तेरी यादों को ताबीज बनाकर पहना हूं
तेरी यादों को ताबीज बनाकर पहना हूं
सांंसों को तेरा आना जाना बना रखा हूं।।
मैं मुकम्मल हूं तेरी यादों से
इस रूह को छीना तो जान ही अब जाएगी।।
इस रूह को छीना तो जान ही अब जाएगी।।
तेरा होना, तेरा रहना, तुझसें यू गुफ्तगू करना।
तेरी सदाओं से लिपटकर कभी हंंसना, कभी रोना।।
बताते हैैं कि तू भी हंसती है मेरी वफाओं पर,
मैं भी चैन पाता हूूं तेरी मदहोश अदाओ पर।।
तेरी सदाओं से लिपटकर कभी हंंसना, कभी रोना।।
बताते हैैं कि तू भी हंसती है मेरी वफाओं पर,
मैं भी चैन पाता हूूं तेरी मदहोश अदाओ पर।।
चैन आया था मुझे तब दहलीज से हंसके तूं नीकली थी
सुना है तेरे दर पर आज मायूसी का साया है।
झरोखे तक निहारू पर एक सन्नाटा सा पसरा है,
क्या तूूूूने भी गम को मेरी तरह मजार बनाया है।।
सुना है तेरे दर पर आज मायूसी का साया है।
झरोखे तक निहारू पर एक सन्नाटा सा पसरा है,
क्या तूूूूने भी गम को मेरी तरह मजार बनाया है।।
न एक फिक्र भर भी न रोया था, न रोना है, न रोउंगा
तेरा वो हंसना, वो इठलाना आज भी मेरा हमसाया है।
तेरे आशियाने की रोशनी और बागों के फूल बतलाते हैं,
तूं कब रोई थी और कब तेरे चेहरे पर एक मायूसी आई थी।
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तेरा वो हंसना, वो इठलाना आज भी मेरा हमसाया है।
तेरे आशियाने की रोशनी और बागों के फूल बतलाते हैं,
तूं कब रोई थी और कब तेरे चेहरे पर एक मायूसी आई थी।
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तेरी नजरों का नजराना है मेरे जीवन का हर गम
इस तोहफे को आज भी पहनता हूूं जैैैैसे अनमोल रत्न।
इस तोहफे को आज भी पहनता हूूं जैैैैसे अनमोल रत्न।
तेरी आंखेें मानों मेरे जीवन का सुनहरा ख्वाब हो गईं,
हर सांस मेरी तेरी यादों की पनाहगाह बन गईं।
मेरी रूह मानो मुद्दतों से बेचैन थी कहीं
तेरी नजरों के नजरानें से खुशी की बादशाह बन गई।
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हर सांस मेरी तेरी यादों की पनाहगाह बन गईं।
मेरी रूह मानो मुद्दतों से बेचैन थी कहीं
तेरी नजरों के नजरानें से खुशी की बादशाह बन गई।
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उपवन के पुष्पों सी खिलती, मधुबन हो हमारे जीवन की
श्याम धवल सी छाया हो, सुख वैभव हो मेरे मन अर्पण की।।
श्याम धवल सी छाया हो, सुख वैभव हो मेरे मन अर्पण की।।
तुझे क्या कहूं पर, परिंदा या परियों की रानी
मेरा दिल अब बुनने लगा हैै तेरे संग जीवन की कहानी।।
मेरा दिल अब बुनने लगा हैै तेरे संग जीवन की कहानी।।
हालात गर मेरे बस में होते तो तेरे हाथ मेरे होते।
सहनाई गूंजती तेरे द्वारे और दुल्हा मैं और दोस्त बाराती होते।।
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तेरे मुखड़े को चांद मैं क्यों कहूं
जब तूं सजती हैै तो सूरज सी दमकती है।।
तेरी मुस्कान को फूल क्यों कहूं
जब हंसती है तो उपवन सी लगती है।
सहनाई गूंजती तेरे द्वारे और दुल्हा मैं और दोस्त बाराती होते।।
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तेरे मुखड़े को चांद मैं क्यों कहूं
जब तूं सजती हैै तो सूरज सी दमकती है।।
तेरी मुस्कान को फूल क्यों कहूं
जब हंसती है तो उपवन सी लगती है।

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