550वें प्रकाश पर्व पर प्रेम का पैगाम


मानव धर्म को गुरुनानकजी ने जन जन तक पहुंचाया
  


हम सब जानते ही हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरुनानक जी की जयंती मनाई जाती है। प्रेम, करुणा, मानवता को जन-जन में संचारित कर हिन्‍दुस्‍तान के महान संत गुरुनानक देवजी ने लोगों को जीवन की राह दिखाई। वह सिख धर्म के संस्‍थापक ही नहीं, बल्कि मानवता के प्रणेता भी थे। शायद यही वजह है कि वह किसी एक विशेष धर्म के न होकर पूरी दुनिया व सभी धर्मों के जगद्गुरु हो गए। तभी तो गत वर्ष गुरु साहिब के 550वें प्रकाश पर्व पर 72 साल बाद दो मुल्‍कों के सिखों की अरदास जन-जन तक पहुंचेगी और मानवता की एक नई इबारत गढ़ी जाएगी।
    यह तो हम सबको पता ही है कि गुरुनानक जी का जन्म पूर्व भारत की पावन धरती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 को लाहौर से करीब 40 मील दूर स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। हालांकि आज यह पावन भूमि पाकिस्‍तान में आती है। उनके पिता का नाम कल्याणराय मेहता तथा माता का नाम तृपताजी था। गुरुनानक जी के बारे में भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि जगत के दुखी प्राणियों की पुकार को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस जमीन पर गुरुनानक को भेजा था। पुरोहित पंडित हरदयाल जी ने गुरुनानक जी के दर्शन करते हुए कहा था कि यह बालक ईश्वर ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। गुरुनानक जी बचपन से ही आध्यात्म और जन कल्‍याण को प्रमुखता देते थे। वह कभी-कभी इतने ध्यान मग्न हो जाते थे कि समाधि की अवस्‍था तक पहुंच जाते थे। 
 क्यों मनाते हैं प्रकाश पर्व
सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देवजी का प्रकाश पर्व सिख समुदाय द्वारा काफी हर्सोउल्‍लस के साथ मनाया जाता है। यह पर्व समाज में एकता को कायम करने और मेहनत से कमाई आदि सद्गुणों का संदेश देता है। इस बार 12 नवंबर को हमारे देश के हर राज्‍य व शहर में गुरुनानक जी का 550वां प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाने की तैयारी है। भारतीय रेलवे ने देश के प्रमुख गुरुद्वारों तक श्रद्धालुओं के पहुंचने के लिए विशेष ट्रेन चलाए हैं। केंद्र के साथ राज्‍य सरकारें विशेष आयोजनों की तैयारी में जुटी हैं। यहां तक की पड़ोसी मुल्‍क पाक भी इस प्रेम और सौहाद्र के पर्व से इस बार अछूता नहीं है। वह भी करतारपुर में विशेष आयोजन करने की तैयारी में लगा है। वहीं एयर इंडिया ने तो खुद को गुरुनानक देव के मंत्र से रंग दिया है।

इस जमीं को हिंदुस्तान पुकारा
आपको बता दें‍ कि ऐसा माना जाता है कि नानकदेवजी से ही पहली बार हमारे देश भारत को हिंदुस्तान नाम से पुकारा। करीब 1526 में विदेशी आक्रमणकारी बाबर ने हमारे देश पर हमला किया था। इसी दौरान गुरुनानक देवजी ने वह शब्द कहे जिनमें पहली बार हिंदुस्तान शब्द लोगों के सामने आया था...

खुरासान खसमाना कीआ
हिंदुस्तान डराईआ।

मानवता को सर्वोपरि रखा
गुरुनानक देवजी के दर्शन में सांसारिक यथार्थ परिपक्‍व अवस्‍था में नजर आता है। वह संसार से विमुख होकर संन्यास लेने को उचित नहीं मानते थे, हालांकि वह सहज योग के पक्षधर रहे। गुरुनानक देवजी का कहना था कि सन्‍यास लेकर मानव खुद का व लोगों का कल्‍याण कभी भी नहीं कर सकता। ऐसे में सहज जीवन उचित मार्ग है। उन्‍होंने एकांत तप से ईश्‍वर प्राति को उत्‍तम मार्ग न बता गृहस्‍थ राह से मानव सेवा को श्रेष्‍ठ बताया। गुरुनानक जी के अनुसार, इंसान को आत्‍मा से प्रभु का नाम लेना चाहिए। ईमानदारी व परिश्रम से कर्म करना चाहिए। इसके बाद अर्जित धन से जरूरतमंदों की सहायता करने पर जोर देते थे। गुरुनानक देवजी ने अन्न की शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता को भी जीवन जीने के लिए जरूरी तत्‍व मानते थे।

सर्व धर्म समभाव का मंत्र दिया
गुरुनानक देवजी सभी धर्मों को श्रेष्ठ मानते थे। गुरुनानक जी के अनुसार, अपने व्‍यवहारिक जीवन में धर्म के सत्य ज्ञान को आत्मसात करने की जरूरत है। धार्मिक एवं सामाजिक विषमताओं को दूर करने की जरूरत है। उन्होंने अपनी वाणी में हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए एकता के बीज बोए। वह कहते थे कि पूरी सृष्टि का एक ही ईश्वर है। एक पिता एकस के बारिक। वह समन्वयवादी दृष्टिकोण से जीवन को देखते थे। जातीय भेद करने वालों को गुरुनानक जी पशु तुल्‍य मानते थे। 

   



मोक्ष का मार्ग बताया
गुरुनानक देव ने पहले धर्म प्रवर्तक थे जिन्‍होंने मोक्ष तक पहुंचने का सरल और सहज मार्ग लोगों को बताया। उन्‍होंने गुरु के महत्‍व को दर्शाया। लोगों को बताया कि खुद को गुरु के प्रति समर्पित कर दो। अपने सुख-दुख व आध्‍यात्मिक लक्ष्‍य को गुरु को ही साधने दो। अहंकार से दूर रहो। सिर और चप्‍पल को बाहर छोड़ अदम के साथ गुरु के द्वार पर खड़े हो जाओ। गुरु सब चिंता हर लेगा। जीवन और मोक्ष का वही मार्ग दिखाएगा। 

इस सिद्धांत से मानव कल्‍याण
* ईश्वर एक है।
* एक ही ईश्वर की उपासना करो।
* ईश्‍वर सब जगह और सब जीव में है।
* भक्त को किसी चीज का भय नहीं होता।
* ईमानदारी व मेहनत करके पेट भरें।
* बुरा न करें, न सोचें और न किसी को सताएं।
* हमेंशा खुश रहें। क्षमाशील बनें।
* लोभ-लालच औरा संग्रह उचित नहीं।
* सभी स्त्री और पुरुष समान हैं।
* जरूरतमंद की सहायता जरूर करें।



नगर कीर्तन का महत्‍व   
गुरुनानक देवजी के प्रकाश पर्व का उल्‍लास हर बार की तरह इस बार भी देश में जोरों पर है। प्रकाश पर्व का तात्‍पर्य मन की बुराइयों को नष्‍ट कर उसे सत्य, ईमानदारी और सेवाभाव से प्रकाशित करना है। प्रकाश पर्व पर देश के कोने-कोने में विशाल नगर कीर्तन निकाला जाता है। इस दौरान पंज प्‍यारे इसकी अगुआई करते हैं। श्री गुरुग्रंथ साहिब को फूलों की पालकी पर सुशोभित कर विभिन्‍न स्‍थानों से होते हुए गुरुद्वारे पहुंचते हैं। प्रकाश उत्‍सव पर निकली प्रभातफेरी के दौरान जत्‍थे कीर्तन कर संगत को निहाल करते हैं। गुरुद्वारे के सेवादार गुरुनानक देवजीके बताए रास्‍ते से संगत को रूबरू कराते हैं।

अरब देशों को भी दिया ज्ञान
गुरुनानक देवजी की यात्रा को पंजाबी भाषा में उदासियां कहते हैं। उनकी पहली उदासी अक्टूबर 1507 ईं. से 1515 ईं. तक रही। गुरुनानक जी की शादी 16 साल की उम्र में सुलक्खनी नाम की कन्या से हुई थी। उनके दो लड़के श्रीचंद और लखमीदास थे। गुरुनानक देवजी की मृत्‍यु 1539 ई. में करतारपुर (पाकिस्तान) की एक धर्मशाला में हुई थी। उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरुनानक जी ने भारत में ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर उपदेश दिए।

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