करता है। वास्तव में कई अंधेरा यानी रात हर रोज हमारे जीवन शैली को प्रभावित कर अवरोध को जन्म देता है। अवरोध एक बुराई है। किंतु यही अंधेरा आपको वह समय देता है जिसमें आप यह महसूस करें या समझ पैदा करें कि आप आज कुछ गलत तो नहीं कर बैठे या आपने जो कार्य आज संपादित किया है उसमें क्या अब और बेहतर प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है। वास्तव में यह बुराइयां हमारे जीवन में अवरोध नहीं पैदा करते बल्कि तेज रफ्तार से भागते हमारे दिमाग को आलंबन प्रदान करते हैं। यह हमें चेतना से परिचित कराते हैं तथा यह भविष्यगत गलतियों पर विराम लगाते हैं।
यहां एक बात तो तय है कि बुराई को सभी समझते हैं अथवा जानते हैं। वह झूठ, चोरी, धोखा, रुकावट अथवा किसी भी रूप में आपके आस-पास निवास करती है। ऐसे में यह सोचना कि फला व्यक्ति ने मुझसे झूठ बोला या आमुक ने मुझे इस काम में फंसाकर बहुत गलत किया। तो यहां मेरा मानना है कि नहीं यह गलत नहीं हुआ आपके साथ। एक विचार के आधार पर यह नियती में था कि आपके साथ ऐसा होगा और वह आपका मित्र या परिचित ही इसका अध्येता बनेगा। किंतु दूसरा पहलू यह भी है कि उस व्यक्ति के कारण ही आपको एक ऐसे अनुभव का अनंद मिला, जो सिर्फ आपने किसी की जुबानी सुनी थी अथवा कभी महसूस ही नहीं किया था। या फिर यह कहें कि आपके जीवन में उससे जो भी प्रभाव पड़ा उससे आपको भौतिक हानि हो सकती है, किंतु यह आपका व्यक्तिगत विचार है। क्योंकि मुद्रा मरती या नष्ट नहीं होती। वह सदैव गतिमान रहती है। भविष्य में फिर आपके पास वह पहुंचेगी। अत: पूर्व के क्रियाओं पर स्वयं अवरोध का रूप ग्रहण कर खुद व्यवधान न बन आगे की सोचें। पूराने पर पछतावा आगे के विकास में बाधक का कार्य करता है। कुछ लोग यह कहते हैं कि आमुक ने मेरे सम्मान पर अंगुली उठाई है, तो आपको बता दूं कि आपके सम्मान को कोई भी व्यक्ति प्रभावित नहीं कर सकता। सिर्फ अपने पर विश्वास रखना सीखें। इसका जिवंत उदाहरण एक महिला ने आपके सामने रखा था। जी हां देवी सीता। शायद ही इनसे ज्यादा किसी ने अपमान और कष्ट दोनों एक साथ झेलें हों, लेकिन उनका विश्वास और कर्मठ व्यवहार ही उनका आलंबन बना। सही है कभी भी आप प्रयोग करके इस विधि को देखना, आपको अनंद मिलेगा।
कोई आपकी बुराई करे अथवा आप पर दोष मढ़े। ऐसी दशा में आप सिर्फ शांत हो मुस्कराते हुए अपने कार्य को बिल्कुल सात्विक ढंग से करते जाइए। इन बातों पर ध्यान न देते हुए अपने अच्छाई और सदाचार पर विश्वास रखते हुए तंमयता से जीवन जीते जाइए। वास्तव में यही बुराइयां आपके व्यक्तित्व का गहना बन जाएंगी और समाज आपको एक विश्वसनीय एवं शक्तिशाली व्यक्ति मानने लगेगा। मेरा मानना है कि जो कुछ छड़ भर पहले हो चुका है, उसके लिए आने वाले बहुत सारे छड़ों यानी समय को कभी भी नष्ट नहीं करना चाहिए। इस दिमांग को क्यों उस बुराई अथव अवरोध को सौंप दें, जिसे हम आगे के विकास कार्य पर प्रयोग कर सकते हैं। यह बुराइयां ही तो हैं, जो हमें अच्छाइयों के करीब ले जाती हैं और यह चेतना पैदा करती हैं कि ऐसा आप न करना और यदि किसी के साथ ऐसा हो रहा है तो उसका साथी बन उसके आगे के लिए मार्ग प्रिसस्त करना। ऐसे में हम बुराई को ध्यान का केंद्रण न बना उसे मात्र एक औजार के तौर पर लें तो ज्यादा अच्छा होगा। कभी आप भी महसूस करके देखिएगा कि यह बुराइयों हमारे जीवन के लिए कितनी आवश्यक हैं। वास्तव में मुझे तो अब इनकी आदत पड़ गई है। अब सभ्यता और प्रकाश में रहने से ज्यादा अच्छा मैं असभ्यत समाज में महसूस करता हूं। क्योंकि यहां मुझे करने के लिए बहुत होता है तथा वहीं पर वास्तव में मेरे वजूद को एक आयाम मिलता है। यहां यह आभास होता रहता है कि अब जाकर मैं जीवन जी रहा हूं। मैं नीरस नहीं हूं और न ही प्रभावहीन ही हूं मैं। मेरे से कई बुराइयां प्रभावित हो मुझपर प्र्रहार करती हैं और मैं उनके छड़िक आनंद को असफल कर सत्य को स्थापित करता हूं। अब तो यही मेरी जीवनचर्या बन चुकी है।
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