’दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे’
सन 1906 को आप हमारे देश में धर्म के नाम पर मुस्लिम लिग के जन्म को जानते होंगे। मैं
भी इस वर्ष को जानता हूं, पर मेरे परम आदरणीय क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जन्म को
लेकर। इनका जन्म अपने मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा में 23 जुलाई को हुआ
था। 1920 में 14 वर्षीय चंद्रशेखर आजाद को असहयोग आंदोलन में जुड़े होने पर सरेआम 15
बेतों की सजा मिली। जज को दिए इनके जवाब बचपन से जेहन में बैठ गए...
नाम – आजाद
पिता का नाम - स्वतंत्रता
पता – जेल
पिता का नाम - स्वतंत्रता
पता – जेल
आज 14 वर्षीय आजाद के दो
गुने से अधिक उम्र ( 35 वर्ष ) के युवाओं को बच्चा बनकर देश के टुकड़े करने के नारे
सुनता हूं तो दुख होता है। 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधी जी द्वारा आंदोलन
का वापस लेना उस वक्त के अधिकतर युवकों को पसंद नहीं आया था। और कांग्रेस से मोहभंग
की कहानी यहीं से शुरू हो गई थी। 1924 में जिन्दुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ में पं.
राम प्रसाद बिस्मिल, शचींद्रनाथ सान्याल व योगेशचंद्र चटर्जी के साथ मिलकर आजाद
ने क्रांति को नया रंग दिया। इसका परिणाम आपको 1928 में देखने को मिला, जब लाला लाजपत राय की मौत का बदला आजाद ने लाहौर में एसपी सॉन्डर्स को गोली
मारकर लिया। इसके बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ना और अंग्रेजी खजाने
लूटकर क्रांति को बल देना देशभक्तों को खूब भाया। इसका उदाहरण आपको 1925 में काकोरी
कांड के तौर पर देखने को मिलता है।
आजाद का नारा ‘’दुश्मन की गोलियों का हम
सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही
रहेंगे’’ युवाओं के सर चढ़कर बोलने लगा। इलाहाबाद के इसी अल्फ्रेड
पार्क में चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेज पुलिस ने घेरकर हमला कर दिया। आजाद ने सुखदेव
व अन्य साथियों को बचा लिए पर वह वीरगति को प्राप्त हो गए। 20 मिनट चले इस मुठभेड़
के बाद भी अंग्रेज उन्हें नहीं पकड़ पाए। कहा जाता है कि आजाद ने पिस्तौल की आखिरी
गोली खुद को मार ली। ऐसे थे हमारे हीरो। स्कूल टाइम से ही यह जगह और आजाद दिलों दिमाग
में एक प्रेरणा बनकर रचे बसे हैं। बहुत अच्छा लगता है, जब भी
इस भूमि में उनके क्रांति रक्त की अनुभूति करता हूं। फक्र है ऐसे महान क्रांतिकारी
पर। नमन।




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