दिवाली पर खतरे को नहीं खुशी को लगाएं गले
दिवाली पर खतरे को नहीं खुशी को लगाएं गले
दिवाली का नाम आते ही दिल में उत्साह और उमंग भर जाता है। चारो तरफ जगमग करती रोशनी, रंगोली और ढेरों मिठाई। इसके साथ ही एक और चीज का इंतजार बच्चों को रहता है, वह है पटाखों और फुलझडि़यों का। पर यहां हम सबको यह जान लेना जरूरी है कि घर के स्वागत द्वार पर शुभ दीपावली का बैनर तब तक ही मंगलमय होता है जब तक हम इस खुशी में प्रदूषण का जहर नहीं घोलते। यदि प्रदूषण पर ध्यान नहीं दिए तो यह हवा को दूषित कर आपको और आपके अपनों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह आपके स्वास्थ्य के लिए काफी घातक हो सकता है। ऐसे में आपकी थोड़ी समझदारी इस त्योहार की खुशी में चार चांद लगा सकती है।
दिवाली मनाने की परंपरा हमारे समाज में सदियों पुरानी है। हमारे पूर्वज घी और तेल के दिए जलाकर पर्व को मनाते थे। पर बारूद की खोज और पटाखों के आम प्रचलन में आने के बाद इस त्योहार में एक काल्पनिक खुशी ने प्रवेश किया, और हवा में जहर घोल हमारे लिए घातक वातावरण को जन्म दिया। इन पटाखों से आज पृथ्वी कराह रही है। इससे सबसे अधिक और सीधी प्रभावित होने वाली चीज है हवा। इससे लोगों को सांस लेने में काफी दिक्कत होती है। इससे कई बीमारियां जन्म लेती हैं और फेफड़े प्रभावित होते हैं। इन पटाखों के टूकड़े और अपशिष्ट पदार्थ जमीन को प्रदूषित व जहरीला कर देते हैं। इनके कई टूकड़े नान बायोडिग्रेडिल होते हैं जो वक्त के साथ और जहरीले होते जाते हैं। धुंध के साथ ध्वनि प्रदूषण बुजुर्गों, बच्चों, जानवरों और बीमार लोगों के लिए गंभीर समस्या पैदा करते हैं। जब आप पटाखों का शोर सुनकर खुशी में उछलते हैं, उसी दौरान बीमार व्यक्ति दर्द और डर से तड़प उठता है। आपके पेट्स के साथ ही आम जानवरों के जान पर आपकी यह खुशी बन आती है।
पटाखे से नहीं प्रेम से मनाएं पर्व
हम सबको यह मालूम है कि भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में अग्रणी है। ऐसे में करोड़ों लोग यदि एक साथ करोड़ों पटाखे जलाएंगे तो पूरा देश धुंध, धुएं और प्रदूषण से कराह उठता है। आम लोगों व जानवरों के साथ ही बीमार लोगों को सांस की समस्या से जूझना पड़ता है। पटाखे फोड़ने से आंखों में जलन, आंखों का लाल होना, त्वचा व फेफड़ों का संक्रमण इत्यादि दिक्क्तें होती हैं। इन पटाखों के जलने से निकला धुआं वायुमंडल में हानिकारक गैसों का चेंबर बना देता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा भी बढ़ता है। इसकी ध्वनि से नवजात बच्चे, वृद्ध, और जीव-जंतुओं पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यह पर्व पटाखों से नहीं प्रेम के साथ मिलजुलकर अपनों संग मनाएं।
खुशियां फैलाएं धुआं नहीं
- बच्चों में पटाखों को जलाने की उत्सुकता अधिक होती है। अत: ऐसे में उनके अंदर स्वास्थ्य व समाज के प्रति संवेदनशीलता का बीज रोपें। उन्हें पर्यावरण और प्रदूषण के घातक परिणाम को समझाएं। आजकल के बच्चे काफी समझदार हैं, वे अन्य लोगों को भी जागरूक करने में आपकी मदद ही करेंगे।
- सरकार और कोर्ट के सख्त कदम के बाद ही इस पर वास्तव में प्रतिबंध लगाया जा सकता है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि वाहनों द्वारा हफ्तों में जितना धुंआ निकलता है, उससे कहीं अधिक प्रदूषण दिवाली के दिन होता है। ऐसे में प्रशासन को भी सख्त होने की जरूरत है।
- अगर पटाखे जलाने ही हैं तो बहुत कम शोर वाले और न्यूनतम धुआं वाले पटाखों को ही चुनें। फुलझडि़यों और अनार से काफी धुंआ निकलता है।
- बच्चे, विद्यार्थी, बुजुर्ग और बीमार को प्रदूषण से बचाने के लिए मास्क प्रयोग करने के लिए दें। इसमें एन-95 मास्क ज्यादा उपयोगी है।
- दिवाली के दिन कपड़ों का भी विशेष ध्यान रखें। सूती और ढीले-ढाले कपड़ों में आग व चिंगारी से बचाव की गुंजाइस अधिक रहती है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अस्थमा व सांसों के मरीज अपनी दवा और इनहेलर पर्याप्त मात्रा में अपने पास रख लें।
दिवाली के बाद भी सतर्क रहें
- दिवाली के अगले दिन अपने घर की खिड़की और दरवाजों को बंद ही रखें ताकि धुंआ व धुंध कमरों तक न पहुंच पाएंं।
- सुबह का टहलना कुछ दिन के लिए रोक दें।
- बच्चों को बाहर खेलने से कुछ दिन जरूर रोकें।
- मास्क का प्रयोग आवश्यक रूप से करें।
- घर में एयर प्यूरिफायर पौधे जैसे एलोवेरा, आईवी, स्पाइडर प्लांट आदि लगाएं।
- रूम में एयर प्यूरिफायर का प्रयोग करें।
- यूकेलिप्टस ऑयल डालकर भाप लेने से राहत मिलेगी।
- हर्बल चाल पिएं और विटामिन सी युक्त फल खाएं।
खतरा है आपके आसपास
- ऐसा हो सकता है कि आपके घर में कोई बीमार व्यक्ति व बच्चा न हो। पर आसपास के लोगों का ख्याल रखना भी आपकी जिम्मेदारी है। दिवाली के दौरान पटाखों एवं आतिशबाजी से दिल का दौरा, रक्त चाप, दमा, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी दिक्कतों का खतरा बढ़ जाता है।
- ऐसे में दमा और दिल के मरीजों के लिए विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।
- चिकित्सकों के अनुसार, पिछले कई वर्षों से यह देखने को मिल रहा है कि दिवाली के बाद अस्पतालों में हृदय रोग, दमा, नाक की एलर्जी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की संख्या दोगुनी तेजी से बढ़ रही है।
- वहीं जलने, आंख के क्षति पहुंचने और कान का पर्दा फटने जैसी घटनायें भी बढ़ी हैं।
- इसके अलावा बहरापन, सिरदर्द, अनिद्रा से भी लोग प्रभावित होते हैं।
- डॉक्टर बताते हैं कि मानव के लिए 60 डेसीबल की आवाज सामान्य होती है। इसके 10 डेसीबल अधिक तीव्र होने के बाद आवाज की तीव्रता दो दोगुनी हो जाती है। इसका खामियाजा बच्चों, गर्भवती महिलाओं, नवजात, दिल तथा सांस के मरीजों को चुकाना पड़ता है।
ये मचाते हैं तबाही
पटाखों में मौजूद ज्वलनशील रसायन मनुष्य और जीव-जंतुओं के लिए घातक हैं। इनमें पोटेशियम क्लोरेट पाउडर वाला अल्युमीनियम, मैग्नीशियम, बेरियम, तांबा, सोडियम, लिथियम, स्ट्रोंटियम होता है, जो तेज आवाज और अधिक धुंआ पैदा करते हैं।

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