प्रेम का माप
प्रेम की परिभाषा कैसे लिखुं
कैसे इसकी मात्रा को बताउं।
शब्दों का जाल में मीन जैसे फंसाऊं
या काव्य धारा का बाढ़ लाउं।
धरा से गंभीर प्यार के संगीत को
कैसे हल्की हवा का बहाव बनाऊं।
कितना करता हूं प्रेम
क्या इसी सवाल में उलझ जाउं।
सौंप दूं सर्वस्व या
प्रेम में ही विलीन हो जाउं।
सूर्य, चंद्रमा, चांदनी लिखूं
या ब्रह्मांड का आधार मानू।
प्रेम को भावनाओं से तौलूं
या अनंत सुखों का व्यवहार जानू।
पुष्पों पर पड़ी ओस समझूं
या वन उपवन का कौमार्य समझूं।
प्रेम को निराकार रूप दो
अंत से परे अनंत का स्वरूप दो।
शून्य से सजा कर इसे
तिमिर पर प्रभा को वार दो।
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चित्र नहीं चरित्र सुंदर होना चाहिए
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