सपनों को कचरे में फेंक दिए
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aditya dev |
फैशन को ऐसा ओढ़े की अपनो के ख्वाबों को बेच दिए
हर गलती को बड़े सलीके से वो ना कहते हैं।।
वो अपनों की हर बात को नासमझी का दाग कहते हैं।।
मुस्कान उनकी जिंदा रहे कोई मायूसी का व्यापार करता है।।
वो हंसे, मुस्कुराए इसलिए अपनी जरूरतों को नजरअंदाज करता है।।
हमारा भरोसा भी कमबख्त मेरा न था।
उनकी नजरों ने जो दिखाया वही बस समझा।।
जुबा उसकी थी, भरोसा मेरा
निगाहें उसकी थी, सपना मेरा।
रास्ते उसके थे, ठोकर मेरी
नींद उसकी थी, सुकून मेरा।
एक ख्वाब देखतीं मेरी नजरें
जमाने के तमाशे में न जाने कब उलझ गईं।
निगाहों में मेरी उम्मीदों की बरसात थी बहुत
आशा निराशा के हिलकोरों को बड़े सलीके से यह मात दे गई।।
शहर की चकाचौंध ने नजाने कब हमें इतना रोशन कर दिया।
कुछ लोग सपना देखने के लिए उसके भरोसे के छांव में बैठे रह गए।।
तुम समझो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।
पर तुम्हारी मुस्कान का हर्जाना नहीं सह सकते।।।
ये तुम्हारी आंखें ही तों हैैं जिन्हें हम जिंदगी कहते थेे
पर हर झपकी में तुम्हारा बदलना मेरी जान ले गया।।
पर हर झपकी में तुम्हारा बदलना मेरी जान ले गया।।
आंखें पर भरोसा करूं या करूं तेरे लबोंं के एहसास पर।
तूं जो भी दिखाएगी वहीं जियूंगा हर धोखेे को नजरअंदाज कर।।
तूं जो भी दिखाएगी वहीं जियूंगा हर धोखेे को नजरअंदाज कर।।
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