ये लड़कियां मतलबी क्यों होती हैं

दुनिया की हर लड़की मतलबी होती हैैैै। इसमें कोई दोष भी नहीं हैैै। जैसे एक लड़के को मां-बाप यह बताते हैैं, बेेेेटा यह तुम्हारे चाचा, मामा, फूफा व फला जगह के भाई हैं। वैसे लड़कियों को भी बताया जाता हैै पर उन्हें उनसे ज्यादा देर बात करने नहीं दिया जाता। कुछ देर बाद ही मां या कोई बड़ा उन्हें टोक देता है और कोई जरूरी काम बताकर वहां से हटा देता है। ऐसे में सब रिश्ते उसके ही हैैंं, पर इससे पहले उन्हें सबसे सजह और सचेत होकर जीना पड़ता हैैै। अब ऐसे में वह मतलबी नहीं बनेंगी तो क्या बनेंगी। घर तो घर, ऐसी ही कुुुछ स्थिति स्कूल, कॉलेज, बाजार व रास्ते की भी होती हैैै। जहां वह आजाद तो होती हैं, पर अध्यापक और समाज उनसे शिष्टाचार व व्यवहार के नाम पर मौन, शांति और गंभीरता की स्वइच्छा थोप देते हैं। इसका विरोध यानी स्वयं पर प्रश्नचिह्न खड़ा करना। सबसे चिंतनीय बात तो यह है कि उनका खुद का मोहल्ला, कॉलोनी, शहर, देश व समाज उनका ही होता है। पर वह यहां पर भी निर्भय व स्वछंद होकर कहीं नहीं घूम सकती। मुस्कान उनका अपराध है। उछलना कूदना महापाप। ऐसे में वह स्वार्थी मतलबी नहीं बनेंगी तो और क्या बनेंगी। अपने काम भर बात करो। ज्यादा न बाेेेेेेलो। रास्ते पर ऊपर न देखों। दाएं बाएं नजर न घुुुुुुुुमाओं। ऐसे में वह मतलबी नहीं होंंगी तो क्या होंंगी। जब लड़के भारत हमारा देश है और हम सब भाई बहन हैैं, बोलने में संकोच करें। वे डरें या गूंगे हो जाएंगे तो लड़कियां मतलबी नहीं होंंगी तो क्या होंंगी। जब युवा, बुजुर्ग तो छोडि़ये बच्चेे व किशोरों की नजर छोटी-बड़ी, अधेड़ हर शरीर पर गड़ने लगी हो तो वह मतलबी न हों तो क्या होंगी। उनकी हर बात, समझ, चिंता, नजरिया, रहन-सहन मतलबी ही लगेगा। क्योंकि कोई पुरुष, युवक, लड़का उन्हें सिर्फ और सिर्फ जरूरत समझता हैैै। आज के टीवी प्रचार, वेब सीरिज, यूट्यू्ब और नेट पर सुलभता से मौजूूूद अश्लील चलचित्रों ने उन्हें और मजबूर और मजबूत कर दिया कि वो मतलबी बनी रहें। इसी में उन्हें हित नजर आने लगा है। टीवी व पार्कों में बच्चाेेंं का स्नेह अब व्यस्क प्रेम के रूप में परोसा जा रहा हैैै। ऐसेे में यह लड़कियां मतलबी नहीं होंगी तो क्या होंगी। यहां तो अपने-पराए सब उन्हें नोचने खाने को तैयार बैठे हैैं। ऐसे में उनकी हर बात मतलबी बनी रहे तो क्या दोष हैैै। इसके मतलबी होने पर ज्यादा समझने और अध्ययन की जरूरत नहीं। बल्कि खुद के मतलब को बदलने की जरूरत हैैै। उन्हें समझने की नहीं खुद की समझ बढ़ाने की जरूरत है।
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
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