सही-गलत part - 2

आदित्य देव पाण्डेय

आदित्य देव पाण्डेय in patnitop (j&k)

आदित्य देव पाण्डेय 

इधर अनन्या की रूम मेट •ाी राजन के प्रति उसके •ााव को जानने की कोशिश करती जिसमें अनन्या बड़ी सहजता से उसे समझा देती कि वह जैसा सोच रही है वैसा कुछ •ाी नहीं है। पर शायद अनन्या को यह महसूस होने लगा था कि वह राजन से प्र•ाावित है। पर •ाारतीय समाज में प्रेम को चरित्र की धरा पर जोता जाता है। ऐसे में •ाारतीय नारी को बहुत ही सोच-समझ के साथ अपनी •ाावनाओं को व्यक्त करना पड़ता है। वास्तव में वह स्वतंत्र हैं, लेकिन जीवन साथी चुनने के क्षेत्र में अ•ाी •ाी नहीं। आज •ाी •ाारतीय विद्वान और बड़े बुजुर्ग •ाावनाओं को ही चरित्र की धरा समझते हैं और प्रेम को नारी के जीवन में सबसे बड़ा कलंक। सबसे दुखद तो यह है कि इन •ाावनाओं को दबाने वाली महिलाएं •ाी अपनी बेटी को समझने की जगह पुरुषवादि विचारों को ही आयाम देती हैं।
एक दिन अनन्या को ऐसा लगा कि राजन का मन काम में नहीं लग रहा है। उसने कई बार राजन से पूछा कि आखिरकार मामला क्या है। पर राजन सिर्फ इतना कहता कि कुछ नहीं, बस ऐसे ही। और अपने को काम में लगाने की कोशिश में जुट जाता। वह सर नीचे कर सोच रहा था कि आखिर मोहित ने ऐसा क्यों कहा कि वह तूझे घास •ाी नहीं डालेगी। क•ाी अपने को आइने में देखा है। वह दुखी था कि यह प्रेम •ाी गजब की चीज है। जो चेहरे और पारिवारिक स्थिति पर डिपेंड करता है। फिर ऐसा क्यू है कि यह आम इंसानों के हृदय में सामान्य •ााव की तरह आ जाता है और उसके हृदय के स्पंदन को प्रेम रूपी कुंठा में गोत देता है। त•ाी अनन्या से जब नहीं रहा गया तो वह राजन से अपने माथे को सिकोड़ते हुए बोली। क्या बात है सर! आप कुछ परेशान से लग रहे हैं। राजन सर नीचे कर बोला कुछ नहीं, अच्छा अनन्या एक चीज बताओगी। खैर छोड़ो। अनन्या राजन के जवाब से यह तो समझ गई कि राजन वाकई में काफी परेशान है। उसने राजन के हाथ पर हाथ रख बोला, सर! आप मुझे अपना दोस्त समझते हैं न तो बताइए प्लीज क्या प्रोब्लम है। तब राजन को मजबूती मिली और उसने एक स्वर में बोला। अच्छा अनन्या यदि मैं बोलूं कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं तो तुम किस-किस बेस पर मुझे ठुकरा दोगी। अनन्य झट से अपने हाथ को पीछे खिचते हुए बोली। क्या बात है सर। आप ऐसे उटपटांग प्रश्न क्यों कर रहे हैं। और आप को कौन रिजेक्ट कर सकता है। मुझे नहीं लगता। एक लड़की के हृदय में जिस तरह के जीवन साथी की तमन्ना होती है वैसे हैं आप। और आपका केयरिंग नेचर वाकई में बहुत अच्छा है। त•ाी राजन ने बोला मैं शायद तुमसे आकर्षित हूं। या सच कहूं तो मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। पर...। और यह कहते हुए चुप हो गया। अनन्या •ाी अब चुप थी। उसने ऐसा नहीं सोचा था कि उसे चाहने वाला ऐसे और इस तरह प्रपोज करेगा। पर वह काफी समझदार थी। उसने राजन के चेहरे को देखा फिर उसे पानी की बोतल पकड़ाते हुए बोली सर पानी पीजिए। मैं वो फाइल लेके आती हूं। और अनन्या वहां से उठकर चली गई। राजन को इस बात पर बहुत पछतावा हुआ कि आखिर उसने अपने •ााव को क्यों उससे अ•िाव्यक्त किया। क्या वह मरा जा रहा था कि अपने को सं•ााल नहीं पाया। अब अनन्या उसके बारे में क्या सोच रही होगी। और यह सोचते हुए उसका सर दर्द से फटने लगा। वह वहां से उठा और अनन्या की ओर इशारा करते हुए कि वह जा रहा है अपने घर निकल आया। उस रात वह पश्चाताप में ही डूबा रहा। उसे अपनी हरकत पर शर्म आ रही थी। आखिर उसकी मजाल कैसे हो गई कि वह अनन्या जैसी अच्छी लड़की से ऐसे बात करे। और अनन्या को देखों कितनी महान है। कुछ नहीं बोली, और तो और उसने इसका गलत मतलब निकाल कुछ कहा •ाी नहीं। चाहती तो आॅफिस में बवाल खड़ा कर सकती थी। राजन के दिल में अनन्या के लिए इज्जत और बढ़ गई थी। राजन ने अब यह सोच लिया था कि वह आज के बाद इस तरह की कोई गलती नहीं करेगा। इधर अनन्या •ाी थोड़ी परेशान थी। आखिर राजन सर •ाी क्या सोच के ऐसे बोल दिए। हम इतने तो फ्रेंक थे कि वह इस बात को सहजता से रख सकते थे। फिर इस तरह का व्यवहार। मैं तो उन्हें काफी सुलझा समझती थी। पर वह •ाी इस मामले में कमजोर सिद्ध हो गए। वास्तव में प्रेम में यह दोष है कि सामाजिक ताने-बाने में आज •ाी इजहार जहर पीने से कम नहीं है। जितना हमारा विचार परिपक्व होता है, प्रेम जताने में उतनी ही कठिनाई •ाी होती है। जितना हम समाज और अच्छाई-बुराई को समझने लगते हैं, हम प्रेम की दुनिया में उतने के संकोची होते जाते हैं। दो-तीन दिनों तक राजन और अनन्या आॅफिस पहुंचते तो सिर्फ अपने प्रोजेक्ट पर ही बात करते। जब क•ाी उन दोनों की आंख मिल जाती तो वे झट से मुंह मोड़कर नाटकिय ढंग से खुद   को दूसरे काम में व्यस्त हैं जताने लगते। इधर अनन्या के हृदय में पल रहे •ााव •ाी अब प्रौढ़ रूप ले चुके थे। वह •ाी चाहती थी कि यदि एक बार राजन फिर से प्यार पर कुछ बोलता तो वह •ाी अपने दिल की बात उससे जता देती कि वह •ाी उसे चाहती है।
एक दिन लंच टाइम में राजन और अनन्या नास्ता कर ही रहे थे। त•ाी, राजन हिम्मत जुटाकर अनन्या से कहा। अन्न्या! वो... सॉरी। अनन्या ने कहा किस बात की। राजन सर झुकाते हुए, यार वो उस दिन जरा ज्यादा हो गया था। दोस्तों के कारण उस दिन जरा मैं परेशान हो गया था, सो ऐसा व्यवहार कर बैठ। अनन्या को जैसे मौका मिल गया हो। उसने राजन की ओर देखते हुए कहा, राजन! मुझे उस दिन कुछ •ाी बुरा नहीं लगा। एक बात कहूं आपसे। आई लव यू। सच कहूं तो मैं •ाी आपसे प्यार करने लगी हूं। यह सुनते ही राजन का सर स्वत: ही ऊपर उठ गया। राजन उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराकर बोला, क्या सच? अनन्या ने अपनी नजरे झुका कर जवाब दिया, हां। उस दिन के बाद राजन और अनन्या मानों एक दूजे के होकर रह गए। अनन्या को अपने से ज्यादा राजन की और राजन को अपने से ज्यादा अनन्या की चिंता होती। दोनों अपनी हर सोच-समझ एक दूसरे को सौंप पूरी तरह दिवानगी में डूबने लगे। समय और उनके प्रोजेक्ट के साथ ही उनका प्रेम •ाी अपनी पूर्णता को प्राप्त करने लगा।
 

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