इश्‍क को समझ कर तो देखिये




सदा-सर्वदा पाप से तौला जिसे

उस प्रेमी वातावरण में एक पल तो गुजारिये।  

दिल के सवालों से घिरे मन में झांककर
पछतावे से कभी कुछ पूछकर तो देखिये।

कितना मचलता होगा दिल तड़पते मौसम में
उस दर्द-ए-एहसास से पटी रूह से रूबरू तो हाईये।

चार लोगों के फिजूल बवंडर में क्या घिरना
जुदाई के जलजले से सहम के तो देखिये।

शब-ए-हिज्र की कराहें महसूस न हो तो
सुब्ह-ए-विसाल के हसीन पल को याद कीजिए।

इश्क की इबादत में न सिर झुकाया हो कभी  
तो कम से कम दुआ में पक्के इमान को सजाइये।

इश्‍क के रमजान को सौदा गर बनाया हो तो
कलमा पढ़कर एक इफ्तार में जरूर जाइये। 
  

पाक सूरह से जो सज न जाए तेरा मासूम दिल
तो आयत के खूबसूरत बगीचे में टहल के देखिये।

नम आंखों से कभी अपनी जवानी को सोचना
फिर इश्‍क सिर्फ आशिकी नहीं इबादत नजर आएगी।
 

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