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बलूची विचार एक फतवा

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जिंदगी की राहों में सिर्फ कंकड़ बिछे होते तो शायद हम उसका कोई समाधान निकाल लेते। लेकिन इन कंकड़ों के बीच जो कांटे और शीशे के टुकड़े छिपे पड़े हैं वे सिर्फ लहूलुहान करते हैं। मैं नहीं जानता का जीवन क्या है और इसकी व्यवहारिकता क्या है? मेरे अपनों ने जो भी कुछ नीयम बताया वही जीवन का हिस्सा मान मैं चलता रहा। कभी स्वविवेक का प्रयोग नहीं किया, हां कभी प्रयोग करने की इच्छा भी  व्यक्त की तो उसे धृष्ठता में गुणित कर दिया गया। जीवन जीने के दौरान ऐसा लगा मानों मेरे लिए सारे रास्ते पहले से ही तय था। मेरा अपना न कोई वजूद और न ही कोई चरीत्रव्यवहार ही है।   फिर भी मैंने एक बार न चाहते हुए एक गलती कर दी। समाज द्वारा दिखावटी सोच और व्यवहार को दरकिनार कर किताबों, ग्रंथों और दिवारों तथा जुबान निश्चित हुई नैतिक व्यवहार को अपने चरित्र पर चादर की तरह ओढ़ लिया। और देर न लगी चारों तरफ हाहाकार मच गई। मैंने वह कार्य कर दिया, जिसमें कइयों की स्वीकृति आवश्यक थी, ऐसा मुझे जताया गया। तब मालूम चला की भावनाएं अपनों की गुलाम हैं। ऐसे में जिन्हें मैंने अपने रक्त और जीवन से भी...

पश्चिमी सभ्यता को दोष मत दो

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आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बलात्कार एवं महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव पर बयान दिया कि यह सबकुछ पश्चिमी सभ्यता के कारण हो रहा है। विहिप के नेता अशोक सिंघल सहित आशाराम बापू आदि ने ऐसा ही बयान दिया। बयान देने से पहले इन्हें सोचना तो चाहिए कि हमारी सभ्यता में कुछ न कुछ खामी जरूर है, तभी तो हमारे लोग दूसरी सभ्यता से प्रभावित हो जाते हैं। यूरोप एवं अमेरिका का समाज तो नहीं कोसता कि उनके लोग हिन्दू सभ्यता से बिगड़ रहे हैं, जबकि ऐसी संभावना पूरी-पूरी है, क्योंकि हमारे लोग बड़ी संख्या में इन देशों में रहते हैं। अमेरिका एवं यूरोप के लोग बहुत कम संख्या में भारत में हैं और वे व्यापार या सरकारी जिम्मेदारी पूरा होते ही अपने देश वापिस लौट जाते हैं न कि यहां पर रच और बस जाएं। बेहतर होता कि ये लोग अपनी सभ्यता की खामियों को स्वीकार करते हुए दूर करते। हमारी सभ्यता का आधार जातीय व्यवस्था है और इस व्यवस्था के शिकार जितना दलित, आदिवासी एवं पिछड़े हैं, उतना ही महिलाएं। हजारों वर्षों से सवर्ण समाज इस व्यवस्था को सर्वोत्तम कहते थकता नहीं और दूसरों को कमतर। यूरोप एवं अमेरिका के लोग शाय...

जले पर नमक न छिड़कें

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यौन उत्पीड़न के बढ़ते अपराधों का शिकार हो रही भारत की मां-बहनों और बह्ू-बेटियों के आंसू पोंछने की बजाय धर्म और मव्वाली संस्कृति के तथाकथित ठेकेदार इन दिनों ऊल-जलूल बातें करके उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहें हैं।  छतीसगढ़ में भाजपा सरकार के गृह मंत्री नानकी राम कंवर ने गैर-जिम्मेदाराना सार्वजनिक बयानबाजी की सारी हदें लांघ ली हैं। उन्होंने कहा कि बुरे ग्रहों के चलते महिलाओं से बलात्कार किए जा रहे हैं। इंटरनेट और उन्नत टक्नोलॉजी के इस जमाने में राज्य का गृह मंत्री अगर इस तरह की छिछोरी बात करे तो उसकी मतिभ्रष्टता पर तरस आता है। और उस पार्टी पर भी गुस्सा हुए बिना नहीं रहा जा सकता, जो ऐसे गैर-जिम्म्दाराना नेता को गृह मंत्री जैसे पद पर विराजमान किए हुए हैं। सोमवार को छत्तीसगढ़ में एक अध्यापक द्वारा वाचमैन के साथ मिलकर प्री-मैट्रिक की 11 कबायली छात्रों के साथ लंबे समय से दुष्कर्म किए जाने का मामला उजागर हुआ था। एक ओर जहां पूरा देश इस घिनौने अपराध से शर्मसार हुआ जा रहा था, वहीं राज्य के गृह मंत्री नानकी राम कंवर पत्रकारों से बातचीत में छात्रों से बलात्कार के इन मामलों के लिए ...

दोस्ती

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                                                  esme ek dost ne apne jajbaat udele hain. . जब याद का किस्सा खोलूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं. मैं गुजरे पल को सोचूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं..अब जाने कौन सी नगरी में आबाद हैं जाकर मुद्दत से....मैं देर रात तक जागूं तो कुछ दोस्त बहूत याद आते हैं ... कुछ बातें थी फूलों जैसी, कुछ लहजे खुसबू जैसे थे...मैं शहरे चमन में टहलू तो कुछ दोस्त बहूत याद आते हैं....वो पल भर की नाराजगियां और मान भी जाना पल भर में ...अब खुद से भी जो रूठूं तो कुछ दोस्त बहूत याद आते हैं .....

मैं दुआ करूंगी

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विभा  बघेल आज मै आपको यह बताना चाहती हूं कि जितने बड़े अपराधी और हैवान लड़की का बलात्कार करने वाले थे, उससे कम बड़े अपराधी वो लोग नहीं जो उस सड़क से गुजरे होंगे, लेकिन सड़क पर जखमी पड़े दो लोगों को देखकर रुकने की जरूरत नहीं समझी होगी। वास्तव में मेरा मानना है कि हिम्मत सलमान खान और अक्षय कुमार की तरह एक्शन और स्टंट सीन्स करने में नहीं होती। हिम्मत अपने आस-पास हर रोज, हर लम्हे लिए जाने वाले एक्शन में होती है, जिसमें दूसरों की मदद करना, दूसरों का सम्मान करना और सही-गलत की पहचान करना होता है।      वास्तव में देखा जाए तो लड़की होकर पैदा होना किसी दुनिया में, किसी देशकाल में, किसी तरह के वातावरण में आसान नहीं रहा। लेकिन अगर देश और समाज बदलाव की किसी गहरी और तेज प्रक्रिया से होकर गुजर रहा होता है तो उसका सबसे बड़ा खामियाजा लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है। तुम जितनी तेज रफ्तार से अपनी आजादी की ओर बढ़ोगी, अपने हक में आवाज उठाओगी उतनी ही तेजी से तुम्हें अपमानित किए जाने के रास्ते ईजाद किए जाएंगे। इनमें से सबसे आसान तरीका तुम्हारे जिस्म पर, तुम्हारी अस्मित...

श्वांग जीवन है या जीवन में इसका महत्व सर्वोच्च

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श्वांग जीवन है या जीवन में इसका महत्व सर्वोच्च। मालूम नहीं! लेकिन एक बात तो तय है कि जीवन जीने के लिए एक अच्छे अ•िानेता का होना अति आवश्यक है। समय के चक्र ने हमें एक ऐसी स•य स•यता में पहुंचा दिया है, जिसमें हर कार्य सोच विचार कर हम करते हैं, किंतु अजीब बिडंबना है कि चरित्रिक स्थिति अपने निम्नतम अवस्था में पहुंच चुकी है। न चाहते हुए •ाी हमें झूठ और चाहकर •ाी झूठ ही हमें इस समाज में खड़े रहने को आधार प्रदान करता है। अजीब है पर यही आज की हकीकत है। आपको बताऊं कि एक बार मेरा मित्र बाजार में मिला। अ•ाी हम बात कर ही रहे थे कि उसकी मोबाइल पर उसके आॅफिस से फोन आ गया। वह दो दिनों से आॅफिस नहीं जा रहा था। उसने फोन उठाते ही अपनी आवाज को बीमारू रूप देते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और रोआसे आवाज में अपनी बीमारी की एक काल्पनीक कहानी गढ़ डाली। कुछ देर के बार फोन रख उछलते हुए बोला, साले को बेवकूफ बना दिया। और उसके बाद उसने अपने बॉस की ढेरों कहानियां सुनाई। जिसमें मात्र यही सिद्ध हो रहा था कि उसका बॉस काफी मूर्ख और दानवीय प्रवृत्ति का इंसान है। उसके बाद मेरे मित्र ने उसे •ाारत के मलीन बस्तियों से लेकर ...

एक साथी बहुत जरूरी है

  अक्सर मैं आॅफिस में यह सुनता रहा हूं कि काम करो, बातें न करो। यह बात वास्तव में सही •ाी है। काम के वक्त यदि हम बात करते हैं तो हमारा दिमाग उन बातों से उत्पन्न विचारों में बहक जाता है और कार्य प्र•ाावित होता है। लेकिन कार्य अवस्था की अवधि यदि अधिक समय की है तो ऐसे में हम एक ऐसा सहयोगी या साथी खोजते हैं, जो हमें कार्य से परे कुछ ऐसी बातोें से एक स्वस्थ्य माहौल बनाए। मुझे याद है कि बचपन के दिनों में जब •ाी हम किसी रिश्तेदारी या खेत-खलिहान अथवा बगीचा जाते तो पिता जी यही कहते कि किसी को साथ ले लो। वे कहीं हमें •ोजते तो मेरे साथ मेरे छोटे •ााई या गांव के किसी हमउम्र बच्चे को लगा देते। उस वक्त हमें क•ाी इस बात का अहसास नहीं हुआ कि पिता जी ऐसा क्यों करते थे? मुझे याद है कि खेतों में धान की रोपाई या फसल की कटाई के वक्त महिला और पुरुषों का झुंड गीत गाते हुए अपने कार्य को •ोर की लालिमा से सूरज के डूबने तक बहुत तनमयता के साथ करते थे। उनके काम की गति और लोग गीतों का क्रम बहुत ही आकर्षक होता था। फिर •ाी मुझे यह न समझ आया कि आखिर काम के वक्त वो बातें, कहावतें एवं गायन-वादन क्यों किया करते थे...

उनकी वो बेचारगी...

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जिंदगी को जाने क्या मंजूर है, कोई नहीं जानता। कल क्या होगा, यह न जानते हुए आज को जीते हैं और अपने और अपनों से वादे करते हैं। वाकई में इंसान बहुत साहसी है। खुद के साथ आज क्या होगा इसके बारे में पता नहीं और कल की खुशियों का वादा कर देते हैं। लेकिन कुछ इंसान इस दुनियां में ऐसे •ाी हैं जो खुद को एक नियती के तहत व्यवहारित कर दूसरों को सौ•ााग्य की दुआ करते हैं। दूसरों को दुआ देकर अपनी खुशी को जीने वाली कुछ महिलाएं मुझे अक्सर •ोपाल के टीटी नगर थाने के सामने दिख जाती हैं। मैं काफी समय से •ोपाल में रह रहा हूं, लग•ाग छह से सात साल हो गए। यहां पर एक बाजार है न्यूं मार्केट। वहां पर स्थित टीटी नगर थाने के मंदिर में मैं पुजारी हूं। मैं जब •ाी मंदिर से निकलता हूं, मुझे एक लड़की लोगों से पैसा मांगती नजर आती है। उसकी वो करूण आवाज, बाबू जी! कुछ पैसे दे दो। और उसके चेहरे पर दिखती वो बेचारगी। वास्तव में पत्थर दिलों पर •ाी जादू छोड़ जाती हैं। असल में इस मायावी संसार में बहुत सी मायावी •ाावनाएं हैं। इनमें यह •ाी एक पेशेगत मायावी •ाावना ही है। इस क्षेत्र में इस तरह की ढेरों लड़कियां हैं, जो अ...

ये कहां आ गए हम

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बचपन में हमें ‘नैतिक शिक्षा’ विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है, लेकिन स्नातक के आगाज के साथ ही इस शिक्षा का अंत हो जाता है। शायद शिक्षा विदों की यह धारणा है कि अब इस शिक्षा के तहत पढ़ाए गए ज्ञान के अनुप्रयोग का वक्त आ गया है। ऐसे में समाज स्नातक के विद्यार्थियों से यह आशा रखने लगती है कि वह भाषा, बोली और व्वहार में अपने नैतिक ज्ञान को व्यवहारिक रूप देकर समाज के विकास में सहयोग प्रदान करेगा। लेकिन कष्ट तब होता है जब प्रोढ़ उम्र के व्यक्ति या कर्मचारी दायित्वपूर्ण एवं बौद्धिक जगहों पर आसीन हो इन गुणों से परे व्यवहार करते हैं और अपने को अहम की प्रतिमूर्ति के तौर पर अवस्थित करते हुए अन्य को निम्न समझने का भ्रम पाल लेते हैं। ऐसा ही व्यहार अक्सर हम अपने आस-पास में भी देखते हैं। जैसे मेरे एक सीनियर ने मेरे कार्य पर प्रश्न चिन्ह लगाया। ऐसे में मुझे लगता है कि वह मेरे कार्य पर नहीं, बल्कि संस्था के प्रबंधक और प्रबंधकीय स्थिति पर ही सवाल खड़े कर रहे थे। एक संस्था में हर व्यक्ति का अपना स्वतंत्र दिखने वाला कार्य होता है, जो एक दूसरे के सहयोग और समंजस्य से पूर्ण होता है। दूसरी बात कि कई...

प्रेम का इगो इफेक्ट

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कुछ दिनों पहले की बात है। मैं सरिता विहार से लक्ष्मी नगर मेट्रों से जा रहा था। रास्तें में मुझे एम हमारे पुराने मित्र राहुल जी मिल गए। उन्होंने देखते ही मुझे गले लगा लिया। मैं • ाी बहुत खुश हुआ उनसे इतने दिनों बाद मिलकर। बहुत दिनों के बाद मिले थे , सो उनकी जुबान पर ढेरों प्रश्न थे। मेरा हाल - चाल लेने के बाद उन्होंने मेरी पुरानी जिंदगी से जुड़ा एक प्रश्न कर दिया। और आदित्य यह बताओं भोपाल वाली का क्या हाल है ? दरअसल मैंने • ोपाल से परास्रातक की पढ़ाई की है। उस दौरान एक महिला मित्र से मेरे अच्छे संबंध रहे। जो मेरी जुनियर थी। और सत्य कहें तो हम एक दुसरे से प्रेम करते थे। मैं नहीं जानता वो कैसी हैं और क्या कर रही हैं ? ऐसे में मैंने सिर्फ ठीक हैं कह दिया। यहां तक तो सब ठीक ठाक रहा। अचानक उन्होंने अगला प्रश्न दाग दिया। सुना है आपका उसने आपको छोड़ दिया। और जैसे ही यह प्रश्न मेरे कर्ण पटल से टकराए मेरे दिलों दिमाग में एक ...