अंजोरिया उड़वलस अंखियन के पानी
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| नागबासुकी, बक्सी कला, दारागंज, प्रयागराज |
ढीठ अंहरिया निनिया चुरवलस, अंजोरिया उड़वलस अंखियां के पानी।
गर्दिश में जिनगी परल, आन्हींं बिच गर्दा बन उड़ल हमार जिनगानी।।
सांसियां के चादर ओढ़ दरद सतावे,
दिन इ बरिस भइल छन छन हमके सतावे।।
नजरिया अब पागल भइल,
खुशी खातिर अपनन की ओर रही रही केे ताके।।
जिनगी केे भंंवर ह ई,
एकरा मेें फंसे जे फिर न कभी बच पाए।
अपनन में धोखा खाए,
तबो प्रीत खातिर ई ददे दरे एनी ओनी भागे।।
संसियां हैरान बा, मनवा परेशान बा
बुझे जे के भी बढ़े ओके समझ न ही पाए।।
स्वार्थ के साथ बा, परमारथ बीमार बाद
तबो मीठ बतिया मेें कांंहें इ मन फंस जाए।।
दे देे दिलासा अब तहसे रखी खलसा आशा अब,
दर्द के दवा हउव, तहरे से सुुुुनी सब सुख पाए।
मंजिल दिखा द तूं अब, सपना पुरा द अब,
तहरे संंगे अब इ मन अब सुख चैैैन पाए।।
सपने के साथ बा, अपनन के हाथ बा।
लड़ेे के जज्बे से ही त ओठवां पे मुस्कान बा।।


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