आखिर वैज्ञानिक भी भगवान को क्‍यों मानते हैं

आदित्‍य देव/ Aditya Dev
बिना भगवान के विज्ञान अंधूरा है। सबसे पहले तो यह जान लीतिए की विज्ञान सिर्फ तथ्‍यों की खोज है। यह कोई अविष्‍कार नहीं हैैै। क्‍योंकि अविष्‍कार नया होता है, जबकि विज्ञान के तहत सिर्फ वहीं चीजें प्रत्‍यक्ष आती हैैं जो इस सृष्टि में हैं। वैज्ञानिक इन्‍हीं मौजूद ऊर्जाओं में से चंद ऊर्जा को खोज पाए हैं। यह कोई बाहरी या किसी मानव द्वारा उद्विपित कर्म नहीं हैैै। मानव पकृति मेें मौजूद ऊर्जा को खोजता हैै और उसके उपयोग के संसाधनों का‍ निर्माण करता हैैै।
ऊर्जा वास्‍तव में एक अप्रत्‍यक्ष बिंदु है। यह ऐसा बिन्‍दु जिसे मानव अपने मशीनों व यंत्रों से देखने की कोशिश करता हैै। वह जितने छोटे कण तक अपने ज्ञाप को पहुंचाता है, उससे और छोटे कण का भान हो जाता है। भगवान यानी एक अप्रत्‍यक्ष व अदृश्‍य शक्ति। ऊर्जा। जो हमारे आसपास है। हममें मौजूद है। यह शरीर भी देखेंगे तो पाएंगे की 75 प्रतिशत से अधिक भाग इसका प्रत्‍यक्ष रूप से पानी है। जबकि अन्‍य 25 प्रतिशत भाग ऐसे तत्‍व हैं जो जल के स्‍वरूप में परिणित होते हैैं। अर्थात आपका संपूर्ण अस्तित्‍व वाष्‍प है। और वाष्‍प फैल जाए तो इन आंखों से नहीं देख पाएंगे। यानी आपका अस्तित्‍व अदृष्‍य सा हो जाएगा। आप कुछ हो ही नहीं। मात्र कुछ ऊर्जा के पुंज। और कुछ नहीं। जैसे सीमेंट व बालू को जोड़कर पत्‍थर बना देते हैैं। वैसे ही आप भी घनी जल संधि के परिणाम हैंं।
जब आप प्रकृति के इस रहस्‍य के करीब जाते हैैं तो आपको बहुत से कण व ऊर्जा के बिंदु दिखते हैैं। यही ऊर्जा इश्‍वर का अंस हैैै। और मानवों के लिए चमत्‍कार, खोज, शोध, विज्ञान इत्‍यादि इत्‍यादि। आपको एक अच्‍छा वैज्ञानिक बनने के लिए सबसे पहले तो अच्‍छा दार्शनिक बनना पड़ेगा। दर्शन से ही प्रकृति के सुुुुक्ष्‍म स्‍वरूप के दर्शन आपको होंगे। अत: भगवान को जाने बिना विज्ञान को समझना काफी कठिन है। शायद यही वजह है कि स्टिफन हॉकिंस और एपीजे अब्‍दुल कलाम गीता जरूर पढ़ते थे और गीता को विज्ञान का प्रमुख केंद्र मानते थे।

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