मंगलदायनी हैं मां मंगला गौरी


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ऐतिहासिकता और सांस्‍कृतिक समृद्धि से परिपूर्ण राज्‍य बिहार में मौजूद गया दुनिया में काफी प्रसिद्ध है। बात इस मृत्‍युलोक से मुक्ति की हो या बोधी यानी ज्ञान प्राति की। गया शक्ति, ज्ञान व मुक्ति का अनुपम धाम है। यही नहीं, यहां मौजूद प्रेतशिला बेदी पर आप प्रेत आत्‍माओं से भी साक्षात्‍कार कर सकते हैं। बोध गया में ज्ञान और अध्‍यात्‍म प्राप्‍त कर सकते हैं और विष्‍णुपद में मोक्ष से परिचित हो सकते हैं। इसी क्रम में भस्मकुट पर्वत पर शक्ति पीठ मां मंगला गौरी का मंदिर है।
  मान्‍यता है कि मां सती का वक्ष स्‍थल यहीं पर गिरा था। इसी के चलते इस पावन शक्तिपीठ को पालनहार पीठ व पालनपीठ के तौर पर जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में यह कहानी है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी सती का जला शरीद लेकर तीनों लोकों में उद्विग्‍न होकर घूम रहे थे। भोले बाबा को दुखी देख भगवान विष्‍णु ने मां सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट दिया। मां के शरीर का टुकड़ा 51 स्‍थानों पर गिरा, जिसे शक्तिपीठ के तौर पर हम पूजते हैं। मंगलवार को यहां काफी श्रद्धालुगण आते हैं और मनोकामना पूर्ण होने का वर प्राप्‍त करते हैं। मंदिर के गर्भगृह में कई दशक से दीप प्रज्‍ज्‍वलित है।

डर से भक्ति तक का सफर  
भस्‍मकुट पर्वत पर पहले लोग जाने से काफी डरते थे। समय के साथ लोगों का भरोसा बढ़ता ही गया और आज मंगलागौरी मंदिर के गर्भगृह तक भक्‍तों का तांता लगा रहता है। यह मंदिर एक पर्वत पर है। इसे भष्‍मकुट पर्वत कहते हैं। इस शक्तिपीठ को असम के कामरूप में मौजूद मां कामाख्‍या देवी शक्तिपीठ के समान ही माना जाता है। आपको बता दें कि कालिका पुराण में भी यह जिक्र है कि गया स्थित भस्‍मकूट पर्वत पर मां स‍ती का स्‍तन मंडल गिरे और दो पत्‍थर बन गए। इस पालनपीठ के पत्‍थरों का स्‍पर्ष कर लोग अमरत्‍व प्राप्‍त कर ब्रह्मलोक को प्राप्‍त करते हैं। मां की वात्‍सल्‍यता से अभीभूत होते हैं। ममता से पूर्ण होते हैं। आपको बता दें कि यहां पर कुछ लोग अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म भी कराते हैं।     

मन मांगी मुराद होती है पूरी  
मंगला गौरी मंदिर का उल्‍लेख आपको पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण औन कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। कामाख्‍या धाम की तरह तांत्रिक कार्यों में इस मंदिर का भी काफी महत्‍व है। यहां आपको गर्भगृह के अंदर मां सती की प्रतिमा नजर आएगी। यह नक्‍काशीयुक्‍त काफी आकर्षक है। मंदिर परिसर में भगवान शिव और महिषासुर की प्रतिमा भी है। इसके अलावा मर्दिनी की मूर्ति, देवी दुर्गा और दक्षिणा काली की मूर्ति की भी यहां पूजा होती है। मंदिर के गर्भगृह में काफी अंधेरा रहता है, जिसे वर्षों से एक दीपक अखंड रूप से रोशन कर रहा है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको करीब 100 सीढि़यां चढ़नी पड़ती  हैं।  

महाशक्तिपीठ है मंगला गौरी मंदिर
पांचवीं सताब्‍दी में निर्मित यह मंगला गौरी मंदिर मां स‍ती को समर्पित है। इन्‍हें परोपकार और वात्‍सल्‍यता की देवी माना जाता है। इस शक्तिपीठ को 18 महाशक्तिपीठों में से एक माना जाता है। वर्षा ऋतु में यहां हर मंगलवार को विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रख परिवार की समृद्धि और पति के लिए सफलता व प्रसिद्धि का वर प्राप्‍त करती हैं। महिलाएं पूजा के दौरान 16 प्रकार की चूडि़यां मां सती को चढ़ाती हैं। इसके अलावा सात किस्‍म के फल, पांच तरह की मिठाई का भोग लगाती हैं। मां की मूर्ति या तस्‍वीर को दूध, दही व पानी से स्‍नान कराकर लाल कपड़े से श्रृंगार करती हैं। सिंदूर, मेहंदी व काजल लगाकर मां को सजाती हैं। स्‍तनों को पोषाहार मानते हुए मान्‍यता है कि मां हर मुराद यहां अपने बच्‍चों की पूरी करती हैं। मंदिर पर चढ़ाई शुरू करते वक्‍त आपको पांडवों में से एक भीम का मंदिर भी नजर आएगा, जो काफी दर्शनीय है। माना जाता है कि वहां मौजूद घुटने का चिह्न भीम के हैं। भीम ने यहां श्राद्ध कर्म किया था। इस जगह को भीमदेवी गया के नाम से भी लोग जानते हैं।   

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