आजादी से चुने अपनी खुशियां-अपनी पसंद


आजादी के सात दशक बाद भी आज महिलाओं के अधिकार और आजादी की बात जारी है। ऐसे में अब हम सबका यह फर्ज बनता है कि आजादी की यह खुशी ग्रामीण अंचलों तक भी पहुंचे। वह भी आजादी से अपनी खुशी और पसंद को चुन सकें। ऐसे यह खुशी की बात है कि आज देश की आधीआबादी भारत के साथ पूरे विश्‍व की तरक्‍की में अहम भूमिका अदा कर रही हैं। सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक इत्‍यादि हर क्षेत्र में ये विकास की उड़ान भर रही हैं।
     आज नारी शक्ति समाज को यह जता चुकी है कि दुनिया की तरक्‍की में उनका योगदान भी महत्‍वपूर्ण है। आज युवतियां व महिलाएं मॉडलिंग हो या एक्टिंग व संगीत, सरकारी सेवा हो या देश रक्षा की बात, राजनीति हो या घर संभालने की बात, प्राइवेट कंपनियों व बैंकों का नेतृत्‍व हो या स्‍टार्टअप करने की बात, ये शक्तियां आज अपने कदम से विकास की इबारत लिख रही हैं। बच्‍चों में आत्‍मविश्‍वास भरने की बात हो या देश में, महिलाओं का अहम रोल होता है। आज भारत की लड़कियां, युवतियां व महिलाएं अपना करियर ही नहीं पहनावा भी खुद की मर्जी से तय करती हैं। सौंदर्य प्रसाधन हो फैशन हर जगह इनकी पहुंच और प्रबुद्धता सराहनीय है। आज रूढि़यों को तोड़ते हुए वह अपना जीवन साथी भी चुनने लगी हैं। यह बदलाव आज पितृसत्‍तात्‍मक समाज के दोष को जहां दूर करता है, वहीं देश व समाज को तरक्‍की प्रदान करता है।

तरक्‍की का सशक्‍त नजरिया 
पूरी दुनिया 8 मार्च को नारी शक्ति, योगदान और विकास के सम्‍मान में अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस मनाता है। इस दिन को महिला क्षमता और सामर्थ्‍य के तौर पर देखा जाता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री भी कहते हैं कि देश की तरक्‍की के लिए पहले हमें भारत की महिलाओं को सशक्‍त बनाना होगा। एक बार महिलाएं कदम उठा लेती हैं तो उस परिवार का विकास निश्चित होता है। सरकार अपनी विभिन्‍न योजनाओं के जरिये महिला विकास और सशक्तिकरण को लेकर काम कर रही है। उज्‍ज्‍वला योजना, हर घर शौचालय और स्‍वच्‍छ भारत स्‍वस्‍थ भारत जैसी योजनाओं के जरिये महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य व शक्ति का पूरा ख्‍याल रखा गया। ट्रिपल तलाक के जरिये मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्‍याचार को रोका गया। आज मनरेगा में भी करीब 54 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं। स्‍टार्टअप इंडिया व जनधन का भी महिलाओं ने फायदा उठा कारोबार की दुनिया में जमकर नाम कमाया। हालांकि अभी लिंगानुपात में और सुधार की जरूरत है। इसके अलावा अभी भी मात्र 27 प्रतिशत ही कामकाजी महिलाएं हैं। यह आंकड़ा और बढ़ने की जरूरत है। इसके अलावा 50 प्रतिश‍त शिक्षित महिलाएं चुल्‍हा चौके में अपनी प्रतिभा को झोंक देती हैं। इसके अलावा हर घंटे करीब 22 दुष्‍कर्म की घटनाएं हमारे देश में हो रही हैं। इसके लिए समाज में जागरूकता और छात्राओं में आत्‍मविश्‍वास भरने की काफी जरूरत है।   

क्‍यों मनाते हैं विश्‍व महिला दिवस
1908 में मजदूर आंदोलन के तौर पर 15 हजार महिलाओं ने न्‍यूयॉर्क शहर में मार्च निकालकर नौकरी में कम घंटे, उचित वेतन, मतदान के अधिकार की मांग की थी। एक साल बाद सोशलिस्‍ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को पहला महिला दिवस घोषित कर दिया। क्‍लारा जेटकिन ने 1910 में कोपेनहेगन में एक इंटरनेशनल कॉन्‍फ्रेंस के दौरान 17 देशों के प्रतिनिधियों के सामने अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस मनाने की बात रखी। 1975 में संयुक्‍त राष्‍ट्र की मान्‍यता के बाद इसे पूरी दुनिया में अंतरराष्‍ट्रीय दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। ऐसे ही 8 मार्च की भी कहानी है। 1917 में युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने खाना और शांति की मांग उठाई। यह हड़ताल इतनी जोरदार रही कि वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ना पड़ा। महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार आंदोलन की वह तारीख 8 मार्च थी।         
      
स्‍वतंत्रता और अधिकार को समझा
आज महिलाएं व युवतियां अपने अधिकार को लेकर काफी जागरूक हैं। शिक्षा की बात हो या पहनावे की, आज की युवतियां व छात्राएं स्‍वतंत्र होकर खुद से इसका चयन करने लगी हैं। पाबंदियों के जायज होने पर सवाल खड़ा करने लगी हैं। करियर अब खुद के अनुसार चुनती हैं। व्‍यापार और कारोबार में दुनिया को चौका रही हैं। पुरुषों की हर गलत फहमी को दूर कर उचित देश का मान बढ़ा रही हैं। दफ्तर हो या सड़क अपने अधिकार व ताकत को समझ अपराध को चुनौती दे रही हैं। आज महिलाएं व युवतियां आगे बढ़ कंपनियां में टीम को लीड कर रही हैं और बिजनेस आइकॉन के तौर पर खुद को स्‍थापित कर रही हैं।  

यह है अधिकारों का दिन

मुझे अच्‍छा लगता है जब कोई लड़की मेरी क्‍लास से टॉपर चुनी जाती है। आज लड़कियां अपने अधिकार को समझने लगी हैं। वह नौकरी और बिजनेस में रुचि लेने लगी हैं। यह वास्‍तव में सराहनीय बदलाव है।
-    ऋतु तिवारी, अध्‍यापिका, पटना 

फिल्‍म और अनेकों धारवाहिक आज महिला प्रधान बन रहे हैं। सबसे बड़ी बात की महिलाओं को लेकर मनोरंजन की दुनिया ही नहीं, वास्‍तविक समाज के नजरिये में भी बदलाव देखने को मिल रहा है।
-    कनिका, रंगमंच की कलाकार  

आज व्‍यापार, बैंक और स्‍टार्टअप के क्षेत्र में महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। वह बाजार का नेतृत्‍व कर रही हैं। वह देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका अदा कर रही हैं। वास्‍तव में यही असली आजादी व महिला दिवस के मायने हैं।
-    फातिमा, ब्‍यूटी पार्लर संचालिका

आज पुलिस विभाग, अर्धसैनिक बल हो या भारतीय सेना। महिलाएं एक बेहतर और जांबाज प्रहरी की तरह देश की रक्षा कर रही हैं। वह इसरो व डीआरडीओ इत्‍यादि में भी अपनी भूमिका का लोहा मनवा रही हैं।
-    कृतिका, पुलिसकर्मी  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पतझड़ सा मैं बिखर जाऊंगा

सही-गलत part 1

प्रेस वहीं जो सिलवटों को प्‍यार से दूर करे