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पतझड़ सा मैं बिखर जाऊंगा

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#aditya #adityadev #delhi #ncr #ghaziabad #love #pyar #ishq #muhabbad #up पतझड़ सा मैं बिखर जाऊंगा एक दिन सबसे जुदा हो जाउंगा पर मैं रहूंगा उनके आसपास सूखी गिरती बिखरी पत्तियों की तरह   खाद , मिट्टी धूल बनकर लिपट जाऊंगा अपनों के कदमों से हवाओं पर बैठ चुमूंगा अपनों का माथा हथेलियों से लिपट एहसास को जियूंगा जब तूफान आएगा तो दूर परदेश में बसे अपनों से मिलूंगा और लिपटकर प्यार करूंगा बारिश के पानी में घुलकर घर में भी आउंगा नमी बनकर पर अपने हिस्‍से के रिश्‍तों से कभी जुदा नहीं होउंगा   मैं पतझड़ से जरूर बिखरा हूं पर आस के साथ आसपास हमेशा ही रहूंगा।    

प्रेम का माप

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प्रेम की परिभाषा कैसे लिखुं कैसे इसकी मात्रा को बताउं। शब्‍दों का जाल में मीन जैसे फंसाऊं या काव्‍य धारा का बाढ़ लाउं। धरा से गंभीर प्‍यार के संगीत को कैसे हल्‍की हवा का बहाव बनाऊं।   कितना करता हूं प्रेम क्‍या इसी सवाल में उलझ जाउं। सौंप दूं सर्वस्‍व या प्रेम में ही विलीन हो जाउं। सूर्य ,  चंद्रमा ,  चांदनी लिखूं या ब्रह्मांड का आधार मानू। प्रेम को भावनाओं से तौलूं या अनंत सुखों का व्‍यवहार जानू। पुष्‍पों पर पड़ी ओस समझूं या वन उपवन का कौमार्य समझूं। प्रेम को निराकार रूप दो अंत से परे अनंत का स्‍वरूप दो। शून्‍य से सजा कर इसे तिमिर पर प्रभा को वार दो।   -----------------***      

ये दरिद्र मन दुखी था

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ये दरिद्र मन दुखी था छलावे का शौकीन था। कुंठा के अधीन था अज्ञानता का दीन था। क्रोध में तल्‍लीन था तनाव की जमीं था। सोच का श्मशान ये समझ से पराधीन था। धोखे का श्रोत था कपट का कपोल था। चिंता से पटा मन ये तन को सौंपता विकार था। ज्ञान का दिया जला इसका सर्वनाश कर। प्रेम को श्‍वास बना कुंठा का तूं नाश कर। दरिद्र मन को त्‍याग दे विकास का व्‍यापार कर। छल-कपट को छोड़कर अपनत्‍व का श्रृंगार कर।   -------------------***  

मेरी इश्क से अदावत थी

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मेरी इश्क से अदावत थी मुवक्किल थी तन्‍हाई। हाकिम ने पूछा जुदाई क्यों तो काजी ने दी गुनाहों की दुहाई। मुंसिफ ने प्यार की परख पे जो पूछा हर शख्स ने उंगली एक तरफ उठाई। लाज़िम है कि जालिम नहीं हूं पर इश्क की गली में घूमने की सजा पाई। जालिम नहीं जमाना ये संगीन जुर्म था यकीन का सिला कयामत से चुकाई। वफा खुदा से कर गया जो मिली फकीर की दुहाई।   मन्नते तो ना रहीं पर मिली मसर्रत सी कमाई।   ----------------------------------***  

इश्क तो बहुत था

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इश्क तो बहुत था पर रास्ते का पता नहीं। कहना तो बहुत था पर शब्द मिले नहीं।। ख्याल में बहुत था पर सोचा तो कुछ नहीं। ख्वाबों में दिखा पर पूरा कहीं नहीं।। राह पर दिखा पर नजर में नहीं। दिल में वो धड़का पर मिला कभी नहीं।। दुआ में वो रहा पर मिन्नतों में नहीं।   सांस में घुला रहा पर रूह बना नहीं।। प्यार से इबादत बना पर मीत बना नहीं। अपना बनकर ही चला पर साथ रहा नहीं। प्यार का अंजाम था ये पर पूरी दास्‍तां नहीं।     ----------------------------------***