तर्पण


तेरी बातों को याद करूँ
या स्मरणों पर पश्चाताप करूँ।
रूदन करूँ तेरे चित्रों पर
या तेरे चरित्र से श्रृंगार करूँ।।
तुझको खोजूं स्मरणों में
या तेरे मार्ग का पथिक बनू।
तेरे न होने का शून्य सहूँ
या तेरी मानुषता पर अभिमान करूँ।।
क्यों रोऊँ, क्यों विलाप करूँ।
अच्छा है तेरे प्रकाश का अनुराग करूँ।
तेरी बातों पर इठलाऊँ
तेरी दी समझ पर इतराउं।
जंग हो जीवन तो क्या
तेरे ज्ञान शस्त्र से विजय पाऊं।।
तूँ अभी भी हममे रहता है
बसता है रोम रुधिर की धारा में।
तूँ तन होता बस तो दुख था
तूँ तो बहता है मन विचार की गंगा में।।

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घोर हलाहल पीकर क्‍या मैं भी अब विष-राम करूं।
या गजेेंद्र की तरह करबद्ध् मोक्ष का इंतजार करूंं।।

माया तेरी महिमा तेरी
मैं घनघोर ति‍मिर मेें राही हूं।
कर कर प्रकाश, हर हर विलाप
मैं तेेेेरेे अनुुुराग  ग्राही हूूं।।

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तेरी दरियादिली का शुक्रगुजार हूं मौला।
ये मुस्कान ही तो है जो दुआ में मुझे मिला।

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