अकेला हूँ, खामोश हूँ
अकेला हूँ, खामोश हूँ
आज खुद से भी दूर हूं।
एक अपने की तलाश में
आवेश का शिकार हूं।
क्रोध से अकाल हूं
प्रेम का विकार हूं।
अकेला हूं, खामोश हूं।
आज मन का कंगाल हूं।।
श्वेत पर लगा दाग हूं
चमक धोता वैराग हूं।
बुझता हुआ राख हूं
सूखे जलज का पाक हूं।
अकेला हूं, खामोश हूं।
आज अपराध का उद्गम भाव हूं।।
व्याकुलता का राज हूं
अनकही कोई बात हूं।
उलझी डोरियों की गांठ हूं
कटीले पथ का आघात हूं।
अकेला हूं, खामोश हूं।
आज कठोरता का प्रहार हूं।।
मैं कुंठा हूं, अवसाद हूं
दुखों का सरताज हूं।
सुख का शत्रु
मैं अनंत कष्टों का प्रकार हूं।
अकेला हूं, खामोश हूं।
आज हर व्यक्ति का व्यवहार हूं।।
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