ये दरिद्र मन दुखी था
ये दरिद्र मन दुखी था
छलावे का शौकीन था।
कुंठा के अधीन था
अज्ञानता का दीन था।
क्रोध में तल्लीन था
तनाव की जमीं था।
सोच का श्मशान ये
समझ से पराधीन था।
धोखे का श्रोत था
कपट का कपोल था।
चिंता से पटा मन ये
तन को सौंपता विकार था।
ज्ञान का दिया जला
इसका सर्वनाश कर।
प्रेम को श्वास बना
कुंठा का तूं नाश कर।
दरिद्र मन को त्याग दे
विकास का व्यापार कर।
छल-कपट को छोड़कर
अपनत्व का श्रृंगार कर।
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