ध्‍यान लगाते वक्‍त ये चीजें कर देती हैैं तंग

आदित्‍य देव/Aditya Dev
ध्‍यान यानी स्‍वयं को एक अदृश्‍य बिंदुु में स्‍थापित करना। वास्‍तव में यह सिर्फ चुनौती हो तो जीता जा सकता हैैै। किंन्‍तु यह स्‍वार्थ और स्‍वयं के बीच की वह जंग हैै जहां आप हर वक्‍त हारते हैं। आपकी चेतना बार-बार आपको भटकाकर गर्त की तरफ ले जाती हैैै। आपकी समझ आपके दिमाग के स्‍पंदन में भौतीकता का रस छोड़ती हैैै। आपकी कर्मेंद्रिया अपने अहसास करने की क्षमता से आपकी समझ और सोच को विकृत अवस्‍था में लेकर जाते हैं। आपकी ज्ञानेंद्रियां आपके भाव को इस भवसागर की लहरों में लपेटती रहती है। इस दौरान आप परम शून्‍यता को प्राप्‍त करने के लिए जितने लालायित होते हैैं, तामसी शक्तियां आपको उतना ही उलझाती हैं। इस दौरानसबसे अधिक समस्‍या आपको काम पर विजय पाने में आती है। यह वास्‍तम में एक असमर्थ प्रयास के समान शाबित होता है। आप चाह कर भी काम व वासना को अपनें सुखानुभूति भाव से दूर नहीं कर पाते। ऐसे मेें आपकी आत्‍मा एक समझौता करती हैैै। वह कुछ पल के लिए त्‍याग और दृढ़ता का वरण करती है। इसमें आप कितने सफल होते हैैं इसका मूल्‍यांकल कुछ वर्षों बाद ही कर पाएंगे। वर्तमान इसका हल नहीं दे पाता।
ध्‍यान कला और विज्ञान की मिश्रित अवस्‍था है। यह जीव में जीवन की जिवंतता को स्‍थापित करता हैैै। यह आत्‍मा के परमात्‍मा से साक्षात्‍कार का जरिया बनता है।यह सभी दुखों को हर कर आपको सुख से समृृृृृृद्ध करता हैैै। यह आपमें एक दैविय ऊर्जा का संचरण करता है, जिससे आप अपने शरीर में बसे उस दीप यानी आत्‍मा से परिचित हो पाते हैैं। हड्डी, मांस, मल, मूत्र, रक्‍त और अनेकानेक अपशिष्‍ट पदार्थों से निर्मित इस शरीर के भ्रम से आप आजाद हो जाते हैैं। आप स्‍वयं में शिव को स्‍थापित कर लेते हैं। प्रकृति को महाशक्ति रूप में पाते हैं। स्‍वांस में स्‍वयं नारायण का वास हो जाता है। दृृ‍ष्टि आपकी नारायणी का रूप ग्रहण कर लेती हैैै। आपका शरीर जल, जमीन, वायु, अग्नि और आकाश में विभक्‍त हो जाता है। आप नर से नारायण की पूर्णता प्राप्‍त करने के मार्ग में प्रसस्‍त हो जाते हैं। इसके बाद आप अच्‍छे जीवन, पूनर्जीवन, स्‍वर्ग सुुुुख इत्‍यादि पर विचार नहीं करते। इसके बाद आप सिर्फ मोझ यानी परमशक्ति में विलीन हुआ खुद को पाते हैं। आप महाशुन्‍य यानी ब्रह्म का हिस्‍सा हैं। ध्‍यान की चरम अवस्‍था में आप इसी में मिश्रित हो जाते हैं। हर‍ि ओम। ओम नमो भगवते वासुदेवाय।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पतझड़ सा मैं बिखर जाऊंगा

यहां पर काल सर्पदोष की शांति का अनुष्‍ठान तुरंत होता है फलित

अकेला हूँ, खामोश हूँ