जीव हत्या का मनोविज्ञान है खतरनाक
हमारे कई संत और पंथ जीवों को लेकर समाज में काफी संवेदनशील व्यवहार की सीख देते हैं। वह मास्क पहनकर सुक्ष्म जीवों की जान का भी पूरा ख्याल रखते हैं। शायद यही वजह है कि हमारे देश के अधिकतर लोग (मानव) जीवों को लेकर प्रेम, करूणा व दया जैसे आदर्श मनोविज्ञान को जीते हैं। हम चूहे, सांप आदि जीवों को जहर देने या मारने से बेहतर जाली आदि में पकड़कर जंगल में छोड़ने को अच्छा विकल्प मानते हैं। यह निश्चित है कि कुछ लोग स्वाद के लिए जीव हत्या कर मांस खाते हैं। कुछ मनोरंजन के लिए उन्हें लड़ाते हैं। पर ऐसे लोगों की तादात कम है तभी तो प्रकृति में जीवों के प्रति आज भी प्रेम व आदर्श सोच बची हुई है।
भारत में तितली क्या टिड्डी व फतींगों पर भी प्रेम गीत व परवाने बन वियोग भरी रचनाएं लीखी जाती हैं। पर बात जब मानवता व प्रकृति की रक्षा की हो तो टिड्डियों पर स्प्रे से हमला क्या किसी देश व मानव पर भी गोले दागे जाते हैं। हम उस देश के लोग हैं जो चीटी को भी नहीं मारते। उन्हें आटा खिलाते हैं। हम क्वाइल भी इसलिए लगाते हैं कि मच्छर हमसे दूर रहे। हत्या का इरादा नहीं होता तब भी। हमारे पूर्वज व अभिभावक हमेंशा बताते हैं कि सफाई रखो। इससे कोई भी जीव व किटाणु आपके आसपास नहीं आएंगे। इससे हम स्वस्थ तो रहते ही हैं, साथ ही जीव हत्या से भी बच जाते हैं। कोई कोकरेच, चींटी, सर्प, जीवाणु व विषाणु हमारे आसपास नहीं पनपते, न आते हैं। हमारा पूरा ध्यान उनसे दूरी व बचाव का होता है। तब भी हत्या जैसी सोच हमारे जेहन में नहीं आती। कुछ क्रूर मानसिकता के बच्चे होते हैं जिन्हें चिटियों को कतार में मसलते आनंद आता है, पर ऐसी विकृत सोच लाखों बच्चों में से एक की ही हो सकती है।
मानव एक ऐसा जीव है जो हर जीव से प्रेम करता है। वह चाहे गधा हो या सुंदर का कोई कुत्ता। लावारिश जीवों को भी बिस्किट व दूध लोग देते हैं। शायद यही मानव की सहिष्णुता व प्रेम है कि आज बलि प्रथा समाज से खत्म होने के कगार पर है। यदि कुछ लोगों के स्वाद व ढोंगी आस्था की बीमारी को हटा दिया जाए तो मानवों का एक बड़ा वर्ग जीव हत्या की कल्पना भी नहीं करता। यह पौधों की पत्तियों व फूलों को तोड़ने से परहेज करता है। पौधे सूखते देख उसका दिल दुखी होता है। मानव जीवों के साथ ऐसे ही सहयोगात्मक रूप में रहता है जैसे परिवार के दो सदस्य। हर कार्य व व्यवस्था में एक दूजे का साथ और सहयोग। शायद इस जमीन पर अभी भी दया करूणा से भरे लोग ज्यादा हैं। तभी अन्य जीवों से मानव का समीकरण बेहतर बना हुआ है। प्रकृति खुशहाल है। मानव लगातार खुद को इस दृष्ठिकोण पर और बेहतर बना रहा है। आशा है कि भविष्य और आदर्शपूर्ण और प्रकृतिप्रेमी होगा।
Psychology of living is dangerous @adityadev #adityadev
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