हर कमरा अब घर बन गया
आगन के बीच में
प्रीत की बहती रीत थी।
भैया-भाभी, दादा-दादी
पिता, मां-बहनों की मीत थी।
चाचा-चाची, ताई-ताऊ
बुआ, मौसी, मामी की गीत थी।
वक्त बदला, बदली कहानी
कमाई पर रोने लगी आंगन की रानी।
हरिश्चंद्र बनी ब्याही बहने
भाभियों ने थामी आंगन में बंधी डोर थी।
बहनों ने भाइयों की आंखें खोली
भाभियों को दिखती आंगन में अब खोट थी।
भाई-ताऊ को वेतन कम पड़ता
हर कमरे में परेशानी की होड़ थी।
खुशहाल आंगन हुआ विरान और
कमरों में अपनों की परिभाषा लिखती नई ज्योति थी।
गद्दार, झूठा, चोर बने भाई-भतीजा
उधर सीता-राम दिखाने की काल्पनिक सोच थी।
सूना आंगन अब है सुनता
परिवार में बहती प्रेम की जो नई रीत थी।































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