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प्रेम का माप

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प्रेम की परिभाषा कैसे लिखुं कैसे इसकी मात्रा को बताउं। शब्‍दों का जाल में मीन जैसे फंसाऊं या काव्‍य धारा का बाढ़ लाउं। धरा से गंभीर प्‍यार के संगीत को कैसे हल्‍की हवा का बहाव बनाऊं।   कितना करता हूं प्रेम क्‍या इसी सवाल में उलझ जाउं। सौंप दूं सर्वस्‍व या प्रेम में ही विलीन हो जाउं। सूर्य ,  चंद्रमा ,  चांदनी लिखूं या ब्रह्मांड का आधार मानू। प्रेम को भावनाओं से तौलूं या अनंत सुखों का व्‍यवहार जानू। पुष्‍पों पर पड़ी ओस समझूं या वन उपवन का कौमार्य समझूं। प्रेम को निराकार रूप दो अंत से परे अनंत का स्‍वरूप दो। शून्‍य से सजा कर इसे तिमिर पर प्रभा को वार दो।   -----------------***      

ये दरिद्र मन दुखी था

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ये दरिद्र मन दुखी था छलावे का शौकीन था। कुंठा के अधीन था अज्ञानता का दीन था। क्रोध में तल्‍लीन था तनाव की जमीं था। सोच का श्मशान ये समझ से पराधीन था। धोखे का श्रोत था कपट का कपोल था। चिंता से पटा मन ये तन को सौंपता विकार था। ज्ञान का दिया जला इसका सर्वनाश कर। प्रेम को श्‍वास बना कुंठा का तूं नाश कर। दरिद्र मन को त्‍याग दे विकास का व्‍यापार कर। छल-कपट को छोड़कर अपनत्‍व का श्रृंगार कर।   -------------------***  

मेरी इश्क से अदावत थी

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मेरी इश्क से अदावत थी मुवक्किल थी तन्‍हाई। हाकिम ने पूछा जुदाई क्यों तो काजी ने दी गुनाहों की दुहाई। मुंसिफ ने प्यार की परख पे जो पूछा हर शख्स ने उंगली एक तरफ उठाई। लाज़िम है कि जालिम नहीं हूं पर इश्क की गली में घूमने की सजा पाई। जालिम नहीं जमाना ये संगीन जुर्म था यकीन का सिला कयामत से चुकाई। वफा खुदा से कर गया जो मिली फकीर की दुहाई।   मन्नते तो ना रहीं पर मिली मसर्रत सी कमाई।   ----------------------------------***  

इश्क तो बहुत था

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इश्क तो बहुत था पर रास्ते का पता नहीं। कहना तो बहुत था पर शब्द मिले नहीं।। ख्याल में बहुत था पर सोचा तो कुछ नहीं। ख्वाबों में दिखा पर पूरा कहीं नहीं।। राह पर दिखा पर नजर में नहीं। दिल में वो धड़का पर मिला कभी नहीं।। दुआ में वो रहा पर मिन्नतों में नहीं।   सांस में घुला रहा पर रूह बना नहीं।। प्यार से इबादत बना पर मीत बना नहीं। अपना बनकर ही चला पर साथ रहा नहीं। प्यार का अंजाम था ये पर पूरी दास्‍तां नहीं।     ----------------------------------***  

अकेला हूँ, खामोश हूँ

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अकेला हूँ ,  खामोश हूँ आज खुद से भी दूर हूं। एक अपने की तलाश में आवेश का शिकार हूं। क्रोध से अकाल हूं प्रेम का विकार हूं। अकेला हूं ,  खामोश हूं। आज मन का कंगाल हूं।।    श्वेत पर लगा दाग हूं चमक धोता वैराग हूं। बुझता हुआ राख हूं सूखे जलज का पाक हूं। अकेला हूं ,  खामोश हूं। आज अपराध का उद्गम भाव हूं।। व्याकुलता का राज हूं अनकही कोई बात हूं। उलझी डोरियों की गांठ हूं कटीले पथ का आघात हूं। अकेला हूं ,  खामोश हूं। आज कठोरता का प्रहार हूं।। मैं कुंठा हूं ,  अवसाद हूं दुखों का सरताज हूं। सुख का शत्रु मैं अनंत कष्टों का प्रकार हूं। अकेला हूं ,  खामोश हूं। आज हर व्यक्ति का व्यवहार हूं।।   --------------------***

हर मुस्कुराहट की एक कहानी होती है

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हर मुस्कुराहट की एक कहानी होती है कभी गम ,  दर्द तो कहीं मचलती जवानी होती है। आंखों की चमक में भी एक रवानी होती है आंसुओं को ढंकी पलकें तो रक्‍स ये रूहानी होती है। आवाज के जादू में अश्कों की दास्तां बही है लफ्जों में कभी मोहब्बत तो कभी नफरत मिली है। चांदनी से रोशन जहां में सिर्फ दीवाने नहीं रहते मुखौटा लगाए बहरूपियों की मिलावट बसी है। महफिल में हर शख्स का अक्‍स अलग-अलग है खामोश होकर भी लबों पर शोर दिखी है। अंधेरे धुंध में खोती हैं कहानियां बहुत रकीब के मोहल्ले में प्यार की बरसात हुई है। अब छोड़ दिया अपने परायों से यूं मिलना अकेला दूर हूं तो यार सुकून बहुत है।   -----------------******************