गम परेशान करे तो यहां मिलती है ढेरो खुशी

आदित्य
आदित्‍य देव/ Aditya Dev




खुशी को तलाशने की जरूरत नहीं है। क्‍योंकि खुशी आपका अंत: भाव है। वह आपमें ही मौजूद हैैै। वह न कोई वस्‍तु हैै और न ही कोई व्‍यवहार। वह आत्‍मा का खुबसूरत श्रृंगार है, जिसे आप अपने अच्‍छे कर्मों से सजाते हैं। जिसे आप परोपकार और त्‍याग से सींचते हैैं। जिसे आप इश्‍वर की आस्‍था और प्रेम से मजबूत करते हैैं। खुशी का खलीहान आपके मानव, जीव व वनस्‍पति प्रेम के अनाज से भरता है।
खुशी को तलाशों नहीं। यह शिक्षा की तरह ही ऐसी ऊर्जा हैै जो बांटने से बढ़ती है। यह जितनी बढ़ेगी उनता ही आपके आसपास का माहौल खुशनुमा होगा। यदि आपके आसपास के लोग खुश हैैं तो आपको स्‍वत: खुशी प्राप्‍त हो जाएगी। ऐसे में कभी भी भूल से अपनों के साथ ही अपने आसपास किसी को दुखी न होने दें। अपने को अच्‍छा न बोलें, न बनने की कोशिश करें। खुुुद को मौनरूप से अच्‍छे कर्मों के लिए न्‍यौछावर कर दें। त्‍याग को अपना भाव बना लें। इतनी कोशिश करें कि किसी आर्थिक कर्ज न दें बल्कि आर्थिक सहयोग दें। कर्ज लेकर भी व्‍यक्ति उतना ही दुखी होता है, जितना जरूरत के वक्‍त था। अत: आप हपनी सामर्थ्‍य से थोड़ा आगे बढ़ सेवा दें। सारिरिक, मा‍नसिक, व्‍यवहारिक, आर्थिक सेवा व सुख दें। अपनों को कर्ज नहीं दिया जाता। न ही उनपर कभी एहसान किया जा सकता है। उनके द्वारा दिया स्‍नेह अनमोल है। अत: उसकी पूर्ति आप कभी नहीं कर पाएंगे। ऐसे में आप उसके लिए जो भी करें बिना वापसी के सौदे के करें।

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