संवरने के इंतजार में अस्तित्व खोती यमुना

आदित्य देव पाण्डेय

देश की राजधानी दिल्ली में यमुना को सजाने, संवारने को लेकर सरकारों ने वादे तो बहुत किए। पैसे भी काफी आवंटित किए पर जमीनी स्तर पर सब कुछ सिफर रहा। आज यमुना के हालात यह है कि वह नदि से ज्यादा नाला नजर आने लगी है। यमुत्रोत्री से स्वच्छ व स्वेत निकलने वाली यह दिल्ली में घोर काली नजर आती है। दशकों से स्वच्छता के वादे सिर्फ छलावा बनते नजर आ रहे हैं। दिल्ली का वजीराबाद बैराज यमुना के मैले आंचल का गवाह है। यहीं से यमुना दिल्ली मे प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को बढ़ने से रोक भी देता है। यहां यमुना एक तरफ साफ और दूसरी ओर मैली नजर आती है। यहां नदी का सारा पानी उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली को पीने का पानी मिल सके। आइए जानते हैं दिल्ली की समझ, जरूरत और यमुना की बदहाली की दास्तान... 
     उत्तराखंड के टिहरी-गढ़वाल जिले में यमुनोत्री का उद्गम स्थल है और यह इलाहाबाद में जाकर गंगा नदी में समाहित हो जाती हैं। यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने और इलाहाबाद के गंगा में मिलने के बीच यमुना नदी की कुल लम्बाई 1367 किलोमीटर है। हमारी कहानी 1367 किलोमीटर में से सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी में बहने वाले 22 किलोमीटर के दर्द भरे सफर की कहानी है। दिल्ली क्षेत्र में 18 नाले इस नदि में मिलते हैं। इसके बाद बची खुची दुर्गती औद्योगिक प्रदूषण से हो जाती है। इसकी स्थिति को देख कह सकते हैं कि यमुना भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। जल-पुरुष के नाम से प्रसिद्ध रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह कहते हैं कि दिल्ली जो एक अंतरराष्ट्रीय सिटी है। यहां यमुना के 22 किलोमीटर के सफर में 18 नाले गिरते हैं। ऐसे में इसकी पूरी यात्रा कितने नालों से गुजरती होगी।
    विशेषज्ञों का मानना है कि औद्योगिक प्रदूषण, बिना उपचार के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जान मानव सभ्यता के लिए काफी खतरनाक है। वहीं यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गंदगी का सीधे नदी में बहना भी हानिकारक है। इसके अलावा धार्मिक उत्सवों में प्रयुक्त तमाम मूर्तियां व पूजा सामग्री का नदी में विसर्जन भी अनुचित है। इससे लोगों को बचाव करना चाहिए और नदि की शुद्धता को बनाए रखने के लिए प्रयास करना चाहिए। वहीं सिटिजन फोरम फॉर वाटर डेमोक्रेसी के समन्वयक एसए नकवी का कहना है कि यमुना दिल्ली से लेकर चंबल तक सात सौ किलोमीटर प्रदूषण से काफी प्रभावित है। इस बीच यमुना किनारे दिल्ली, आगरा और मथुरा पड़ते हैं और ये इसे बद से बदतर कर देते हैं। यहां यमुना के पानी में ऑक्सीजन खत्म हो चुकी है। 

नदी में निरंतर बहाव जरूरी
हेजार्ड सेंटर के अनुसार, यमुना ऐक्शन प्लान के तहत इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल बदतर है तो इससे प्रशासनीक व्यवस्था की पोल खुल जाती है। नदी की स्वच्छता के लिए पानी का निरंतर बहाव जरूरी है। बांधों के निर्माण से नदियां अपना अस्तित्व खोती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट भी यमुना के हालात पर कई बार गंभीर टिप्पणी जता सरकार से परिणाम के बारे में पूछ चुका है। हालांकि की इतने के बाद भी काई सुखद परिणाम सामने नहीं आए। यमुना जहां संकीर्ण स्थिति में अपने अस्तीत्व की लड़ाई लड़ रही है। वहीं उसके नीचे बैठता गाद इसकी गहराई को खत्म करता जा रहा है। इससे हालात यह पैदा हो गए हैं कि बरसात में नदी का पानी आसपास के क्षेत्रों में फैल जाता है और गांवों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। वहीं नदी के आसपास मलबा डालने और जमीन ऊंची करने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। आपकों बता दें कि यमुना नदी दिल्ली क्षेत्र की जरूरत के 60 प्रतिशत जल की आपूर्ति करती है। यह स्थिति नुकसानदेह है।  


ट्रैश स्कीमर से यमुना साफ करने की योजना
नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत दिल्ली में यमुना नदी को कलकल बहता स्वरूप देने के लिए केंद्र सरकार ने ट्रैश स्कीमर से सफाई की योजना बनाई है। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, इस योजना के तीसरे चरण में करीब आठ अरब रुपए खर्च होने थे, जिसका 85 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार के नाम और बाकी 15 प्रतिशत राशि दिल्ली सरकार को देना था।  इस योजना के तहत दिल्ली में ही नहीं बल्कि मथुरा वृंदावन तक यमुना को प्रदूषण मुक्त किया जाना है। वहीं ओखला, कोंडली और रिठाला में 814 एमएलडी की क्षमता वाले मल शोधन संयंत्रों को और आधुनिक  किया जाएगा। ओखला में 136 एमएलडी क्षमता वाला एक अतिरिक्त मल शोधन संयंत्र लगाने की योजना है। वहीं आनंद विहार, झिलमिल कॉलोनी, अशोक विहार और जहांगीर पुरी जैसे क्षेत्रों में सीवर लाइनों की भी मरम्मत की जाएगी। छठ घाट का भी बड़े पैमाने पर पुनर्रुद्धार किया जाएगा।

यमुना को गंदा करने में 80 प्रतिशत हाथ दिल्ली का
दिल्ली में वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक 22 किलोमीटर यमुना को गंदा करने में 80 प्रतिशत योगदान दिल्ली का है। वजीराबाद पुल के पास नजफगढ़ का मुख्य नाला मिलता है। इसमें उत्तरी, पश्चिमी और बाहरी दिल्ली की करीब 70 प्रतिशत गंदगी गिरती है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की माने तो इस 22 किलोमीटर के क्षेत्र में 22 गंदे नालों से साढ़े चार लाख लीटर से अधिक गंदा पानी 41.50 घनमीटर प्रति सेकेंड की गति से गिरता है। ऐसे में इस पानी में जीवों का रहना दूभर हो गया है। हालात बद से बदतर हो चुके हैं। मछलियां खत्म हो चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय शहर होने के बावजूद भी दिल्ली यमुना की दुर्दशा के कारण शर्मशास है। बता दें कि यमुना में आर्सेनिक, अमोनिया और लौह तत्व के बढ़ जाने के कारण इसका शोधन असंभव होता जा रहा है। बता दें कि यमुना की सफाई पर करीब 5600 करोड़ रुपये की परियोजनाओं पर काम चल रहा है. 

सभी योजनाएं फेल
दिल्ली सरकार ने पिछले साल केन्द्र सरकार की संयुक्त परियोजना के तहत 825 करोड़ से ढाई वर्षों में यमुना को संवारने की कार्ययोजना तैयार की। लेकिन, जमीनी स्तर पर आज तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली सरकार को यमुना सफाई पर फटकार लगाते हुए पूछा था कि यह मामला 1994 से चल रहा है और सरकार गंदे नालों की सफाई के लिए जल शोधन संयंत्र तो दूर उन्हें लिंक (जोड़) भी नहीं कर पाई है। अदालत ने इस बात का विस्तृत शपथपत्र देने को कहा है। 

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-      90 के दशक से ही यमुना की गंदगी चर्चा का विषय बनी है।
-     1985 में प्रसिद्ध पर्यावरणविद एमसी मेहता ने यमुना के प्रदूषण पर उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी
-      1989 में इस याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यमुना नदी को साफ करने के निर्देश दिए थे 
- 1993 में यमुना की सफाई के लिए 680 करोड़ रुपये सरकार ने पहली कार्य योजना में लागू की 
- 2004 में 624 करोड़ रुपये वाली दूसरी कार्य योजना तैयार की गई
- 1998-99 में जल बोर्ड ने 285 करोड़ रुपये और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपये खर्च हुए
- 147 करोड़ रुपये डीएसआईडीसी ने अलग से यमुना की सफाई पर खर्च 
- 1376 किलो मीटर है यमुना की कुल लंबाई
- 172 किलोमीटर यमुनोत्री से ताजेवाला तक सबसे साफ है यमुना

किस नाले से कितना गंदा पानी गिर रहा
*  नजफगढ़ नाला 2064 एमएलडी
*  मैगजीन रोड नाला 12 एमएलडी
* स्वीपर कॉलोनी नाला 4 एमएलडी
* खैबर पास नाला 4 एमएलडी
* मैटकॉफ हाउस नाला 6 एमएलडी
* आईएसबीटी नाला 45 एमएलडी
* टांगा स्टैंड नाला 5 एमएलडी
* कैलाश नगर नाला 8 एमएलडी
* सिविल लाइन नाला 40 एमएलडी
* दिल्ली गेट पावर हाउस नाला 68 एमएलडी
* नाला नंबर-14, 08 एमएलडी
* बारापूला नाला 86 एमएलडी
* महारानी बाग नाला 33 एमएलडी
* अबू फजल नाला 26 एमएलडी
* जैतपुर नाला 19 एमएलडी
* तुगलकाबाद नाला 90 एमएलडी
* शाहदरा नाला 638 एमएलडी


- 20 वर्षों में 1514.42 करोड़ से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं यमुन की सफाई पर 
- 1656 करोड़ रुपये तीसरे चरण में संशोधित लागत के साथ मंजूरी दी गई है, जिसे दिल्ली जल बोर्ड द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। 

दिल्ली की जरूरत
- 381 करोड़ लीटर पानी जलबोर्ड यमुना से सलाई के लिए रोजाना लेता है 
- 246 करोड़ लीटर 17 प्लांट से पानी साफ करता है बोर्ड
- 150 करोड़ लीटर पानी प्लांट में ट्रीटमेंट किया जाता है, बाकी का शोधन नहीं होता 
- 60 प्रतिशत गंदा पानी ट्रीटमेंट के लिए नहीं पहुंच पाता 


इतना गंदा गिरता है यहां
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक जलबोर्ड के दिल्ली की 45 प्रतिशत आबादी का कचरा बिना ट्रीटमेंट के सीधे यमुना में नालों से गिरता है। नजफगढ़ ड्रेन इस मामले में सबसे आगे है। बता दें कि राजधानी दिल्ली में नजफगढ़ नाले से 61 प्रतिशत, शाहदरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से 6 प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुंचता है। यमुना में जाने वाले कुल बीओडी का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। 

यहां है समस्या की जड़
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक मंगोलपुरी, लॉरेंस रोड, एसएमए नांगलोई, झिलमिल, ओखला, वजीरपुर, नरेला और बवाना की औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण मानक के हिसाब से गलत है। राजधानी के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई सीवेज सिस्टम नहीं हैं। 


यमुना किनारे बनने हैं तटबंध
दिल्ली सरकार के अनुसार, वह यमुना नदी के किनारे-किनारे पांच किलोमीटर की लंबाई में 200 करोड़ रुपये की लागत से तटबंध का निर्माण कराएगी। यह घोषणा दिल्ली के तत्कालीन पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा ने की थी। उन्होंने कहा था कि वजीराबाद में यमुना नदी के ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में यह तटबंध बनेंगे जो तीन चरणों में पूरा होंगे। जहां तटबंध निर्माण होगा वहां पड़ने वाले दलदली इलाकों और हरित भूमि को और विकसित किया जाएगा।

कैसे इसमें जहाज चलेगी
यमुना में केंद्र सरकार जहाज चलाने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने एक कमेटी भी गठित कर दी गई है, लेकिन यमुना की हालत देख ऐसा कत्तई नहीं लगता कि यहां कभी जहाज तैर पाएगी। सही कहेंं तो नाव का परिचालन भी यहां कठिन है। बता दें कि दिल्ली में यमुना का बाढ़ जनित जलभरण क्षेत्र दो से तीन किलोमीटर है। इसे आप यमुना की पूर्ण चौड़ाई भी समझ सकते हैं। दूसरी ओर तीन-चौथाई दिल्ली का सीवर यमुना में ही गिरता है। कोर्ट केआदेश के मुताबिक यमुना में पानी का न्यूनतम प्रवाह 10 क्यूसेक होना चाहिए। पर, पल्ला और वजीराबाद के बीच के इलाके को छोड़ दें तो दिल्ली के कई इलाकों में इसका प्रवाह तीन क्यूसेक से भी कम है। 


पक्षियों ने भी डेरा बदला
गंदगी से यमुना जहां त्राहिमाम त्राहिमाम पुकार रही है, वहीं देश-विदेश से आकर यहां डेरा जमाने वाले प्रवासी पक्षियों ने भी मुंह मोड़ लिया है। ये बड़ी संख्या में घट रही हैं। बता दें कि वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला तक करीब तीन गांव हैं। इन्होंने भी यमुना के बहाव क्षेत्र पर अतिक्रमण कर रखा है और ये अवैध निर्माण कर रहे हैं। 

इसे भी जानें
- 48 किलोमीटर है पल्ला से ओखला तक यमुना की लंबाई
- 22 किलोमीटर है वजीराबाद से ओखला तक की लंबाई
- 97 वर्ग किलोमीटर का है यमुना का कुल फ्लड प्लेन एरिया 

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