ek lmha mera bhi
हर लम्हे में हमने भी अपना एक लम्हा खोजना चाहा. ये वक्त ये फिजा क्या चाहती है समझना चाहा... हर अपने का अपना बन अपनापन खोजना चाहा... अपनों पर खुद को लूटा , मुहब्बत लूटना चाहा .... हर महफ़िल, हर डगर, हर जलसे में खुद को खोजना चाहा... इन्सान तो बहूत दिखे दोस्त.... पर इंसानियत का जनाजा सजा पाया .....
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