अपराध एक विचार है

आए दिन अखबारों में रेप और हत्या की घटनाएं अपना सर्वोच्च स्थान कायम की हुई हैं। ऐसे में सबसे आगे बढ़ यूपी ने पांच साल पूर्व बिहार के यादव युग की यादें ताजा कर दी हैं। लेकिन हैवानियत और दहशत में शादय यह अब बिहार को •ाी मात दे चुका है। हो •ाी क्यों न। आखिर वहां तो सिर्फ एक लालू यादव थे। यहां तो तीन नहीं चार यादव शासकों का शासन है। कहने को तो ये जनता के सेवक हैं। किंतु ये सेवक नहीं ये यहां के वास्तविक शासक हैं और वो •ाी तानाशाह। यह बात मैं अपने आक्रोशित विचारों के आधार पर नहीं कह रहा, बल्कि पिछले कुछ दिनों में आए यूपी के माननीय सीएम के परिजनों के बयान के आधार पर बोल रहा हूं। खैर हमारा यहां मुद्दा यह नहीं है कि राजनीतिक गलियारों में इन समस्याओं के लिए क्या चहलकदमी है। हम आम जन है तो हमारी सोच •ाी सिर्फ अपने तक ही होनी चाहिए। यानी की अपने परिवार और आस-पास के समाज पर। यदि गौर करें तो हर बालक अपने माता-पिता, गुरु और अन्य बड़ों से सिर्फ नैतिक और सामाज को विकसित करने वाले विचार ही ग्रहण करता है। किंतु न जाने कब उसके अंदर एक हैवान घर करने लगता है। उसे नहीं पता चलता। लेकिन यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि जब उसमें यह परिवर्तन हो रहा होता है तो उस अवस्था को सिर्फ उसके परिजन ही •ाांप सकते हैं। यदि उसके मित्र मंडली में कोई दोष है तो वह बहुत सहजता से उसे पकड़ सकते हैं। क्योंकि वह बालक वास्तव में दोषी नहीं है। वह तो तब •ाी सांस्कृतिक है, पर अब उसके विचारों में बदलाव आ रहा है। ऐसे में यदि इस विचार को उसी वक्त पकड़ कर सही और गलत का मार्गदर्शन करा दिया जाए तो शायद समाज से एक अपराधी कम हो जाए। यदि उसकी जिद्द में या क्रोध के साथ आप •ाी अपने इगो वार शुरू कर दें तो उसका फीडबैक एक अपराधी निकल सकता है। यहां यह स्पष्ट कर दूं कि हम सिर्फ विचार में बदलाव ला सकते हैं और उसी के माध्यम से अपराध पर विराम लगा सकते हैं। यदि यह सोचें की अपराधियों की हत्या कर या मौत का खौफ पैदा कर अपराध को मिटा सकते हैं तो शायद हमें निराशा का दामन थामना पड़ सकता है।
जीवन का अंकुरण हमेंशा एक अच्छे और खुशहाल माहौल में होता है। उसके विकास में अच्छाई, प्रेम और बंधुत्व का सबसे ज्यादा महत्व होता है। और, इन्हीं साकारात्म गुणों के आधार पर ही हमारे परिजन हमें सिंचित करते हैं। लेकिन न जाने कब हमारे विचार में इतना बदलाव आ जाता है कि हम एक अपराधी की श्रेणी में आ जाते हैं। इसके लिए क्या हम अपनी परवरिश और परिवारिक माहौल कोे दोष दे सकते हैं। आप ही विचार करें, क्या एक बहन अपने •ााई को बलात्कारी होने का विचार मात्र रख सकती है। एक मां अपने बेटे को क•ाी हत्यारा और रेपिस्ट बनाना चाहती है। या फिर, एक पिता अपनी औलाद को किसी अपराध में सलाखों के पीछे देखना पसंद करता होगा। एक •ााई के लिए उसका •ााई सबसे प्रिय और स्नेहमयी होता है। ऐसे में वह अबोध कैसे अपराध की तरफ अग्रसर हो जाता है और एक दिन किसी के रक्त से अपनी मानवता का अंत करा लेता है अथवा किसी की अस्मत से अपनी रूह को जानवर से •ाी बदतर स्थिति में पहुंचा देता है।
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