पहले कहानी में एक आंगन होता था




पहले कहानी में एक आंगन होता था
भाइयों के प्रेम से सुहाना घर सजता था।

खेत होते थे, खलिहान होता था
भाई का हक ही भाई का अरमान होता था।

एक कमाई पर टिका पूरा खानदान होता था
भाभियों की हंसी से सजा सास का अरमान होता था। 
 

बुजुर्गों की दहाड़ द्वार का श्रृंगार होता था  
गायों की सेवा करने वालों का नाम होता था।
बुआ-बहनों की खुशियों में ही अभिमान होता था
मामा बच्‍चों के लिए बचपन का धाम होता था।

जमीं, छत, बाग, घर अब सब संपत्‍ती बन गए
आज प्रेम से भरे दिल में दौलत का बाजार सज गया।

हक की रोशनी में रिश्‍ते खो गए
प्‍यारा आंगन पैसों के जाल में जाने कब जल गया।

सरकार की सड़क ने परिवारों को रौंदकर
टुकड़ों में फैले लोगों का महल बना दिया।

सुना है खुशियों के लिए लोग दर-बदर भटक रहे
अपनों के साथ हंसने-बैठने का हक जो गवां दिया।
 

 
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