माता की महिमा महान


9 शक्ति   9 संकल्‍प

 

सर्व बाधाविनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः

मनुष्यो मतप्रसादेन भविष्यति न संशय:

 

प्रथमं शैलपुत्री च

द्वितीयं ब्रह्माचारिणी।

तृतीय चंद्रघण्टेति

कुष्माण्डेति चतुर्थकम्।

पंचमं स्कन्दमातेति

षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रि

महागौरीति चाऽष्टम्।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः।

 

 

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या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता

नम: तस्ये नम: तस्ये नम: तस्ये नमो नम:||

 

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शक्ति, समृद्धि, स्त्रीत्व और ऊर्जा की प्रतीक मां दुर्गा अपने नौ रूपों में हमारी हर मानेकामना और संकल्प को पूर्ण करती हैं। हमारे तन-मन में विराजमान मां भगवती हमें चैतन्यता प्रदान करती हैं और इस भवसागर से पार लगाने में हमें सामर्थ्यवान बनाती हैं। पाप, तमस और दानवीय गुणों का नाश कर वह दुनिया को शक्ति, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं। आइए नवरात्रि के इस पावन अवसर पर हर मनोकामना को पूर्ण करने वाली मां भगवती के नौ रूपों का ध्यान कर समाज कल्याण के लिए नौ संकल्पों से दुनिया को समृद्धवान बनाएं। 

    शारदीय नवरात्रि को हम शक्ति और विजय के महा उत्सव के तौर पर मनाते हैं। इस दौरान मां दुर्गा के रूप शक्ति, स्त्रीत्व और समृद्धि की अर्चना करते हैं। सृष्टि के सृजन काल में देव मानव दानवों से पराजित हो गए, तो मां भगवती की अराधना के बाद उन्हें राक्षसों पर विजय मिली। मां दुर्गा ने विभिन्न रूपों में अवतरित होकर अनेक रक्षसों का संहार किया और सृष्टि के विकास को गति दी।

 

माता की महिमा महान

 

शैल पुत्री : मां दुर्गा की प्रथम स्वरूप मां शैल पुत्री त्रिषुल और कमल पुष्प लिए वृषभ पर हमें दर्शन देती हैं। दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में सति ने भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष द्वारा महायज्ञ के आयोजन में भगवान शिव व सति को आमंत्रित नहीं किए जाने पर यज्ञ स्थल पर पहुंच मां सति ने पिता को समझाया लेकिन प्रजापति द्वारा भगवान शिव का उपहास उड़ाने से क्रोधित होकर मां सति ने यज्ञ कुंड में कूंदकर प्राणों की आहुती दे दी। भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणों से यज्ञ का विध्वंस कराया और स्वयं सति के जले शव को कंधे पर लेकर निकल गए। पुराणों के अनुसार, इस दौरान सति के अंग 51  स्थानों पर गिरे। जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे, वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। अगले जन्म में यही सति शैलराज हिमालय के यहां जन्म लीं और शैल पुत्री कहलाईं। इन्हें ही मां पार्वती भी हम कहते हैं।

 

 

ब्रह्मचारिणी : मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि करने वाली मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्रों में जपमाला और कमण्डल के साथ हमारे हृदय में निवास करती हैं। पर्वतराज हिमालय और मैना की पुत्री मां ब्रह्मचारिणी सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति देने वाली हैं। पार्वती द्वारा कठोर तप करने से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें शिव की वामिनी का मनोवांछित वरदान दिया और वह ब्रह्मचारिणी कहलाईं।

 

 

चंद्रघंटा : सिंह पर सवार खड्ग, अस्त्र-शस्त्र, वाण से सुशोभित दस हाथों वालीं मां चंद्रघंटा निडरता और सौम्यता का स्वरूप हैं। युद्ध के लिए तैयार मुद्रा में नजर आने वाली मां चंद्रघंटा इहलोक और परलोक दोनों के लिए परम शांतिदायक और कल्याणकारी हैं। सद्गति देने वाली हैं। मां के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है, जिसकी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं।

 

कूष्मांडा :  सूर्यलोक में निवास करने वालीं सिंह पर सवार अष्ट भुजाधारी मां कूष्मांडा सृष्टि के संपूर्ण प्राणियों को आलोक प्रदीप्त करती हैं। अंड यानी ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति मां के मंदमुस्कान द्वारा हुई है। इसी कारण मां को हम कूष्मांडा के नाम से पूजते हैं। कमण्डल, धनुष-वाण, कमल-पुष्प, अमृत-कलश, चक्र, गदा और जपमाला से सुशोभित मां कूष्मांडा सभी सिद्धियों में निधियों को प्रदान कर समस्त रोग-शोक दूर कर आयु-यश में वृद्धि करने वाली हैं।

 

स्कंद माता : स्कंद यानी कार्तिकेय को गोद में लिए माता स्कंद देवी सिंह पर सवार चार भुजाओं से सुशोभित कमलपुष्प हाथ में लिए हर वर पूर्ण करने वाली हैं। इस कारण इन्हें  पद्मासना देवी भी कहलाते हैं। स्कंद माता हर इच्छा की पूर्ति करते हुए मोक्ष का द्वार खोलती हैं। मां चेतना, बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि कर समस्त व्याधियों का नाश करती हैं। 

 

कात्यायनी : कात्य नामक ऋषि की वंशावली में से प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन मां दुर्गा के परम भक्त थे। इनकी भक्ति से खुश होकर मां भगवती ने महर्षि द्वारा शक्ति स्वरूपिणी को पुत्री के रूप में पाने के आग्रह की पूर्ति का वर दिया। महिषासुर के अत्याचार को खत्म करने के लिए कात्यायन की पत्नी की कोख से ब्रह्मा, विष्णु व महेश के तेज से परिपूर्ण देवी कात्यायनी ने जन्म लिया। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक चार भुजाओं के साथ सिंह वाहिनी मां कात्यायनी परम मंगलकारी हैं।

 

 

कालरात्रि : तीनों लोकों के प्रतीक के रूप में मस्तक पर तीन नेत्र धारी मां काली अमवस्या की गहरी रात जैसी काया वाली हैं। घने एवं बिखरे केस वाली मां के गले में विद्युत ज्वाला सी प्रकाशित माला है। सांस से अग्नि की लपटें निकलती रहती हैं। गधा पर सवार चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि तलवार और नुकीला अस्त्र से सुसज्जित हैं। राक्षस और भूत-प्रेत का विनाश करने वाली मां अभय वरदायिनी हैं।

 

महागौरी : शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या कर धूप, आंधी, वर्षा और ठंड के थपेड़े सहते हुए मां महागौरी का शरीर कृशकाय और काला हो गया। तप से खुश हो भगवान शिव ने पार्वती रूपी महागौरी को पत्नी स्वीकार किया और गंगा मैया की जलधारा से पार्वती का शरीर धोया। इसके बाद उज्ज्वल दिखने वाली मां महागौरी के नाम से जानी जाने लगीं। बैल पर संवार मां महागौरी अमोघ और सद्यः फलदायिनी हैं। इनकी उपासना से सभी कल्मष धुल जाते हैं और पाप-संताप, दैन्य-दुःख दूर हो जाते हैं।

 

 

सिद्धिदात्री : संपूर्ण रिद्धी-सिद्धियों की स्वामिनि मां सिद्धिदात्री विजय स्वरूपिणी हैं। मां दुर्गा के मन में सृष्टि की रचना का विचार आया तो उन्होंने शिव को उत्पन्न किया। शिवजी ने मां भगवति से सिद्धियों प्राप्त कीं, जिसके एक अंश से देवी सिद्धिदात्री का जन्म हुआ। मां सिद्धिदात्री ने 18 प्रकार की दुर्लभ, आमोघ और शक्तिशाली सिद्धियां प्रदान कीं। इसी तेज से भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी को नर एवं नारी के अभाव में सृष्टि की रचना असंभव लगी तो मां सिद्धिदात्री ने शिव को अर्द्धनारीश्वर का स्वरूप दिया। 

 

 

नौ संकल्प से समाज बनेगा सुंदर

 

1.   समाज में फैली बुराइयों, उत्पीड़न और कुरीतियों के खिलाफ लड़ेंगे।

2.   अपने काम, दायित्व व कर्तव्य को ईमानदारी से पूरा करेंगे।

3.   आत्मसंयम व आत्मबल से मुश्किलों को मात देंगे।

4.   आलस्यता का त्याग कर ऊर्जा को संचारित करेंगे।

5.   प्रकृति, पर्यावरण और पौधों की रक्षा करेंगे।

6.   ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार, लालसा, हिंसा, झूठ, अपराध से दूर रहेंगे।

7.   गरीबी, भूख, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, अस्वच्छता, जातिवाद, संप्रदायवाद को दूर भगाएंगे।

8.   देश, सत्ता, समाज, परिवार व महिला उत्थान में अपने दायित्वों का पूर्ण निर्वहन करेंगे।

9.     समानता, सामूहिकता, पशुधन, स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान हमेशा रखेंगे।

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