माना कि इश्क किसी की जागीर नहीं है
पर ये अश्कों की तामीर भी नहीं है।
बड़े वक्त दिए हैं जो दिल तेरी इबादत में लगे
इस तसल्ली का सिला दर्द-ए-जुदाई तो नहीं है।
माना न मिलन, न निकाह लिखा है मेरी कहानी में
तेरे खूबसूरत ख्वाबों पर किसी का लगाम तो नहीं है।
अब बाहों में तेरे रकीब का रूतबा ठहर गया
पर तेरी हंसती अठखेलियों का पूरा हिसाब यहीं है।
रब का ये दर इतना भी नहीं जालिम, नहीं कातिल
रुसवाइयों से रोशन दिल में न अब कोई आरजू बची है।
मेरा रब, मेरा सब, मेरा तकदीर है वो साहिब
अच्छा है राहों में अब न कोई ख्याल तलक है।
रब में वो, उसमें रब का मेल कब हुआ
जाने इस वाकये में अब बड़ा गुस्ताख कौन है।
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