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बुराइयां जरूरी हैं...

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  आदित्य देव पाण्डेय अक्सर यह कहते हम लोगों को सुनते हैं कि फला व्यक्ति बहुत बुरा है। वह बहुत दुष्ट है। लेकिन जब हम अपने को उस स्थान पर देखते हैं तो पाते हैं कि हम उन बुराइयों से काफी परिचित हैं। क्योंकि वह हमारे अंदर भी उसी प्रकार निवास करती है, जिस तरह सामने वाले के व्यवहार में। हम अच्छे इसलिए नहीं हैं कि हमारे अंदर बुराई नहीं है। बल्कि हमारी बुराई अन्य को बहुत कम प्रभावित करती है या कर पा रही है, इसलिए हम अच्छे हैं।     लोग कहते हैं कि ये बुराइयां खत्म हो जाती तो कितना अच्छा होता। तो ऐसे में फिर अच्छे लोग कैसे मिलते यह समझ नहीं आता। अच्छाई की फिर क्या परिभाषा होती और उसके अस्तित्व का आकार कैसा होता? यदि देखा जाए तो अच्छाई का अस्तित्व है ही नहीं, बल्कि वह बुराई का सांकेतिक प्रतीक है। हर बुरा इंसान गतल काम इसलिए नहीं करता कि वह गलत है, बल्कि वह इसलिए करता है कि उससे कुछ उसके लिए अच्छा होगा। अब यहां बुराई उस व्यक्ति के पास नहीं थी, बल्कि अच्छाई ने उसे बुराई की चादर ओढ़ने पर मजबूर कर दिया। अच्छा और अच्छाई दोनों वैचारिक द्वण्द्व के प्रणेता हैं। यह एक अवरोधक की तरह क...

प्यार मौत या मोक्ष

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आदित्य देव पाण्डेय जिंदगी में कभी अचानक ही हम उन अनुभवों से गुजरने लगते हैं जिसका कभी हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं होता है। या यूं कहें कि जो हमें सबसे बुरा गुण लगता है। कुछ ऐसा ही भाव युक्त व्यवहार होता है प्यार। न जाने कब यह हमारे जीवन में दाखिल हो हमें अपने कब्जे में ले लेता है मालूम ही नहीं चलता। समझ नहीं आता कि इस समाजिक बुराई में वह कौन सी अच्छाई उस दौरान नजर आने लगती है जब यह हमारे रक्त में वेग का स्वरूप ग्रहण कर लेता है।     सच कहें तो इसके आने के बाद ही हमें रिश्तों का अहसास होता है। इससे पूर्व सिर्फ हम रिश्तों के नैतिक बुनियाद को ही जी रहे होते हैं। लेकिन इससे भीगने के बाद हम यह जानते हैं कि रिश्ते होते क्या हैं? हम इसी दौरान अपने महत्व से भी परिचित होते हैं और फिर हमारे लिए हर वक्त और व्यक्ति महत्वपूर्ण होने लगते हैं। हम उसी दौरान समाजिक बुराइयों जैसे वह क्या सोचेंगे? वह क्या कह रहे होंगे आदि को दरकिनार कर भारतीय बुराई दहेज, दिखावा और अपव्यय जैसी समस्याओं के विरोधक बन जाते हैं। वास्तव में अद्भुत दौर होता है, जब यह प्रेम हमारे करीब होता है। लेकिन समाज की नजरो...

मैं गुण्डा हूं...

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आदित्य देव पाण्डेय आज एक छात्र नेता मेरे आरामगाह में तशरीफ लाए। जहां उन्होंने अपने मनतव्य रखते हुए यह फरमान जारी किया कि विश्वविद्यालय, महाविद्यालय और वहां के विभागाध्यक्षों की बढ़ती दबंगई से छात्रों का भविष्य अधर में जा रहा है। उनके तानाशाह रवैये के कारण छात्र अपने हित और अधिकार की बात स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि मैं उनकी तेज और आक्रोशित विचारधारा को काट नहीं पा रहा था। इसका अर्थ यह नहीं था कि वह सब सही बोल रहे थे। बल्कि वहां की स्थिति यह थी कि वह किसी और को सुनने के मूड में नहीं थे। वह अपने आक्रोश में यह शायद नहीं समझ पा रहे थे कि वह जो बोल रहे हैं वह बिल्कुल तर्क संगत अथवा सही नहीं है।     हालांकि भोजन करने के बाद मेरे जेहन में एक बात आई और मैंने उनसे पूछ ही लिया। भाई साहब! एक चीज बताएंगे? उन्होंने बड़ी ही बड़कपन से बोला। हां हां पूछो। मैंने पूछ : दादा! एक लड़का है वह मेरे कुछ मित्रों को परेशान करता है। कहता है...। उन्होंने इतना सुनते ही तपाक से बोला अरे ऐसा कैसे? साला हमसे बड़ा गुण्डा है। कौन है नाम बताओं? मैंने कहा दादा छोड़ो ना। दरअसल, उसका भाई छात्र नेता है...

बलूची विचार एक फतवा

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  निश्चित ही प्रेम मानवीय भावनाओं ंऔर रिश्तों ंको आयाम देता है। उन्हें बलिष्ठ करता है तथा समाज में हमारे चरित्र को स्थापित करता है। किंतु यही प्रेम यदि हम किसी विपरित लिंगी चरित्र से कर लेते हैं, तो यह सबसे बड़ा दुर्गुण बन हमारे सामने पेश होता है। यहां आज तक समझ नहीं आया कि हम अपने रक्त संबंध के साथ जितनी सहजता से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर लेते हैं। उन्हीं स्वच्छंदताओं के साथ हम उन नए रिश्तों में क्यों नहीं अभिव्यक्ति को प्रकट कर पाते हैं, तो हमें हमारे विद्यालयों, कॉलेजों अथवा अन्य कर्म संस्थाओं मे ं प्राप्त होते हैं अथव बनते हैं। यहां चरित्र का द्वण्द्व हमारे दिमाग को पीड़ित क्यों कर देता है। यह किसी अदृश्य फतवे का ही परिणाम होता है कि हम अपने संपूर्ण ज्ञान और मानसिक स्थिति को धूमिल कर उन संकिर्ण विचार के गुलाम बन जाते हैं। अपनी संपूर्ण शिक्षा और ज्ञान का हम अंत कर देते हैं, जिसमें हमने आत्मबल, स्वविवेक और स्वनिर्णय की दक्षता प्राप्त की होती है। बड़ी हास्यास्पद सी लगती है यह बातें कि हमें जिस उद्देश्य से पढ़ाया और बौद्धिक प्रोढ़ता प्रदान की जाती है, यदि हम उसका उपयोग करने लगें त...

क्या करें कि न करें

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आदित्य देव पांडेय हमारी जिंदगी में जज्बातों की कदर उतनी ही है जितने में हमारे दिमाग की संतुष्टि। इससे ज्यादा यदि जज्बात हम पर कोई उड़ेलता है तो हम घबराने लगते हैं और उससे भागने लगते हैं। और यदि उससे कम जज्बात हम परोसते हैं तो रिश्ते में कभी गर्माहट आती ही नहीं है। ऐसे में यह निर्धारण करना कि किनती मात्रा में जज्बातों को सामने वाले तक पहुंचाना है। काफी कठिन है। लेकिन, एक बात तो तय है कि वर्तमान में मानवीय भावनाओं का स्पंदन और भावों का बहाव कब और कहां बहक जाए उसके स्वामी को भी नहीं पता होता। वह लाख अपनी चारित्रिक स्थिति को प्रोढ़ बनाए पर एक वक्त ऐसा आजा है जब वह उसके हाथों से निकल किसी और के उंगलियों के इसारों पर पतंग की तरह घूमने लगता है। वास्तव में उसी दौरान उसका अस्तित्व और संपूर्ण बौद्धिकता इतराने लगती है सामने की उंगलियों के इसारों पर और वह हवाओं में झूम उठता है अपने को एक स्वतंत्र अस्तित्व समझकर। हालांकि यह इतराना ज्यादा देर तक तो नहीं चलता। क्योंकि आस-पड़ोस की कई कन्नियां उस स्वतंत्र अस्तित्व की दुश्मन बन जाती हैं। ऐसे में सबसे अजब बात यह लगती है कि हम उससे अपनी भावनाओं को ज्या...

मैं और मेरी तन्हाई

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   इस जादुई दुनिया में मैं अक्सर कुछ चमत्कार की चाहत लिए बैठा रहता हूं। पर जब वक्त निकल जाता है तो मालूम लगता है कि जादू के लिए भी कुछ योग करना जरूरी होता है। पर मैं उन लम्हों को फिर से वर्तमान में लाकर कुछ अच्छा नहीं कर सकता। हां भविष्य में कुछ बेहतर कर जाऊं इसके लिए खुद को ही प्रेरित करता हूं। ऐसे में फिर से मैं एक बार और आशाओं के आंगन में बैठ कुछ नया होने का इंतजार करने लगता हूं। मैं कुछ पल नएपन के जोश में आगे भी बढ़ता हूं। पर विश्वास और अप्रत्यक्ष सच का विश्वास मुझे फिर कमजोर कर जाता है और फिर से जब अपने को देखता हूं तो एक असफलता मेरे पास खड़ी मुस्कुराती रहती है। पर मैं आज तक नहीं संभला और ऐसे में सफलता हमेंशा मुझसे संभलकर आंख छुपाए निकल जाती है। और मैं और मेरी तन्हाई एक महफिल एक सफलता के लिए फिर से खड़े हो जाते हैं। एक नए जोश और होश के साथ। यह किसी एक इंसान की भावनाएं नहीं, यह हर आमों खास की बयान गी है। एक बार आंख बंद कर महसूस करें और आप पाएंगे कि आप खुद ही हर असफलता और तन्हाई के लिए जिम्मेदार है(    aditya dev pandey apni baat abhivyakt karte hua.... ...

दोस्तों में ही उस खुदा का चेहरा नजर आता है # aditya dev pandey with frainds

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  आदित्य देव पाण्डेय मैं नहीं जानता कि दुनिया में खुशियों का क्या स्वरूप होता है। पर इतना जरूर जानता हूं कि यह खुशियां दोस्तों का रूप ले हमारे आसपास रहती हैं। और हमारे हर गम का हरण कर हमें खुशियां बांटती हैं। अगर कोई पूछे कि क्या खुदा को आपने कभी देखा है तो मैं बस इतना ही कहता... हां। मुझे अपने दोस्तों में ही उस खुदा का चेहरा नजर आता है। आदित्य देव पांडेय विचारक db city bhopal in aditya dev pandey with fraind aditya dev pandey and vibha in db mall bhopal aditya dev .... vibha baghel... and sunil upadhyay (class mate)  

बलूची विचार एक फतवा

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जिंदगी की राहों में सिर्फ कंकड़ बिछे होते तो शायद हम उसका कोई समाधान निकाल लेते। लेकिन इन कंकड़ों के बीच जो कांटे और शीशे के टुकड़े छिपे पड़े हैं वे सिर्फ लहूलुहान करते हैं। मैं नहीं जानता का जीवन क्या है और इसकी व्यवहारिकता क्या है? मेरे अपनों ने जो भी कुछ नीयम बताया वही जीवन का हिस्सा मान मैं चलता रहा। कभी स्वविवेक का प्रयोग नहीं किया, हां कभी प्रयोग करने की इच्छा भी  व्यक्त की तो उसे धृष्ठता में गुणित कर दिया गया। जीवन जीने के दौरान ऐसा लगा मानों मेरे लिए सारे रास्ते पहले से ही तय था। मेरा अपना न कोई वजूद और न ही कोई चरीत्रव्यवहार ही है।   फिर भी मैंने एक बार न चाहते हुए एक गलती कर दी। समाज द्वारा दिखावटी सोच और व्यवहार को दरकिनार कर किताबों, ग्रंथों और दिवारों तथा जुबान निश्चित हुई नैतिक व्यवहार को अपने चरित्र पर चादर की तरह ओढ़ लिया। और देर न लगी चारों तरफ हाहाकार मच गई। मैंने वह कार्य कर दिया, जिसमें कइयों की स्वीकृति आवश्यक थी, ऐसा मुझे जताया गया। तब मालूम चला की भावनाएं अपनों की गुलाम हैं। ऐसे में जिन्हें मैंने अपने रक्त और जीवन से भी...

पश्चिमी सभ्यता को दोष मत दो

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आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बलात्कार एवं महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव पर बयान दिया कि यह सबकुछ पश्चिमी सभ्यता के कारण हो रहा है। विहिप के नेता अशोक सिंघल सहित आशाराम बापू आदि ने ऐसा ही बयान दिया। बयान देने से पहले इन्हें सोचना तो चाहिए कि हमारी सभ्यता में कुछ न कुछ खामी जरूर है, तभी तो हमारे लोग दूसरी सभ्यता से प्रभावित हो जाते हैं। यूरोप एवं अमेरिका का समाज तो नहीं कोसता कि उनके लोग हिन्दू सभ्यता से बिगड़ रहे हैं, जबकि ऐसी संभावना पूरी-पूरी है, क्योंकि हमारे लोग बड़ी संख्या में इन देशों में रहते हैं। अमेरिका एवं यूरोप के लोग बहुत कम संख्या में भारत में हैं और वे व्यापार या सरकारी जिम्मेदारी पूरा होते ही अपने देश वापिस लौट जाते हैं न कि यहां पर रच और बस जाएं। बेहतर होता कि ये लोग अपनी सभ्यता की खामियों को स्वीकार करते हुए दूर करते। हमारी सभ्यता का आधार जातीय व्यवस्था है और इस व्यवस्था के शिकार जितना दलित, आदिवासी एवं पिछड़े हैं, उतना ही महिलाएं। हजारों वर्षों से सवर्ण समाज इस व्यवस्था को सर्वोत्तम कहते थकता नहीं और दूसरों को कमतर। यूरोप एवं अमेरिका के लोग शाय...

जले पर नमक न छिड़कें

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यौन उत्पीड़न के बढ़ते अपराधों का शिकार हो रही भारत की मां-बहनों और बह्ू-बेटियों के आंसू पोंछने की बजाय धर्म और मव्वाली संस्कृति के तथाकथित ठेकेदार इन दिनों ऊल-जलूल बातें करके उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहें हैं।  छतीसगढ़ में भाजपा सरकार के गृह मंत्री नानकी राम कंवर ने गैर-जिम्मेदाराना सार्वजनिक बयानबाजी की सारी हदें लांघ ली हैं। उन्होंने कहा कि बुरे ग्रहों के चलते महिलाओं से बलात्कार किए जा रहे हैं। इंटरनेट और उन्नत टक्नोलॉजी के इस जमाने में राज्य का गृह मंत्री अगर इस तरह की छिछोरी बात करे तो उसकी मतिभ्रष्टता पर तरस आता है। और उस पार्टी पर भी गुस्सा हुए बिना नहीं रहा जा सकता, जो ऐसे गैर-जिम्म्दाराना नेता को गृह मंत्री जैसे पद पर विराजमान किए हुए हैं। सोमवार को छत्तीसगढ़ में एक अध्यापक द्वारा वाचमैन के साथ मिलकर प्री-मैट्रिक की 11 कबायली छात्रों के साथ लंबे समय से दुष्कर्म किए जाने का मामला उजागर हुआ था। एक ओर जहां पूरा देश इस घिनौने अपराध से शर्मसार हुआ जा रहा था, वहीं राज्य के गृह मंत्री नानकी राम कंवर पत्रकारों से बातचीत में छात्रों से बलात्कार के इन मामलों के लिए ...