यहां पर काल सर्पदोष की शांति का अनुष्ठान तुरंत होता है फलित
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नागों के राजा नागवासुकी का
यह प्राचीन मंदिर प्रयागराज (इलाहाबाद) की पवित्र भूमि पर करीब 10वीं शताब्दी से आस्था
का प्रतीक है। देश विदेश में ख्याति प्राप्त इस तीर्थ का बखान हमें पद्म पुराण के
पाताल खंड व श्रीमद्भागवत कथा में भी मिलता है। मान्यता है कि यहां पर काल सर्पदोष
की शांति का अनुष्ठान तुरंत फलित होता है। सतयुग में समुद्र मंथन के दौरान रस्सा
बनकर इन्होंने सहनशीलता से देवताओं को ढेरों लाभ उपलब्ध कराए। सुमेरु पर्वत से रगड़
खाने से चोटिल भी हो गए थे। इसके बाद वह मंद्राचल चले गए। पर जलन कम नहीं हुई तो भगवान
विष्णु ने उन्हें प्रयाग स्थित सरस्वती नदी का पान कर आराम करने का उपाय सुझाया।
इसके बाद प्रभु नागवासुकी जी को काफी आराम मिल गया।
बचपन से युवा अवस्था तक एक घर
और दूसरा नागवासुकी मंदिर अपना आवास रहा है। स्नान, आराम, पढ़ाई और पर्यटन जैसे अनेको प्रयोजनों में इसका प्रयोग
हमने किया। बिजली चली जाए या पानी न आए। कोई फर्क नहीं
पड़ता था। मंदिर परिसर और मां गंगा का तट हर समस्या को हर लेते थे। नागवासुकी जी को
शेषराज, सर्पनाथ, अनंत
और सर्वाध्यक्ष भी कहते हैं। आपने इन्हें भगवान शिव के गले में भी देखा होगा।
पुराण में यह कहा गया है कि मां
गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर जब आईं तो अपने वेग के चलते पाताल लोक में भी चली गईं।
यहां भगवान नागवासुकी के फन पर गिरीं और इस स्थान को भोगवती तीर्थ कहा गया। पास में
ही बसे वेणीमाधव के दर्शन के लिए नागवासुकी के साथ भोगवती तीर्थ भी यहां आए और यहीं
बस गए। नागवासुकी के पूर्व में मौजूद मां गंगा के पश्चिमी हिस्से को ही भोगवती तीर्थ कहा
जाता है।
क्रूर इतिहास
में दर्ज
नागपुर के शासक रघुजी भोषले ने 1739 में इलाहाबाद पर हमला किया था। यहां के
प्रधान शासक शूजा खान को मारकर इस शहर में खूब लूटपाट की गई। इस दौरान क्षतिग्रस्त
इस पवीत्र मंदिर का राज पंडित श्रीधर ने पुन: जिर्णोधार कराया और पक्के घाट बनवाए।
पदमपुराण के अनुसार, यहीं पर पाताल
क्षेत्र की उत्तरी सीमा खत्म होती है। यह क्षेत्र कभी विषधर नागों का प्रमुख निवास
था। मंदिर के गर्भगृह में शेषनाग व वासुकी नाग की मूर्तियां स्थापित हैं। लोक मान्यता
है कि एक बार औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने पहुंचा। उसने जैसे ही मूर्ति पर तलवार चलाई
भगवान नागवासुकी का भयंकर रूप देखकर वहीं बेहोश हो गया।
मंदिर परिसर के द्वार पर मां गंगा
पुत्र भीष्म पितामह की शर-शय्या पर लेटी प्रतिमा है, जिनसे श्रद्धालु द्ढ़ता और संकल्प सिद्धि
का वरदान प्राप्त करते हैं। यहां हर साल नाग पंचमी को विशाल मेले का आयोजन किया जाता
है। इसके अलावा नवरात्रि के दौरान मां काली यात्रा का महोत्सव काफी आकर्षक माना जाता
है।
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