सोनीपत में ठहरे थे महाभारत के योद्धा


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स्‍वर्णप्रस्‍थ यानी सोनीपत। ऐसे तो आधुनिक इतिहासकारों का कहना है कि इस नगर को करीब 1500 ई.पू. में आरंभिक आर्यों ने बसाया था। पर इस जगह के प्रमाण हमें महाभारत काल के इतिहास में भी प्राप्‍त होता है। छांदोग्य-उपनिषद यानी 1000 ईसा पूर्व महाभारत के पात्रों व जगहों का वर्णन मिलता है। यही नहीं, 3100 ईसा पूर्व में जनमेजय के सर्प यज्ञ समारोह में भी महाभारत का वर्णन है। इसके बाद 2000 ईसा पूर्व में से ‍वैशम्पायन के शब्‍दों में वहीं 1200 से 600 ईसा पूर्व में वर्णित कई पांडुलिपियों में भी महाभारत का उल्‍लेख मिलता है। इस दौरान युनान व अन्‍य विदेशियों ने भी इसका वर्णन किया है। अब आप सोच रहे होंगे महाभारत से स्‍वर्णप्रस्‍थ का क्‍या लेना देता तो आपको बता दें कि स्‍वर्ण प्रस्‍थ में ही महाभारत के योद्धा ठहरे हुए थे। यहीं पर रसद इत्‍यादि की व्‍यवस्‍था की गई थी। यहां पर उस दौरान चार कुंए भी खुदवाए गए, जिनमें से तीन को लोगों ने भरकर घर बना लिया। एक कुंआ स्‍वर्णप्रस्‍थ संग्रहालय के सहयोग से बचा लिया गया है, जो यहां के रामलीला मैदान में मौजूद है। आपको बता दें कि स्‍वर्णप्रस्‍थ यानी सोनीपत में समझौते व अन्‍य प्रयोजनों से भगवान कृष्‍ण भी तीन बार आए हैं। ऐसे में इस नगर की कहानी 1500 ईसा पूर्व नहीं, उससे कहीं पुरानी है।   
    आपने कभी यह सोचा कि कर्ण को अंग राज्‍य का राजा बना देने वाला दुर्योधन क्‍या वास्‍तव में दिल का इतना छोटा इंसान था कि उसने अपने भाइयों को पांच गांव देना भी मुनासिब नहीं समझा। आखिर उन पांचों गांवों को हस्तिनापुर की राजगद्दी के बदले पांडवों ने क्‍यों मांगा। ऐसा क्‍या था उन पांचों गांवों में जो दुर्योधन ने उनके बदले युद्ध का वरण किया। जुआ में हारने के बाद तेरह साल अज्ञातवास बिताकर पांडवों ने राजगद्दी के बदले पांच गांव मांगे। ऐसे में धृतराष्‍ट्र ने यमुना के किनारे का खांडवप्रस्‍थ क्षेत्र पांडवों को दे दिया। इन उजाड़ क्षेत्र को आबाद इंद्रप्रस्‍थ की नींव रखी। इन्‍हीं क्षेत्र में पड़ते हैं ये पांचों गांव।      
   पहला गांव था, पांडुप्रस्‍थ यानी पानीपत। कुरुक्षेत्र के निकट इस क्षेत्र को पांडवों ने बसाया था। दूसरा स्‍वर्ण प्रस्‍थ यानी सोनीपत यानी सोने का शहर। तीसरा इंद्रप्रस्‍थ यानी दिल्‍ली। खांडवप्रस्‍थ के इसी क्षेत्र में पांडवों ने अपना किला बनाया था। यह क्षेत्र दिल्‍ली के पुराने किले के पास माना जाता है। चौथा व्‍याघ्रप्रस्‍थ यानी बागपत। यूपी में बसा यह क्षेत्र कभी बाघों से आबाद हुआ करता था। इसी जगह पर पांडवों को भष्‍म करने के लिए लाक्षागृह बनवाया गया था। पांचवां गांव थ्‍ज्ञा तिलप्रस्‍थ यानी तिलपत। यह फरीदाबाद में पड़ता है।       

भाईचारे की मिसाल
यमुना किनारे बसी यह नगरी अब तट से 15 किमी पूर्व खिसक गई है। यहां आपको 1272 में निर्मित अब्‍दुल्‍ल नसीरुद्दीन की मस्जिद और 1522 में बने ख्‍वाजा खिज्र का मकबरा आपको काफी पसंद आएंगे। यहां पर पुराने किले के अवशेष भी मिलते हैं। सोनीपत जिला 22 दिसम्बर 1972 को अस्तित्व में आया था। कहा जाता है कि इसी नगर में पांडवों ने अपना खजाना रखा था। यहां 1871 में खुदाई के दौरान सातवीं शताब्‍दी के 1200 ग्रीको बैक्‍टेरियन्‍ज के अवशेष भी मिले हैं। यहां से यौधेय काल व हर्षवर्धन के समय के सिक्‍के व मोहर भी मिले हैं। 1866 में मिली शोरा की मिट्टी से बनी पक्‍की प्रतिमा इतिहासकारों को चौंकाती है। सोनीपत के मध्‍य में मौजूद विशाल दुर्ग के अवशेष के पास ही दरगाह सैयद नसिरु‍दीन (मामा-भांजा) भी नजर आता है। इसे गौड़ ब्राह्मण राजा ने शिव मंदिर निर्मित किया था। इसे हिन्‍दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। खैर आज तो मुस्लिम हिन्‍दू आस्‍था का सम्‍मान कर उन्‍हें उनके मंदिर नहीं लौटा सकते और न हिन्‍दू मध्‍य इतिहास की क्रूरता को भुला सकते हैं। इस शहर को और इतिहास को समझने के लिए आप यहां मौजूद स्‍वर्णप्रस्‍थ संग्रहालय भी जा सकते हैं। यह अंग्रेजों के तहसील में बनाया गया है जो शहर के सबसे ऊंचे टीले पर मौजूद है। कहा जाता है कि यह टीला पांडवों के बलशाली भाई भीम के पैर झाड़ने से बना था। तहसील भवन (संग्रहालय)  के बीच बना खजांची भवन की महबूती व किलेबंदी आपको चौका देगी। इसके साथ में अंग्रेजों की अदालत हुआ करती थी। पर आधुनिकता की आड़ में कोर्ट को तोड़कर घर बना लिया गया है।           










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